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Showing posts from July 24, 2010

अनोखी नाव...

वह अचरज की नैया बड़ी अनोखी॥ जो झोड़ गयी मजधार में॥ मै डूब डूब उतरा रहा हूँ॥ मेरा कोई नहीं संसार में॥ मै जैसा जैसाकर्म किया॥ वैसा फल भी पाया हूँ॥ धन दौलत से संपन्न थे॥ दो पुत्र रत्न उपजाया हूँ॥ इस हालत में सारे झोड़ गए॥ मै बिलख रहा बीच धार में॥ मै डूब डूब उतरा रहा हूँ॥ मेरा कोई नहीं संसार में॥ कुछ कर्म हमारे बुरे हुए थे॥ मै उनसे टकराया था॥ लाभ हानि का छोड़ के चक्कर॥ उनको मार गिराया था॥ उस पुन्य पाप को भोग रहा हूँ॥ अब तीर लगा है जान में..

मौत यहाँ रूक जाती है..

पर्वत की शाखाए भारत को॥ तहजीब सलामी करती है॥ रखती है नजर हर कोने में॥ नदिया कल कल कह बहती है॥ उसकी गोदी में सुख संपत्ति॥ हर हर करके लहराती है॥ जब अच्छी अनौकिक घटना घटती... समृधि कड़ी मुस्काती है॥ हसे गगन भी मोती बरसे॥ अमृत रस टपकती है॥ भारत का भण्डार न खली॥ न तो कोई शिकायत है॥ थोड़ा सा मानव भरष्ट हुआ है॥ यही बड़ी हिमाकत है॥ मौत यहाँ पर आते आते ॥ हंस करके रुक जाती है...

पागल पथिक संग चल के,,,

आँखों की गलतियों से॥ मै दीवाना हो गया॥ पागल पथिक संग चल के॥ मै परवाना हो गया॥ रिश्ते बदल गए ॥ अदब हया खो दी॥ अपनी ही जिंदगी में॥ कांटो की बीज बो दी॥ उसको हमें यूं देखे॥ जमाना गुजर गया॥ पागल पथिक संग चल के॥ मै परवाना हो गया॥ शायद माहे वह भूल गयी॥ या मजबूर हो गयी॥ मिल जाओ हमें बिछड़ के॥ क्यों दूर हो गयी॥ चुनरी को तेरे छू के॥ मै मस्ताना हो गया॥ पागल पथिक संग चल के॥ मै परवाना हो गया॥

मस्का मरूगी घडी घडी..

चलो रात आज बतलाय लियो॥ मस्का मरूगी घडी घडी॥ तुम पड़े पड़े चिल्लाओ गे॥ मै हंसा करूगी खड़ी खड़ी॥ आँखों में तुम्हारे चमक रहे॥ होठो से मुस्कान भरी॥ मै सज धज कर के तुम्हे निहारूगी॥ इस पल को दोनों याद करे॥ तुम बाह पकड़ फुस्लाओगे॥ अंखिया चारो जब लड़ी लड़ी॥ चलो रात आज बतलाय लियो॥ मस्का मरूगी घडी घडी॥ जब बातो का मौसम बरस रहा हो॥ दोनों का दिल आह भरे॥ थोड़ी से दूरी बच जाती॥ धोखे की थोड़ी आंच लगे॥ फिर भी अर्पण कर देती हूँ॥ हंसती रहती हूँ पड़ी पड़ी॥ चलो रात आज बतलाय लियो॥ मस्का मरूगी घडी घडी॥ दुःख तकलीफ सहन कर लूगी॥ दूर कही न जाने दूगी॥ सदा तुम्हारी बन करके ॥ आंच न कोई आने दूगी॥ सुख संपत्ति जब हंसा करे॥ सावन लागे झड़ी झड़ी॥ चलो रात आज बतलाय लियो॥ मस्का मरूगी घडी घडी॥

नव गीत: हम खुद को.... संजीव 'सलिल'

नव गीत: हम खुद को.... संजीव 'सलिल' * * हम खुद को खुद ही डंसते हैं... * जब औरों के दोष गिनाये. हमने अपने ऐब छिपाए. विहँस दिया औरों को धोखा- ठगे गए तो अश्रु बहाये. चलते चाल चतुर कह खुद को- बनते मूर्ख स्वयं फंसते हैं... * लिये सुमिरनी माला फेरें. मन से प्रभु को कभी न टेरें. जब-जब आपद-विपदा घेरें- होकर विकल ईश-पथ हेरें. मोह-वासना के दलदल में संयम रथ पहिये फंसते हैं.... * लगा अल्पना चौक रंगोली, फैलाई आशा की झोली. त्योहारों पर हँसी-ठिठोली- करे मनौती निष्ठां भोली. पाखंडों के शूल फूल की क्यारी में पाये ठंसते हैं..... * पुरवैया को पछुआ घेरे. दीप सूर्य पर आँख तरेरे. तड़ित करे जब-तब चकफेरे नभ पर छाये मेघ घनेरे. आशा-निष्ठां का सम्बल ले हम निर्भय पग रख हँसते हैं..... **************** Acharya Sanjiv Salil http://divyanarmada.blogspot.com