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Showing posts from March 15, 2009

प्यार के नाम

अफसाना बनाने चला था मैं उसको दीवाना बनाने चला था मैं देख कर इक झलक उसकी रूह_ऐ तमन्ना कह उठी अब इबादत करूँ किसकी खुदा की या उस चाँद की दीवाना कर दिया उसकी इक नज़र ने बेकरार कर दिया उसकी उसी नज़र ने या खुदा मुझे कोई रास्ता बता दे या वो रुख से नकाब हटा दे या तू रुख से नकाब हटा दे मेरी इक इल्तिजा मन मेरे मौला मुझको मेरे महबूब का दीदार करा दे दिखती है उसकी सूरत में तेरी सूरत कुछ ऐसा कर मेरे मौला उसके रुख से नकाब उठा दे यदि देना है नज़राना तुझे मेरी बंदगी का मेरी इबादत का मेरे रोजे का मेरे मौला कर इशारा कुछ ऐसा या तू देख मेरी ओर या नज़र उसकी मुझ पर कर दे अब और किसी जन्नत का मुझे सबाब नहीं उसके कदमों में मेरी जन्नत है मौला बस इक आरजू है इल्तजा है इक बार रुख से नकाब उठ जाए मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए।। ज्ञानेंद्र rastey2manzil.blogspot.com

प्रजातान्त्रिक भारत का राजवंश

लोकतंत्र मूर्खों का शासन होता है पर, यहाँ तो मूर्खों ने लोकतंत्र को हीं राजशाही की ओर ठेल दिया है। राजतन्त्र नहीं तो और क्या है? गाँधी, सिंधिया, पायलट, ओबेदुल्लाह जैसे खानदान ही शासन में बचे हैं। ये तो चंद बड़े नाम हैं छोटे-छोटे स्तरपर भी कई मंत्री - सन्तरी भी बाप दादा की कुर्सी जोग रहें है। आज भी तो वही हो रहा है, पहले ताजपोशी होती थी अब प्रक्रिया थोडी बदल गई है। सेवानिवृत होते-होते राजनेता अपने उतराधिकारी(भाई-बंधुओं) को मूर्खों की सभा में भेजते हैं, जहाँ उनको तथाकथित छद्म लोकतान्त्रिक तरीकों से चुना जाता है।लोकतंत्र के मंदिरों में बाप, बाप के बाद बेटा, फ़िर पोता! राजनीति का खून तो जैसे इनकी धमनियों में दौड़ता है। एक साथ दो -तीन पीढियां सत्ता का रसास्वादन कर रहीं हैं। सरकार से भी बुरे हालात हैं राजनीतिक दलों के, वहां तो बगैर चुनावी ढोंग अपनाए ही वंशवादी नेतृत्व का बोझ कार्यकर्ताओं के कन्धों पर सौंप दिया जाता है। ५० सालों से देश कि एक बड़ी पार्टी कांग्रेस नेहरू खानदान के चंगुल में फंसी हुई है । अब तक तो यही हुआ कि हर मुद्दे पर जनता की भावना को उभारकर कांग्रेस ने सालो तक राज किया । राजनीत

''हिन्दुस्तान का दर्द ब्लॉग हिन्दू या मुस्लिम का नहीं है''

''हिन्दुस्तान का दर्द''के एक बहुत ही बुद्धीजीवी लेखक सलीम खान जो बेहद अच्छे और काबिल मुद्दों पर कलम उठाते है उनको पढ़कर हमेशा से ही अच्छा महसूस होता है,क्योंकि इन मुद्दों पर आवाज़ रखने की आम लोगों में कम ही देखी जाती है ! सलीम खान जी ने कल एक पोस्ट पर प्रशांत जी की बात को गलत ठहराया था,क्योंकि मेरे ख्याल से प्रशांत जी वहा गलत थे !इसके बाद प्रशांत जी ने एक पोस्ट लिखी ''हां हर मुस्लिम आतंकवादी है''जो इस्लाम के विरुद्ध थी !मैंने भी इसका खंडन किया..! इस पोस्ट के नीचे दिए एक कमेंट्स पर मेरी नजर गयी जो अनाम व्यक्ति का था उसकी बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया..!! यहाँ पर सोचने की बजह सलीम जी नहीं है बल्कि नीच मानसिकता वाला बह लेखक है जो यह कहता है की सलीम जी अगर इस्लाम की बताओ को हमारे साथ बांटते है तो वो इस्लाम को इस ब्लॉग पर हावी करना चाहते है !पर मुझे तो कभी ऐसा नहीं लगा क्योंकि मेरी नजर मे धर्म सब एक जैसे है,यदि लोगों को इस्लाम की जानकारी मिल रही है तो गलत क्या है! मैं आप लोग से जानना चाहता हूँ की क्या कभी आपको सलीम जी की पोस्ट से ऐतराज़ हुआ,परेशानी हुई !

आधी रात को सूरज का नज़र आना!

नॉर्वे में आधी रात को भी सूरज कैसे दिखाई देता है . यह सवाल किया है ग्राम बभनगामा मधेपुरा बिहार के चन्द्रशेखर कुमार ने . चन्द्रशेखर जी , नॉर्वे में ही नहीं , आर्कटिक घेरे के उत्तर में और अंटार्कटिक घेरे के दक्षिण में पड़ने वाले सभी इलाकों में गर्मियों के मौसम में आधी रात को भी सूरज दिखाई देता है . अगर मौसम साफ़ हो तो यहां 24 घंटे सूरज नज़र आता है . आर्कटिक घेरे के उत्तर में पड़ने वाले देश हैं कनाडा , अमरीका का राज्य अलास्का , ग्रीनलैंड , नॉर्वे , स्वीडन , फ़िनलैंड , रूस और आइसलैंड जबकि अंटार्कटिक घेरे के दक्षिण में कोई बसावट नहीं है . अब आपका सवाल कि ऐसा क्यों होता है . शायद आप जानते हैं कि पृथ्वी अपनी धुरी पर 23.5 डिग्री झुकी हुई घूमती है . इसलिए गर्मियों के मौसम में सूरज डूबता ही नहीं . उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव पर तो सूरज वर्ष में एक बार उगता है और एक बार डूबता है . जिसका परिणाम यह होता है कि लगभग छह महीने दिन रहता है और छह महीने रात

पेट भरने के लिए चकले खुलवाना चाहती हैं महिलाएं!

आतंकवाद ने जम्मू कश्मीर में कई परिवारों को तबाह कर दिया है। हजारों लोग आज भी बेघर हो विस्थापन कैंप में जिंदगी गुजार रहे है। सरकार इन लोगों की खराब हालत के बारे में जानती तो है लेकिन वायदों के सिवाए कुछ नहीं करती। जम्मू के एक इलाके में विस्थापितों की हालत भी कुछ इसी तरह है। लेकिन सिटीज़न जर्नलिस्ट बलवान सिंह पिछले 10 साल से इन लोगों के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। उनकी लड़ाई है आतंकवाद की वजह से विस्थापित हुए लोगों को सरकार से मुआवजा दिलवाने के लिए। कश्मीर के बाकी जिलों की तरह रियासी भी आतंकवाद की चपेट में था। खून खराबे के बीच 1998-99 में लगभग 1000 परिवार अपनी जान बचाकर अपना घर बार छोड़ कर तलवाड़ा कैंप पहुंचे। इनके पारिवार के कई लोगों को आतंकियों ने मार दिया और कई को उनके ही घर से खदेड़ दिया। यहां पहुंच कर इनकी जान तो बच गई लेकिन जिंदगी को नए सिरे से दोबारा शुरू करना इनके लिए मुश्किल हो गया। इनके पास न सिर पर छत थी और न खाने की व्यवस्था। बच्चे भूखे मर रहे थे। हालत यहां तक बिगड़े कि अपना पेट पालने के लिए इन्होंने अपने बच्चों को बेचने की मंडी लगाई। कुछ औरतों ने तो सरकार से चकला शुरू करने

लघुकथा-संजीव वर्मा

समय का फेर गुरु जी शिष्य को पढ़ना-लिखना सिखाते परेशां हो गए तो खीझकर मारते हुए बोले- ' तेरी तकदीर में तालीम है घ नहीं तो क्या करुँ? तू मेरा और अपना दोनों का समय बरबाद कार रहा है. जा भाग जा, इतने समय में कुछ और सीखेगा तो कमा खायेगा. गुरु जी नाराज तो रोज ही होते थे लेकिन उस दिन चेले के मन को चोट लग गयी. उसने विद्यालय आना बंद कर दिया, सोचा 'आज भगा रहे हैं. ठीक है भगा दीजिये, लेकिन मैं एक दिन फ़िर आऊंगा... जरूर आऊंगा. गुरु जी कुछ दिन दुखी रहे कि व्यर्थ ही नाराज हुए, न होते तो वह आता ही रहता और कुछ न कुछ सीखता भी. धीरे-धीरे. गुरु जी वह घटना भूल गए. कुछ साल बाद गुरूजी एक अवसर पर विद्यालय में पधारे अतिथि का स्वागत कर रहे थे. तभी अतिथि ने पूछा- 'आपने पहचाना मुझे? गुरु जी ने दिमाग पर जोर डाला तो चेहरा और घटना दोनों याद आ गयी किंतु कुछ न कहकर चुप ही रहे. गुरु जी को चुप देखकर अतिथि ही बोला- 'आपने ठीक पहचाना. मैं वही हू

कहीं आदमी पागल तो नहीं.....!!

लड़का होता तो लड्डू बनवाते....लड़का होता रसगुल्ले खिलाते......... इस बात को इतनी जगह...इतनी तरह से पढ़ चूका कि देखते ही छटपटाहट होती है....मेरी भी दो लडकियां हैं...और क्या मजाल कि मैं उनकी बाबत लड़कों से ज़रा सा भी कमतर सोचूं....लोग ये क्यूँ नहीं समझ पाते....कि उनकी बीवी...उनकी बहन....उनकी चाची...नानी...दादी....ताई.....मामी...और यहाँ तक कि जिन-जिन भी लड़कियों या स्त्रियों को वे प्रशंसा की दृष्टि से देखते हैं...वो सारी की सारी लड़किया ही होती हैं....लोगों की बुद्धि में कम से कम इतना भर भी आ जाए कि आदमी के तमाम रिश्ते-नाते और उनके प्यार का तमाम भरा-पूरा संसार सिर्फ-व्-सिर्फ लड़कियों की बुनियाद पर है....पुरुष की सबसे बड़ी जरुरत ही स्त्री है....सिर्फ इस करके उसने वेश्या नाम की स्त्री का ईजाद करवा डाला......कम-से-कम इस अनिवार्य स्थिति को देखते हुए भी वो एक सांसां के तौर पर औरत को उसका वाजिब सम्मान दे सकता है...बाकी शारीरिक ताकत या शरीर की बनावट के आधार पर खुद को श्रेष्ट साबित करना इक झूठे दंभ के सिवा कुछ भी नहीं....!! अगर विपरीत दो चीज़ों का अद्भुत मेल यदि ब्रहमांड में कोई है त

माटी मेरे देश की

शत्रुओं को सदा मुँहतोड़ देती है जवाब किन्तु मित्र की है मित्र माटी मेरे देश की भारत की रक्षा करें मौत से कभी न डरें ऐसे देती है चरित्र माटी मेरे देश की शौर्य की भी जननी है शान्ति की भी अग्रदूत सचमुच है विचित्र माटी मेरे देश की सीने से लगाओ चाहो माथे से करो तिलक चंदन से भी पवित्र माटी मेरे देश की माँ समान ममता की छाँव देती है सभी को बांटती असीम प्यार माटी मेरे देश की अन्नपूर्णा समान आशीषों से पालती है स्नेह का है पारावार माटी मेरे देश की वीरता अखंड बुद्धि बल में प्रचंड और पापियों पे है प्रहार माटी मेरे देश की दुष्ट का दमन करे वीरों का सृजन करे शक्ति स्रोत है अपार माटी मेरे देश की क्रूर पापी देशद्रोहियों के बाजू बढ़ रहे सह रही अत्याचार माटी मेरे देश की काल सम झेलती है देखो आज दिन रात बम गोली तलवार माटी मेरे देश की अपनों की गद्दारी से हुई बेबसी में सुनो युगों युगों से शिकार माटी मेरे देश की शूरवीरों आगे आओ दुःख धरा का मिटाओ आज करती पुकार माटी मेरे देश की अरुण 'अद्भुत'