Skip to main content

Posts

Showing posts from October 23, 2010

कुच्छ फुर्सत के पल लहरों के संग

                        आज हम सागर किनारे आये हैं              कुच्छ उसकी और कुच्छ अपनी सुनाने लाये हैं ! किसको फुर्सत है इस भरी  दुनिया मै ,                      इसलिए सिर्फ तन्हाई ही साथ लाये हैं ! जानते हैं हम की वो भी अकेला है !                   क्युकी दुनिया तो भीड़ भरा मेला है ! सब तेरे पहलु मै आके चले जाते हैं !                  अपना हर दर्द तुझको सुना जाते हैं ! शायद तेरी ख़ामोशी का फायदा उठाते हैं !                 तेरे भीतर  के दर्द को न जान पाते हैं ! तेरी हिम्मत की हम दाद देते हैं !                   फिर भी तुझसे ये राज़ आज पूछते है ! क्या  एसी बात है की इतना खामोश है तू !                   हम तो थोड़े से गम मै ही टूट जाते हैं ! तेरी लहरों से तो हमे डर लगता है !                   फिर भी तुझमे समां जाने का दिल करता है ! ना जाने किस किनारे मै ले जाएँगी ये लहरें !                   बस तुझसे बिझ्ड़ने का ही डर रहता है !