Skip to main content

Posts

Showing posts from May 14, 2009

कौन सबसे ज़्यादा लोकसभा सीट हासिल करेगा ?

आप सभी हिन्दुस्तान के दर्द के पाठकों से अनुरोध है कि कृपया उ स पार्टी  अथवा गठबंधन का नाम बताईये जो आगामी लोकसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा सीट हासिल करेगी?  आपकी क्या राय है, बताईये ??????

वाह ! आइडिया का उपभोक्ता का पैसा इस्तेमाल करने का क्या आइडिया है

सलीम अख्तर सिद्दीकी मैं आइडिया मोबाइल कम्पनी का लगभग 6 साल पुराना उपभोक्ता हुं। यह कम्पनी अपने पुराने उपभोक्ताओं की कतई परवाह नहीं करती। बिल लेट होने पर 100 रुपये का जुर्माना वसूूल करती है। आउटगोइंग बंद कर देती है। मैं थोड़ा लापरवाह किस्म का इंसान हूं। लगभग पिछले 6-7 महीनों से लेट बिल जमा कर रहा हूं और 100 रुपये का जुर्माना भी अदा कर रहा हूं। अबकी बार भी ऐसा ही हुआ। 5 मई बिल जमा करने की तारीख थी। मैंने बिल जमा किया 11 मई को। फोन चालू था। लेकिन तीन दिन बाद आज 14 मई को 12 बजे के करीब मेरी आउटगोइंग बन्द कर दी गयी। कस्टमर केयर पर फोन किया तो कहा गया कि कम्पनी के पास अभी आपका बिल पेड नहीं हुआ है, इसलिए फोन बंद किया गया हैं। मुझे सलाह दी गयी कि जहां आपने बिल जमा किया है, वहां जाकर रसीद दिखाकर फोन चालू करा लें। सवाल यह है कि जब मैंने बिल जमा करा दिया है तो यह मेरी जिम्मेदारी क्यों है कि मैं बीस किलोमीटर दूर जाकर रसीद दिखाउं कि भैया मैंने आपके पास बिल जमा करा दिया है, मेरा फोन चालू कर दें। सवाल यह भी है कि यदि मैं ऐसी जगह होता, जहां पीसीओ की सुविधा नहीं होती और मुझे इमरजैंसी फोन करने की जरुरत प

नवगीत: आचार्य संजीव 'सलिल', संपादक दिव्य नर्मदा

कहीं धूप क्यों?, कहीं छाँव क्यों??... सबमें तेरा अंश समाया, फ़िर क्यों भरमाती है काया? जब पाते तब- खोते हैं क्यों? जब खोते तब पाते पाया। अपने चलते सतत दाँव क्यों?... नीचे-ऊपर, ऊपर-नीचे। झूलें सब तू डोरी खींचे, कोई डरता, कोई हँसता। कोई रोये अँखियाँ मींचे। चंचल-घायल हुए पाँव क्यों?... तन पिंजरे में मन बेगाना। श्वास-आस का ताना-बाना। बुनता-गुनता चुप सर धुनता। तू परखे, दे संकट नाना। सूना पनघट, मौन गाँव क्यों?... ******

Loksangharsha: साम्प्रदायिकता और स्वार्थ

इस संघर्ष के युग में हर किसी को गिरोहबंदी की सूझती है। जो गिरोह बना सकता है,वह जीवन के हर एक विभाग में सफल है,जो नही बना सकता ,उसकी कहीं पूँछ नही -कहीं मान नही। हम अपने स्वार्थ के लिए अपने जात और अपने प्रान्त की दुहाई देते है । अगर हम बंगाली है,और हमने दवाओ की दुकान खोली है ,तो हम हरेक बंगाली से आशा रखते है की वह हमारा ग्राहक हो जाए ,हम बंगालियों को देख कर उनसे अपनापन का नाता जोड़ते है और अपने स्वार्थ के लिए प्रांतीय भावना की शरण लेते है । अगर हम हिंदू है और हमने स्वदेशी कपड़ो की दुकान खोली है ,तो हम अपने हिंदुत्व का शोर मचाते है और हिन्दुवो की साम्प्रदायिकता को जगाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते है । अगर इसमें सफलता न मिली ,तो अपनी जाती विशेष की हांक लगते है । इस तरह प्रांतीयता और साम्प्रदायिकता की जड़ भी कितनी ही बुरइयो की भांति हमारी आर्थिक परिस्तिथि से पोषक रस खींच कर फलती फूलती रहती है। हम अपने ग्राहकों को विशेष सुविधा देकर अपना ग्राहक नही बनते , सम्भव है उसमें हमारी हानि हो , इसलिए जातीय भेद की पूँछ पकड़कर बैतरणी के पास पहुँच जाते है । -प्रेमचंद, 19 फरवरी 1934 (आतंकवाद का सच से साभार

मां काली का रंग क्या काला है?

विनय बिहारी सिंह प्रचलित मूर्तियों में मां काली का रंग काला दिखाया जाता है। लेकिन जिन संतों ने उनका जीवंत दर्शन किया है जैसे- रामकृष्ण परमहंस, परहमहंस योगानंद, रामप्रसाद सेन आदि, उनका कहना है कि मां काली काले रंग की नहीं हैं। तो फिर उन्हें काली क्यों कहा जाता है? उनका कहना है कि चूंकि वे काल को नियंत्रित करती हैं, इसलिए उन्हें काली कहा जाता है। मां काली के वश में है काल। इसीलिए तो उनके भक्त कहते हैं- मां मेरा हृदय, मेरी बुद्धि और मेरी आत्मा तुम ले लो और सिर्फ मुझे अपनी शुद्धा भक्ति दो, प्रेम दो। तो मां क्या उत्तर देती हैं? मां तो मां ही हैं। वे कहती हैं- पुत्र, सब कुछ तो तुम्हारा ही है। इस जगत में तुम पाठ सीखने आए हो। दुखों से घबराओ नहीं, परेशानियों से परेशान मत होओ और मन को उद्विग्न मत होने दो। सब कुछ भूल जाओ और मुझे याद करो। मैं तो तुम्हारे प्रेम की भूखी हूं। तुम जब शुद्ध मन से मुझे याद करोगे तो मैं तुम्हारे पास मौजूद रहूंगी।

Loksangharsha: तुझसे बेहतर तेरी अदा जाने..

जितना बढ़ चढ़ के आइना जाने॥ हुस्न क्या शै है कोई क्या जाने॥ किस की जुल्फों को छूके आई है - महकी महकी हुई हवा जाने ॥ मौत किसको मिली हयात किसे- तुझसे बेहतर तेरी अदा जाने ॥ ऐश वालो से पूछते क्या हो - लज्जत गम तो ये गदा जाने ॥ यु तो रहते हो साथ साथ मगर - कब बिछड जाए वो खुदा जाने ॥ किस कदर तुमसे प्यार है भगवन - ये मेरी अपनी आत्मा जाने ॥ मैं वो '' राही '' हूँ जो फजले खुदा रास्ता सिर्फ़ प्यार का जाने ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल '' राही ''

ग़ज़ल

ए मेरी जाने ग़ज़ल ...... ए मेरी जाने ग़ज़ल....... कोई मिलता नहीं ही तेरी तरह तेरा बदल ए मेरी जाने ग़ज़ल..... ए मेरी जाने ग़ज़ल.... तेरी आंखें है या कोई जादू..... तेरी बातें है या कोई खुशबू.... जब भी सोचता हूँ तुझको दिल जाता है मचल ए मेरी जाने ग़ज़ल....... तेरी यादों में रोज़ रोता हूँ सुबह होती है तो मैं सोता हूँ तुझको पाने में खुद को खोता हूँ तू मुझे अपना बना ले या मेरे दिल से निकल ए मेरी जाने ग़ज़ल........ हर सू बजती है शहनाई खुशबू बनती है पुरवाई जब तू लेती है अंगडाई यूँ खिले तेरा बदन जैसे कोई ताजा कँवल ए मेरी जाने ग़ज़ल......... पागल कर देगी तेरी तन्हाई कैसे सहूँ मैं तेरी जुदाई अब तो आजा ए हरजाई बिन तेरे मेरा गुज़रता नहीं मेरा एक पल ए मेरी जाने जाने ग़ज़ल........ मैं तेरा दिल हूँ तू धड़कन है मैं चेहरा हूँ तू दर्पण है मैं प्यासा हूँ तू सावन है मैं तेरा शाहजहाँ तू मेरी मुमताज़ महल ए मेरी जाने ग़ज़ल....... ए मेरी जाने ग़ज़ल.............