मुक्तिका: फिर ज़मीं पर..... संजीव 'सलिल' * फिर ज़मीं पर कहीं काफ़िर कहीं क़ादिर क्यों है? फिर ज़मीं पर कहीं नाफ़िर कहीं नादिर क्यों है? * फिर ज़मीं पर कहीं बे-घर कहीं बा-घर क्यों है? फिर ज़मीं पर कहीं नासिख कहीं नाशिर क्यों है? * चाहते हम भी तुम्हें चाहते हो तुम भी हमें. फिर ज़मीं पर कहीं नाज़िल कहीं नाज़िर क्यों है? * कौन किसका है सगा और किसे गैर कहें? फिर ज़मीं पर कहीं ताइर कहीं ताहिर क्यों है? * धूप है, छाँव है, सुख-दुःख है सभी का यक सा. फिर ज़मीं पर कहीं तालिब कहीं ताजिर क्यों है? * ज़र्रे -ज़र्रे में बसा वो न 'सलिल' दिखता है. फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यों है? * पानी जन आँख में बाकी न 'सलिल' सूख गया. फिर ज़मीं पर कहीं सलिला कहीं सागर क्यों है? * -- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम कुछ शब्दों के अर्थ : काफ़िर = नास्तिक, धर्मद्वेषी, क़ादिर = समर्थ, ईश्वर, नाफ़िर = घृणा करनेवाला, नादिर = श्रेष्ठ, अद्भुत, बे-घर = आवासहीन, बा-घर = घर वाला, जिसके पास घर हो, नासिख = लिखनेवाला, नाशिर = प्रकाशित करनेवाला, नाज़िल = मुसीबत, नाज़ि