वेदप्रताप वैदिक लेखक प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक हैं। ठीक एक साल बाद अफगानिस्तान से नाटो फौजों की वापसी शुरू होने वाली है। असल सवाल यह है कि यह वापसी युद्ध जीतते हुए होगी या हारते हुए? जीतना मुश्किल नजर आ रहा है। यह अमेरिकी जनरल मैकक्रिस्टल की बर्खास्तगी ने ही सिद्ध कर दिया है। मैकक्रिस्टल को अफगानिस्तान में अब तक कितनी सफलता मिली, यह अलग प्रश्न है, लेकिन उन्हें ओबामा का ब्रह्मास्त्र माना जाता था। उन्होंने करजई सरकार के साथ जैसा ताल-मेल बिठाया, किसी अन्य अमेरिकी जनरल ने नहीं बिठाया। मैकक्रिस्टल और उनके सहायकों ने अमेरिकी पत्रिका ‘रोलिंग स्टोन’ में ओबामा प्रशासन के बारे में जो अमर्यादित टिप्पणियां की हैं, उनसे पता चलता है कि अफगानिस्तान में अमेरिका की सामरिक स्थिति संतोषजनक नहीं है। इस साल वहां जितने अमेरिकी फौजी मारे गए, पहले कभी नहीं मारे गए। जितना लंबा युद्ध अफगानिस्तान में चला, अमेरिका के इतिहास में पहले कभी नहीं चला। सहयोगी राष्ट्रों में घोर असंतोष है। नीदरलैंड्स, जर्मनी और कनाडा अपने फौजियों को वापस बुला लेना चाहते हैं। इन देशों की संसदों में यह मांग उठती रहती है। जर्मनी के राष्ट्रपति