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Showing posts from December 11, 2009

नव गीत: अवध तन,/मन राम हो... संजीव 'सलिल'

नव गीत: संजीव 'सलिल' अवध तन, मन राम हो... * आस्था सीता का संशय का दशानन. हरण करता है न तुम चुपचाप हो. बावरी मस्जिद सुनहरा मृग- छलावा. मिटाना इसको कहो क्यों पाप हो? उचित छल को जीत छल से मौन रहना. उचित करना काम पर निष्काम हो. अवध तन, मन राम हो... * दगा के बदले दगा ने दगा पाई. बुराई से निबटती यूँ ही बुराई. चाहते हो तुम मगर संभव न ऐसा- बुराई के हाथ पिटती हो बुराई. जब दिखे अंधेर तब मत देर करना ढेर करना अनय कुछ अंजाम हो. अवध तन, मन राम हो... * किया तुमने वह लगा जो उचित तुमको. ढहाया ढाँचा मिटाया क्रूर भ्रम को. आज फिर संकोच क्यों? निर्द्वंद बोलो- सफल कोशिश करी हरने दीर्घ तम को. सजा या ईनाम का भय-लोभ क्यों हो? फ़िक्र क्यों अनुकूल कुछ या वाम हो? अवध तन, मन राम हो... *

लो क सं घ र्ष !: यमराज को भी मिलेगा नोबेल शान्ति पुरस्कार

' शान्ति के लिए युद्ध ' के नारे के साथ अमेरीकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने दुनिया का बहुचर्चित नोबेल शान्ति पुरस्कार प्राप्त किया । व्हाईट हाउस के प्रवक्ता रोबेर्ट गिब्स ने बताया कि " श्री ओबामा युद्ध के नायक के रूप में नोबेल शान्ति पुरस्कार प्राप्त किया है " । नोबेल शान्ति पुरस्कार ने साम्राज्यवादी देशों के मुखिया को शान्ति पुरस्कार देकर नोबेल समिति ने अपने को भी सम्मानित किया है और अपना नकली मुखौटा उतार दिया है । आने वाले दिनों में नोबेल शान्ति पुरस्कार यमराज को भी दिया जा सकता है और इस पर किसी को आश्चर्य नही होना चाहिए । अफगानिस्तान में शान्ति के लिए 30 हजार सैनिक भेजे जा रहे हैं । ईराक में भी प्रतिदिन उनके शोषण के ख़िलाफ़ युद्ध जारी है । पकिस्तान में ओबामा के तालिबानी लड़ाके व पाकिस्तानी सरकार शान्ति का पाठ अपने नागरिको को पढ़ा रही है । शान्ति का अर्थ अमेरिकन साम्राज्यवादियों व उसकी पिट्ठू मीडिया ने बदल दिया है ।

थैंक यू आरो! नये अमिताभ के लिये!

आशुतोष मैनेजिंग एडिटर सात हिंदुस्तानी का सिपाही और जंजीर का एंग्री यंगमैन जवान हो गया है। नये अंदाज और नये रूप में। उसका नया नाम आरो है। उम्र तेरह साल। बस थोड़ी दिक्तत है। वो दिखने मे बूढ़ा लगता है। बड़ा सिर, सिर पर कोई बाल नहीं, नसें बाहर निकलने को बेकरार, मोटा चश्मा, टूटे-फूटे दांत, आवाज फटी-फटी सी। फिर भी कूल। शरारती, हाजिर जवाब और सबका प्यारा। ये अमिताभ है। नया अमिताभ। यानि बिग बी। सिनेमा का महामानव। हमारी पीढ़ी जब जवान हो रही थी तो उसने दूसरा ही अमिताभ देखा था। वो अमिताभ जो लंबा था। भारी भरकम आवाज। कानों तक लटकते बाल और व्यवस्था की आंख में दनदनाता हुआ घूंसा। सिस्टम से नाराज और सिस्टम से बदला लेने को व्याकुल। उसकी हर अदा पर पागल होती जनता और सुपर हिट होती एक के बाद एक फिल्में। लेकिन एक गड़ब़ड थी। ये अमिताभ हर फिल्म में एक ही था। पहले की कार्बन कॉपी। जंजीर में भी वही, दीवार में भी वही, त्रिशूल में भी वही। कोई बदलाव नहीं। अमर अकबर अंथनी हो या फिर सुहाग, या मि नटवरलाल या फिर सत्ते पे सत्ता, वही अंदाज। ये अमिताभ सिर्फ अमिताभ था। कभी-कभी लगता था कि कहानी भी वही बस मामूली फेरबदल।