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Showing posts from November 28, 2009

लो क सं घ र्ष !: न्यायपालिका की स्वतंत्रता-4

संवैधानिक मिथ्या या राजनैतिक सत्य आश्चर्यजनक रूप से सुप्रीम कोर्ट का एक कार्यरत जज इस बात पर जोर दे रहा था कि व्यक्तिगत अधिकार तथाकथित राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों के कारण दबा दिए जाएँगे। 9/11 की आतंकवादी घटना से सम्बंधित बहुत से ऐसे प्रश्न हैं जिनका जवाब अभी प्राप्त नहीं हुआ है तथा उनमें ऐसे प्रश्न भी हैं जिनको तकनीकी एवं इन्जीनियरिंग विशेषज्ञों ने उठाया है। वास्तविकता यह है कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध का तात्पर्य मुख्य आर्थिक संस्थाओं एवं घरानों के द्वारा युद्ध है जो संयुक्त राज्य अमेरिका में इस गूढ़ आर्थिक एवं राजनैतिक संकट के समय में राजनैतिक विरोध को दबाने के लिए किया जा रहा हैं कुछ महत्वपूर्ण मुकदमों के अध्ययन से जो कि 1990 या उसके आसपास हुए हैं , यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाएगी कि संयुक्त राज्य अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट एवं भारत के सुप्रीम कोर्ट दोनों मंे कौन ज्यादा स्वतंत्र है। संयुक्त राज्य अमेरिका के उपराष्ट्रपति डिक चेनी बनाम संयुक्त

चीन अमेरिका की मजबूरी पर भारत जरूरी

डॉ. वेदप्रताप वैदिक प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की वाशिंगटन-यात्रा के दौरान परमाणु-सौदे को लागू करने की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई लेकिन क्या सिर्फ इसीलिए उनकी इस यात्रा को मात्र् औपचारिकता मान लिया जाए ? क्या यह मान लिया जाए कि ओबामा ने भारत के उन घावों पर सिर्फ मरहम लगाने का काम किया, जो अचानक ही पिछले हफ्ते उनकी चीन यात्र के दौरान उभर आए थे ? जहां तक परमाणु-सौदे का प्रश्न है, स्वयं प्रधानमंत्री ने कहा है कि कुछ ही हफ्तों में सारे मुद्दों पर समझौता हो जाएगा| ओबामा ने भी उनके इस कथन का समर्थन किया है| यह तो हमें पता है कि ओबामा और उनके डेमोक्रेट साथियों ने बुश द्वारा किए गए परमाणु-सौदे के कई प्रावधानों का विरोध किया था और ओबामा प्रशासन परमाणु-अप्रसार का घनघोर समर्थक है| ऐसी हालत में यदि सौदे के कुछ मुद्दों को लेकर दोनों पक्षों के बीच कुछ खींचातानी चल रही है तो यह स्वाभाविक ही है| इसके अलावा सबसे अधिक ध्यातव्य बात यह है कि किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत को पहली बार 'परमाणु शक्ति' कहा है और अगले साल होनेवाले परमाणु अप्रसार सम्मेलन में उससे भाग लेने का आग्रह किया है| यह भारत क