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Showing posts from August 12, 2009

तो बच्चे को माफ़ कर देना॥

ख़त पढ़ने के पहले ॥ लिखने वाले का नाम लेना॥ उलटा सीधा अगर लिखा हो॥ तो बच्चे को माफ़ कर देना॥ ये प्यार का पहला ख़त लिखा है॥ चुग चुग के शव्दों को सजाया॥ प्रेम की प्यारी स्याही से॥ ढूढ़ ढूढ़ के शव्द मिलाया ॥ पुष्प कलि हमराही से॥ अगर भाव में कही हो गड़बड़॥ तो बच्चे को माफ़ कर देना॥ ये प्यार का पहला ख़त लिखा है॥ प्रेम कहानी पढ़ पढ़ करके ॥ हमने उसको इन शव्दों में ढाला॥ हर लकीर में नाम तुम्हारा॥ तुम्हे लिखा चाहने waalaa॥ इसमे कोई नंगा पण हो ॥ तो बच्चे को माफ़ कर देना॥ ये प्यार का पहला ख़त लिखा है...

भारत बनाम इंडिया.....

पिछले कुछ वर्षों में इस विभाजन को सपष्ट देखा जा सकता है!हमारा देश बहुत तेजी से बदल रहा है...लेकिन इसके दोनों चेहरे बहुत साफ़ साफ़ देखे जा सकते है!.पहला तो वह आधुनिक इंडिया है..जिसमे आसमान छूती इमारते है,साफ़ सड़कें और बिजली से जगमगाते शहर है..!सड़क पर दौड़ती महँगी गाडियाँ विदेश का सा भ्रम पैदा करती है!यहाँ लोग सूट बूट पहने शिक्षित है जो आम बोलचाल में भी अंग्रेज़ी बोलते है...!बड़े बड़े होटल ,माल और .मल्टी प्लेक्स किसी सपने जैसे लगते है..!यहाँ के लोग इंडियन कहलवाना पसंद करते है...!ये हमारे देश का आधुनिक रूप है जो एक सीमित क्षेत्र में दिखाई .देता है...!और इस चका चौंध से दूर कहीं एक भारत बसा है जो अभी भी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है..!यहाँ अभी सड़कें,होटल मॉल नहीं है..बिजली भी कभी कभार आती है...!यहाँ के लोग सीधे सादे है जो बहुत ज्यादा शिक्षित नहीं है,इसलिए इन्हे अपने अधिकारों के लिए अक्सर लड़ना पड़ता है..!इस भारत और इंडिया को देख कर भी अनदेखा करने वाले नेता है जो हमेशा अपना हित साधते रहते है !लेकिन अफ़सोस इस बात का है की हमारी ७० %आबादी गाँवों में रहती है लेकिन इन भारत वासियों के लिए न फिल्में ब
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई..हम इसी तरह मिलकर आगे बढ़ते चले यही शुभकामना है.शायद आप कभी दिन तक मे ना आ पाऊँ इसलिए अभी से बधाई स्वीकार करें सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

ई प्रेम बवंडर सब का लूटा॥

हम जानी दिल हमरे टूटा॥ ई प्रेम बवंडर सब का लूटा॥ केहू केहू कैघर बसाईट ॥ केहूँ केहू का लैके डूबा॥ ई प्रेम बवंडर सब का लूटा॥ केहू केहू कयबाग़ साजाईस ॥ केहू केहू कय तोरिस खूंटा॥ ई प्रेम बवंडर सब का लूटा॥ केहू केहू का हार पिन्हाईस केहू केहू का मारिश जूता॥ ई प्रेम बवंडर सब का लूटा॥ केहू केहू कय साथी बनिगा॥ केहू केहू का कहिस कलूटा॥ ई प्रेम बवंडर सब का लूटा॥ केहू केहू का दूर भागाईस केहू केहू कय आनंद चूसा॥ ई प्रेम बवंडर सब का लूटा॥ केहू केहू का गले लगाईस ॥ केहू केहू कय दर्पण फूटा॥ ई प्रेम बवंडर सब का लूटा॥

ग़ज़ल

वफाओं के बदले यह क्या दे रहे है मुझे मेरे अपने दगा दे रहे है जो पौधे लगाये थे चाहत से मैंने वोह नफरत की क्योंकर हवा दे रहे है कभी मेरे हमदम बिचदना ना मुझसे मोहब्बत के मौसम मज़ा दे रहे है हमारे दिलों से खेले है बरसों उन्हें अब तलक हम दुआ दे रहे है मैं हंसने की बातें करू "अलीम " कैसे मुझे मेरे अपने रुला दे रहे है ।