प्रिय श्री संजय ग्रोवर, (www.samwaadghar.blogspot.com) , सबसे पहले तो आपको आपकी उत्कृष्ट लेखन शैली के लिये बधाई दिये बिना मैं रह नहीं पा रहा हूं। मुझे लगता है कि यदि आप किसी को गाली भी देते होंगे तो उसे उसमे भी सुवाली जैसा ही आनंद आता होगा। जैसा कि मैने पहले भी जिक्र किया था , मैं ब्लॉग्स की दुनिया में नया - नया बाशिंदा हूं । अभी एक ब्लॉग पर देखा कि उसके स्वामित्वाधिकार को लेकर मार - काट मची हुई है। लोग मिलते जुलते नाम वाले कई सारे ब्लॉग बनाने में जुटे हैं। ऐसे में आपने जिस प्रकार भूमिका बांधते हुए मेरी टिप्पणी को पोस्ट की तरह प्रकाशित किया तो मुझे लगा कि जरूर यह कोई विशेष घटना है। शायद आम तौर पर ऐसा नहीं होता होगा। इसीलिये आपकी दरियादिली की तारीफ में कुछ कह बैठा था । यदि कुछ अनुचित लिख बैठा था तो क्षमा प्रार्थी हूं । डी - सेक्सुअलाइज़ेशन शब्द मैने आपके ही कॉलम में पढ़ा था । हो सकता है , आपकी पोस्ट के उत्तर में आई हुई टिप्पणियों में से किसी एक में रहा हो । पर शब्द न भी सही , विचार तो आपके यही हैं न ? " स्त्री को अपनी कई समस्याओं से जूझने-निपटने क