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Showing posts from March 24, 2009

न्यायसंगत नही है फिराक 2 स्टार

फ़िल्म समीक्षा शुक्रवार प्रर्दशित फिराक के बारे में कुछ कहने की फिराक में था, मैंने सोचा चलो हिंदुस्तान का दर्द से ही फ़िल्म समीक्षा की शुरुआत कर दी जाए। इस फ़िल्म कहानी सन २००२ के गुजरात दंगो पर आधारित है। अगर फिराक की निर्देशिका नंदिता दास की मान ली जाए तो उन दंगो में हिंदू गुजरातियों ने मुसलमानों पर बहुत जुल्म किए, उनके मकान ढहा दिए गए, औरतो की अस्मत लुटी गई। यह सभी दिखाया गया है फ़िल्म में। क्या आप लोग सहमत होंगे की फ़िल्म में एक भी बार किसी हिंदू नागरिक को मरते ख़ुद को लुटवाते नही दिखाया गया है। निर्देशिका भूल गई की दंगो की भयावह आग यह देखकर नही जलती की कौनसा दमन हिंदू का है और कौनसा मुस्लमान का। इस देश में ऐसा कौनसा दंगा हुआ जिसमे केवल मुसलमान ही मरे हो हिंदू नही, जिस भीड़ का कोई चेहरा नही होता उसे जबरन चेहरा पहनाने की कोशिश की गई है। नंदिता किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित दिखती है। पुलिस से बच रहा एक मुस्लिम पनाह खोजते हुए एक हिंदू नागरिक के हाथो मारे जाने वाला द्रश्य बहुत वीभत्स है। यह काल्पनिक सीन निर्देशिका के पूर्वाग्रह को और बलवती बनाता है।नसीरूदीन शाह का मार्मिक अभिनय कहानी को पक

व्योम के पार से लौट कर............!!

Tuesday, March 24, 2009 तेरे हरफ़ो के अर्थों में मुझे खो जाने दे... इक ज़रा मुझको खुद में ही खो जाने दे!! सामने बैठा भी नज़र ना आए तू मुझे ऐसी बात है तो मुझको ही चला जाने दे !! तेरी मर्ज़ी से आया तो हूँ अय मेरे खुदा अपनी मर्ज़ी से मुझे जीने दे,चला जाने दे!! आँख ही आँख से बातें दे करने दे तू मुझे साँस को साँस से जुड़ने दे उसे समाने दे!! इक जरा जोर से दिल को मिरे धड़कने तो दे इक जरा जोर से मुझे आज तू खिलखिलाने दे !! मुझको मेरी ही कीमत ही नहींपता "गाफिल" इक तिरे सामने महफ़िल अपनी जमाने दे!!
मुक्तक : दोस्त संजीव 'सलिल' दोस्त हैं पर दोस्ती से दूर हैं. क्या कहें वे आँखें रहते सूर हैं. 'सलिल' दुनिया के लिए वे बोझ हैं- किंतु अपनी ही नजर में नूर हैं. *************************** दोस्त हो तो दिल से दिल मिलने भी दो. निकटता के फूल कुछ खिलने भी दो. सफलता में साथ होते सब 'सलिल'- राह में संग एडियाँ छिलने भी दो. *************************** दोस्त से ही शिकवा-शिकायत क्यों है? दोस्त को ही हमसे अदावत क्यों है? थाम लो हाथ तो ये दिल भी मिल ही जायेंगे- त ब ही पूछेंगे 'सलिल' हममें सखावत क्यों है? *******************************************

मोहल्ला ब्लॉग के अविनाश को ''मोहल्ले में बलात्कार'' फिल्म का ऑफर

''मोहल्ला''का नाम सुना होगा नहीं तो फिर अविनाश का नाम जरुर सुना होगा यही वो बंदा है जिस पर अभी बलात्कार का आरोप लगा था! हलाकि इसे सिर्फ आरोप नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसी सीधी सी बजह है मेरे पास! आजकल मोहल्ला पर यह महज अश्लील पोस्टों के ब्लॉग को चलाने में लगे है ! खैर छोडिये हों आपको पढ़वाते है बह मजेदार टिप्पडी जो इनकी पोस्ट पर प्रकाशित हुई है ! Anonymous said... हाँ तो पंचों भोजपुरी में एक फिल्म बनाने का प्रस्ताव भेज रहा हूँ. जिनके वेतन ८०००० से १००००० रूपये हों इसके लिए फाइनेंस करें. सभी कलाकारों से बात हो चुकी है वे फिल्म में अपनी भूमिका के लिए तैयार हैं और असल जिंदगी में भी- तो www.mohalla.blogspot.com पर देखिये रोजाना चार शो - मोहल्ले में बलात्कर बलात्कारी बाबा प्रोडक्शन की शानदार प्रस्तुति -'मोहल्ले में बलात्कार'अविनाश और अमिता मित्तल दोनों का रोल स्वयं अविनाश करेंगे (पहली बार अविनाश डबल रोल में) हीरो और हीरोइन - अविनाशनिर्माता - निर्देशक - कर्मेंदु शिशिरपटकथा व संवाद - हेतु भरद्वाजजोकर - विजय कुमारगीत व संगीत- विनीत ('आलोचक गारी देवे' फेम) प्रस्

एनडीए यूपीए से बेहतर...

मीरवाइज उमर फारूख हुर्रियत कॉन्फ्रेंस लीडर हिंदुस्तान एक बड़ी जम्हूरियत है। बेशक, कश्मीर को लेकर भारत से हमारे मतभेद हैं लेकिन हम इसे काफी महत्वपूर्ण मानते हैं कि भारत में हर 5 साल बाद आम चुनाव होते हैं और नई सरकार चुनकर आती है। मेरे ख्याल से कोशिश यही होनी चाहिए कि साफ सुथरे इलेक्शन हों। लोगों को भरपूर मौका मिले। कश्मीर के हवाले से हम इन चुनाव को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। हमारी इस बात में काफी रुचि है कि सेंटर में एक मजबूत सरकार हो ताकि वो कोई मजबूत पहल कर सके। आगे पढ़ें के आगे यहाँ हम बेशक इन चुनावों से दूर हैं पर हम चाहते हैं कि आने वाली सरकार दूसरे मामलों के साथ-साथ कश्मीर पर भी तवज्जो दे। हमारा मानना है कि कश्मीर का मसला बातचीत से ही हल हो सकता है। हमें कश्मीर पर भारत-पाक की वार्ता फिर शुरू होने का बेसब्री से इंतजार है। कश्मीर में चुनाव को अलग नजर से देखा जाता है। हमारा मसला चुनाव से जुड़ा हुआ नहीं है। इन चुनावों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। कश्मीर के हवाले से अगर हम कहें तो हम भारत और पाकिस्तान दोनों की मजबूती देखना चाहते हैं। क्योंकि तभी कश्मीर पर कोई फैसला लिया जा सकता है। मेरी

नैनो के फायदे और नुक्सान

Tuesday, March 24, 2009 नैनो के फायदे और नुक्सान टाटा मोटर्स का ६ साल पुराना सपना साकार हो गया और नैनो कार बाजार मे आ गई । अब सवाल यह उठता है की इसके फायदे और नुक्सान क्या -क्या हैं ?अगर बात फायदे की करे तो कहा जा सकता है की - देश के मध्यम वर्ग का कार मे घूमने का सपना नैनो कार की वजह से पुरा हो गया । साथ ही साथ आम आदमी तक कार पहुँच सकी .isksathikइ दूसरी बात यह की इससे रोजगार के नए अवसर भी देश मे लोंगो को मिलेंगे । अब अगर दूसरी दृष्टी से सोचा जाये तो टाटा की नैनो को प्राथमिकता का निर्णय ग़लत भी लगता है । एक ऐसे समय मे जब पूरी दुनिया मे मंदी छाई हुई है तो देश के मध्यम वर्ग को कार देना कौन सा सार्थक निर्णय है ? दूसरी बात हमारी ऊर्जा संकट की है । पेट्रोलियम पदार्थों की कमी की है । बुनियादी सुविधावों के आभाव की है । इन सब को भूल कर नैनो का स्वागत करना इतना आसन नही है । वैसे आप इस बारे मे क्या सोचते हैं ?

नैनो के फायदे और नुक्सान

Tuesday, March 24, 2009 नैनो के फायदे और नुक्सान टाटा मोटर्स का ६ साल पुराना सपना साकार हो गया और नैनो कार बाजार मे आ गई । अब सवाल यह उठता है की इसके फायदे और नुक्सान क्या -क्या हैं ?अगर बात फायदे की करे तो कहा जा सकता है की - देश के मध्यम वर्ग का कार मे घूमने का सपना नैनो कार की वजह से पुरा हो गया । साथ ही साथ आम आदमी तक कार पहुँच सकी .isksathikइ दूसरी बात यह की इससे रोजगार के नए अवसर भी देश मे लोंगो को मिलेंगे । अब अगर दूसरी दृष्टी से सोचा जाये तो टाटा की नैनो को प्राथमिकता का निर्णय ग़लत भी लगता है । एक ऐसे समय मे जब पूरी दुनिया मे मंदी छाई हुई है तो देश के मध्यम वर्ग को कार देना कौन सा सार्थक निर्णय है ? दूसरी बात हमारी ऊर्जा संकट की है । पेट्रोलियम पदार्थों की कमी की है । बुनियादी सुविधावों के आभाव की है । इन सब को भूल कर नैनो का स्वागत करना इतना आसन नही है । वैसे आप इस बारे मे क्या सोचते हैं ?

नैनो के फायदे और नुक्सान

Tuesday, March 24, 2009 नैनो के फायदे और नुक्सान टाटा मोटर्स का ६ साल पुराना सपना साकार हो गया और नैनो कार बाजार मे आ गई । अब सवाल यह उठता है की इसके फायदे और नुक्सान क्या -क्या हैं ?अगर बात फायदे की करे तो कहा जा सकता है की - देश के मध्यम वर्ग का कार मे घूमने का सपना नैनो कार की वजह से पुरा हो गया । साथ ही साथ आम आदमी तक कार पहुँच सकी .isksathikइ दूसरी बात यह की इससे रोजगार के नए अवसर भी देश मे लोंगो को मिलेंगे । अब अगर दूसरी दृष्टी से सोचा जाये तो टाटा की नैनो को प्राथमिकता का निर्णय ग़लत भी लगता है । एक ऐसे समय मे जब पूरी दुनिया मे मंदी छाई हुई है तो देश के मध्यम वर्ग को कार देना कौन सा सार्थक निर्णय है ? दूसरी बात हमारी ऊर्जा संकट की है । पेट्रोलियम पदार्थों की कमी की है । बुनियादी सुविधावों के आभाव की है । इन सब को भूल कर नैनो का स्वागत करना इतना आसन नही है । वैसे आप इस बारे मे क्या सोचते हैं ?

ईश्वर से बढ़ कर कोई नहीं है !

मैंने आज देखा हमारे ब्लॉग मित्र विनय जी ने कुछ बातें अपने पोस्ट में में लिखीं, मुझे यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि वह माँ (जिसने जन्म दिया) की महिमा लिख रहे थे या ईश्वर के बारे में संशय व्यक्त कर रहे थे | वैसे मुझे जो महसूस हुआ वह यह था कि विनय जी के मुताबिक ईश्वर से भी बड़ा दर्जा माँ का है| वैसे मैं बता दूं कि मेरी माँ भी अब इस दुनिया में नहीं है | और मैं भी कभी कभी उसे याद कर रोता हूँ| मैं उसकी बहुत इज्ज़त करता था और ....... खैर ! मैं विनय जी को बता दूं की, ईश्वर से बढ़ कर कोई नहीं है, माँ और बाप भी नहीं !!!   क्यूंकि अगर यह सत्य होता तो कहानी कुछ और होती.... मैं बताना चाहता हूँ कि " हम सब एक तुच्छ वीर्य थे, नौ महीना की अवधि में विभिन्न परिस्थितियों से गुज़र कर अत्यंत तंग स्थान से निकले, हमारे लिए माँ के स्तन में स्वतः दूध उत्पन्न हो गया, कुछ समय के बाद हमें बुद्धि ज्ञान प्रदान किया गया, हमारा फिंगर प्रिंट सब से अलग अलग रखा गया, इन सब परिस्थितियों में माँ का भी हस्तक्षेप न रहा, क्योंकि हर माँ की इच्छा होती है कि होने वाला बच्चा गोरा हो लेकिन काला हो जाता है, लड़का हो लेकिन लड़की

क्या हमें ईश्वर सर्वाधिक प्रिय हैं?

विनय बिहारी सिंह हममें से कितने लोग हैं जो ईश्वर से जी भर कर प्यार करते हैं? हमारे जीवन में मां का स्थान सबसे ऊंचा है। मां के प्यार का कोई विकल्प नहीं है (हालांकि मेरी मां मेरे बचपन में ही गुजर गई थीं, तबसे जगन्माता ही मुझे प्यार दे रही हैं) । क्या हम ईश्वर से मां से भी बढ़ कर प्यार कर पाते हैं। ईश्वर से प्यार करने की बात इसलिए क्योंकि उसी ने हमें जीवन दिया है। हम जो सांसें लेते हैं, उसी की कृपा के कारण। हम सबकी सांसें गिनी हुई हैं। जब सांस पूरी हो जाएगी तो हमें अंतिम सांस ले कर इस संसार से विदा लेनी पड़ेगी? क्या आपने कभी सोचा है कि जन्म लेने के पहले आप कहां थे? या मृत्यु के बाद कहां जाएंगे? आपका जीवन जीवन और मृत्यु के बीच वाला हिस्सा भर है। क्या आप जानते हैं कि दूसरों को नुकसान पहुंचाने का विचार आपको भी कभी न कभी नुकसान पहुंचा कर दम लेता है? जी हां, यह सच है। तो सवाल था कि हममें से कितने लोग ईश्वर को दिलो जान से चाहते हैं? क्या हम ईश्वर के लिए कभी भी रोते हैं? नहीं। हम पत्नी के लिए, प्रेमी या प्रेमिका के लिए, मां- पिता के लिए तो रोते हैं। व्यवसाय में नुकसान होने पर तो रोते हैं। लेकिन

भारत माँ का दर्द ,,,,,,,,,,,,,,,

तस्वीर अभी -अभी मुझे प्राप्त हुई है और मैं आप तक अविलम्ब पहुँचाना उचित समझता हूँ । देखिये इस तथाकथित स्वघोषित इश्वर माँ निर्मला देवी और साथ में बैठे उनके पति जो एक आई ए एस अधिकारी थे ।

मेरा वोट, मेरा देश चुनाव 2009 -"मुस्लिम मतदाता क्या सोचते हैं?"

के अंतर्गत मेरा यह लेख "मुस्लिम मतदाता क्या सोचते हैं?" लोकसभा के चुनाव के आते ही मुस्लिम वोट्स की चर्चा होना आम बात है जैसा कि हम इससे पहले की पोस्ट में पढ़ चुके हैं कि मुस्लिम मतदाता राजनितिक दलों के लिए भेंड सामान हैं, वह सौ प्रतिशत सही है| कुछ सवाल और भी है जो सबके ज़ेहन में ज़रूर आते होंगे जैसे- "भारतीय मुस्लिम क्या सोचते है? कौन कौन से मुद्दे हैं जिनपर मुस्लिम मतदाता राजनितिक पार्टीज़ को वोट देंगे? क्या उनके मुद्दे वही होंगे जो बाकी दूसरे भारतीयों के होंगे या फिर उनके कुछ मख़सूस मुद्दे भी है? आदि"   भारत में पिछले एक साल में राजनैतिक, सुरक्षा और सामाजिक स्थिति बहुत ज्यादा बदल गयी है, जिसके आधार पर कुछ कहना मुश्किल है, पिछले अनुमान पर कायम रहना भ्रम सा होगा | भारत में इस बीते साल में जो कुछ हुआ, उसकी वजह से हिन्दू और मुस्लिम के बीच टेंशन भी है | जो कुछ थोडी बहुत बची है वह वरुण गाँधी और अन्य साम्प्रदायिक नेता पूरी करे दे रहे है |  सबसे ताज़ी बानगी तो नवम्बर 2008 में मुंबई में हुए हमले से बनती है जो कि पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैबा द्वारा प्रायोजित था | यह तो

मुशर्रफ कुछ देर के लिये सन्नाटे में आ गया।

पिछले दिनों परवेज मुशर्रफ भारत आया था। एक साहसी पत्रकार प्रेरणा कौल ने उससे पुछा ,"मै काश्मीरी पंडित हूं,मेरा घर श्रीनगर में है पर मैं वहाँ जा नहीं सकती,होटल में रूकना पड़ता है,वहाँ जाना नामुमकिन है।क्या आप बता सकेगें कि कब हम वहाँ जा सकते है? मुशर्रफ कुछ देर के लिये सन्नाटे में आ गया। इस सवाल का जवाब भारत को भी देना होगा । स्वच्छन्द पाकिस्तान की आवाज आप्को भी।

लोक सभा चुनाव पर रखें तीखी नजर

लोकसभा चुनाव पर रखिए तीखी नजर,होगा आपकी हर एक बात का असर हम चुनेंगे अपनी सरकार क्योंकि यह देश हमारा है! लोकसभा चुनाव से जुड़े मुद्दों पर आपके लेख और खबरें आमंत्रित है हिन्दुस्तान का दर्द के साथ बांटिये कुछ ऐसे विचार जो आम नागरिकों को सहायता करें उनकी आदर्श सरकार चुनने में !आप अपने लेख और खबरों को mr.sanjaysagar@gmail.com पर मेल कर सकते है या सीधे प्रकाशित कर सकते है!पूर्ण और प्रभावशाली लेखों को http://www.fight4nation.com/ पर प्रकाशित किया जायेगा! संजय सेन सागर जय हिन्दुस्तान-जय यंगिस्तान आगे पढ़ें के आगे यहाँ

‘फिराक’ उन फिल्मों में से है, जो सोचने पर मजबूर करती है!

मनोरंजन के साथ-साथ फिल्म अपनी बात कहने या विचार प्रकट करने का भी सशक्त माध्यम है। 2002 में गुजरात में दंगों की आड़ में जो कुछ हुआ उससे अभिनेत्री नंदिता दास भी आहत हुईं और उन्होंने अपनी भावनाओं को ‘फिराक’ के जरिये पेश किया है। युद्ध या हिंसा कभी भी किसी समस्या का हल नहीं हो सकते। इनके खत्म होने के बाद लंबे समय तक इनका दुष्प्रभाव रहता है। फिराक में भी दंगों के समाप्त होने के बाद इसके ‘आफ्टर इफेक्ट्स’ दिखाए गए हैं। हिंसा में कई लोग मर जाते हैं, लेकिन जो जीवित रहते हैं उनका जीवन भी किसी यातना से कम नहीं होता। इस सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में वे लोग भी आते हैं, जिनका घर जला नहीं या कोई करीबी मारा नहीं गया है। फिल्म में 6 कहानियाँ हैं जो आपस में गुँथी हुई हैं। इसके पात्र हर उम्र और वर्ग के हैं, जिनकी जिंदगी के 24 घंटों को दिखाया गया है। पति (परेश रावल) का अत्याचार सहने वाली मध्यमवर्गीय पत्नी (दीप्ति नवल) को इस बात का पश्चाताप है कि वह दंगों के समय अपने घर के बाहर जान की भीख माँगने वाली महिला की कोई मदद नहीं कर सकी।  संजय सूरी एक उच्चवर्गीय और पढ़ा-लिखा मुस्लिम है, जिसने हिं

कितने पाकिस्तान

पंकज श्रीवास्तव एसोसिएट एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर जिनके पास सामान्य ज्ञान बढ़ाने का एकमात्र जरिया समाचार चैनल रह गए हैं, उनका हैरान होना लाजिमी है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा कि ये कैसा पाकिस्तान है। सड़कों पर लाखों की भीड़। हवा में जम्हूरियत और आजादी के तराने। स्वात में शरिया लागू होने की गरमा-गरम खबरों की बीच अचानक आजाद न्यायप्रणाली के पक्ष में ये तूफान कैसे उठ गया! बिना खड्ग-बिना ढाल, बस जुल्फें लहराकर काले कोट वालों ने ये कैसा कमाल कर दिया। सेना खामोश रही। पुलिस भी कभी-कभार ही चिंहुकी...और इफ्तेखार चौधरी चीफ जस्टिस के पद पर बहाल हो गए! पाकिस्तान के इतिहास को देखते हुए ये वाकई चमत्कार से कम नहीं। आम भारतीयों को इस आंदोलन की कामयाबी की जरा भी उम्मीद नहीं थी। सबको लग रहा था कि लॉंग मार्च बीच में ही दम तोड़ देगा। जरदारी जब चाहेंगे आंदोलनकारियों को जेल में ठूंस देंगे। 16 मार्च को इस्लामाबाद पहुंचना नामुमकिन होगा। ये भी बताया जा रहा था कि लांग मार्च में तालिबानी घुस आए हैं। कभी भी धमाका हो सकता है। लॉंग मार्च में मानव बम वाली खबर भी अरसे तक चीखती रही। लेकिन गिद्दों की उम्मीद पूरी नहीं हुई।

दोहे चूहे संजीव 'सलिल'

चूहे चूहे नश्वर कुतरते, नहीं अनश्वर याद. माटी को माटी करें, समय न कर बर्बाद. चूहे तो मजबूर हैं, करते मेहनत नित्य। चिर भूखे मजदूर हैं, पूजें काम अनित्य। हर आतंकी शिविर में, यदि दें इनको भेज. कुतर उन्हें खा जायेंगे, दांत बहुत हैं तेज. संसद में जा सकें तो, नेताओं को काट। सोते से देंगें जगा, रोज खादी कर खाट। भाषण देने गए तो, इनकी ही आवाज. हर चैनल पर मिलेगी, होगा इनका राज. धूम बाल उद्यान में, मचा सकेंगे रोज। चन्द्र देव से मिलेंगे, खायेंगे संग भोज.

"भड़ास फॉर यूपी- यूपी का अपना ब्लॉग"

अब निकालें यूपी वाले भी अपनी भड़ास - जमकर - क्यूँकि शुरू हो गया है ! "भड़ास फॉर यूपी- यूपी का अपना भड़ास ब्लॉग " यहाँ चटका लगा कर जाएँ सञ्चालनकर्ता : सलीम खान संरक्षक , स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़ एवं ज़िन्दगी की आरज़ू लखनऊ, उत्तर प्रदेश

जमाने की हवा से अब अछूता कोई नहीं दिखता

बड़ी तब्दीलियाँ हुई हैं अंधेरे से उजाले तक नया दिखता है सब कुछ हर घर से दिवाले तक पुराने घर पुराने लोग उनकी पुरानी बातें बदल गई सारी दुनियाँ उनकी थाली से प्याले तक चली है जो नई फैशन बनावट की दिखावट की लगे दिखने हैं कई चेहरे उससे गोरे कई काले तक ली व्यवहारों ने करवट इस तरह बदले जमाने में किसी को डर नहीं लगता कहीं करने घोटाले तक निडर हो स्वार्थ अपना साधने अक्सर ये दिखता है दिये जाने लगे हैं झूठे मनमाने हवाले तक बताने बोलने रहने पहिनने के तरीकों में नया पन है परसने और खाने में निवाले तक जमाने की हवा से अब अछूता कोई नहीं दिखता झलक दिखती नई रिश्तों में अब जीजा से साले तक खनक पैसों की इतनी हुई सुहानी बिक रहा पानी नहीं देते जगह अब ठहरने को धर्मशाले तक फरक आया है तासीरों में भारी नये जमाने में नहीं दे पाते गरमाहट कई ऊनी दुशाले तक हैं बदले मौसमों ने आज तेवर यों "विदग्ध" अपने नहीं दे पाते सुख गर्मी में कपड़े ढ़ीले ढ़ाले तक - प्रो सी बी श्रीवास्तव

क्या आप जानते है की संपन्न वर्ग (क्रीमी लेयर) कौन है ?

संपन्न वर्ग (क्रीमी लेयर) श्रेणी का विवरण जिन पर अपवर्जन का नियम लागू होगा सांविधानिक पद निम्नलिखित के पुत्र और पुत्रियां क) भारत के राष्ट्रपति ख) भारत के उप-राष्ट्रपति ग) उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश घ) संघ लोक सेवा आयोग और राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्य, मुख्य निर्वाचन आयुक्त, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ड.)वे व्यक्ति जो इसी प्रकार के सांविधानिक पदों पर हैं । ॥ सेवा की श्रेणी क) अखिल भारतीय केंद्रीय और राज्य सेवाओं के ग्रुप क/श्रे

ग़ज़ल

शक की बरसात अगर यूँ ही मुसलसल होगी ये ग़लतफ़हमी किसी तरह नही हल होगी बा हया लड़की की खामोशी इन फूलों में यह हवा भी किसी दो शेजः का आँचल होगी वक्त की अपनी कोई खुशबू कहाँ होती है रात सुलगे गी बदन पर तभी संदल होगी अतर की शीशी लिए चाँद करीब आया था क्या मुझे इल्म था वोह ज़हर की बोतल होगी रेग्जारों की तरह है मेरी पलकों पर बीछि ज़िन्दगी तेरे लिए ख्वाब कल मखमल होगी मिल चुका सबसे गले फिर भी अधूरा सा हूँ तुम मिलोगे तो मेरी ईद मुकम्मल होगी दिल के सन्नाटे पर अब आने वाला ज़वाल इस खान्दर में कोई एक बारगी हलचल होगी कह रहा है मेरा दिल कुछ होने को है अलीम यह मोहब्बत की कशिश मेरी जानिब होगी ।

गन्दी raajniti एक abhishaap है हमारे देश के लिए

कोई अगर हमसे पूछे की इस समय सबसे गन्दी चीज़ क्या आपकी नज़र में है तो मेरा जवाब जल्दी होता है हमारे प्यारे देश की राजनीती जहाँ आज इंसानियत नाम की चीज़ नही रह गई है इन राज नेताओं में हर कोई अपनी गन्दी और घिनौनी चालों से जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करने में व्यस्त है गैर मुद्दे लेकर जनता को लुभाने में लगे हुए है यह उनकी भी तनिक गलती नही सरासर हमारी अपनी है हम उनकी गन्दी राजनीती की मोह जाल में ख़ुद को कैद कर लेते है , आज का नेता हमारे हित में नही बल्कि अपनी रोटी सकने की खातिर हमारी जज्बातों से खूब खेल रहा है भाई - भाई को लड़ा कर , जातिवाद का मुद्दा उठाकर , हिदू मुस्लिम के मुद्दा उठाकर , आदि मुद्दा बनाकर अपनी राजनीती का डंका बजा रहे हैं उन्हें क्या है मरे साडी जनता बस उन्हें पञ्च साल के लिए कुर्सी चाहिए चाहे उसके उन्हें इंसानियत को अपने पैरों टेल रौंदना पड़े वो उसको करने में पीछे क्यों हटेंगे बस उन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ कुर्सी से मतलब है काहे की जनता , जनता तो सिर्फ़ उनके एक भेद बकरे की तरह है जब चाह इस्तेमाल किया और फ़ेंक दिया , इनकी चाल तो देखिये जब इनकी इमेज इतनी खराब हो गई है की अब दूसरा हथक