अफसाना बनाने चला था मैं उसको दीवाना बनाने चला था मैं देख कर इक झलक उसकी रूह_ऐ तमन्ना कह उठी अब इबादत करूँ किसकी खुदा की या उस चाँद की दीवाना कर दिया उसकी इक नज़र ने बेकरार कर दिया उसकी उसी नज़र ने या खुदा मुझे कोई रास्ता बता दे या वो रुख से नकाब हटा दे या तू रुख से नकाब हटा दे मेरी इक इल्तिजा मन मेरे मौला मुझको मेरे महबूब का दीदार करा दे दिखती है उसकी सूरत में तेरी सूरत कुछ ऐसा कर मेरे मौला उसके रुख से नकाब उठा दे यदि देना है नज़राना तुझे मेरी बंदगी का मेरी इबादत का मेरे रोजे का मेरे मौला कर इशारा कुछ ऐसा या तू देख मेरी ओर या नज़र उसकी मुझ पर कर दे अब और किसी जन्नत का मुझे सबाब नहीं उसके कदमों में मेरी जन्नत है मौला बस इक आरजू है इल्तजा है इक बार रुख से नकाब उठ जाए मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए मुझको मेरे खुदा का दीदार हो जाए।। ज्ञानेंद्र rastey2manzil.blogspot.com