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Showing posts from January 25, 2010
गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत: सारा का सारा हिंदी है आचार्य संजीव 'सलिल' * जो कुछ भी इस देश में है, सारा का सारा हिंदी है. हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है.... मणिपुरी, कथकली, भरतनाट्यम, कुचपुडी, गरबा अपना है. लेजिम, भंगड़ा, राई, डांडिया हर नूपुर का सपना है. गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा, चनाब, सोन, चम्बल, ब्रम्हपुत्र, झेलम, रावी अठखेली करती हैं प्रति पल. लहर-लहर जयगान गुंजाये, हिंद में है और हिंदी है. हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है.... मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजा सबमें प्रभु एक समान. प्यार लुटाओ जितना, उतना पाओ औरों से सम्मान. स्नेह-सलिल में नित्य नहाकर, निर्माणों के दीप जलाकर. बाधा, संकट, संघर्षों को गले लगाओ नित मुस्काकर. पवन, वन्हि, जल, थल, नभ पावन, कण-कण तीरथ, हिंदी है. हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है.... जै-जैवन्ती, भीमपलासी, मालकौंस, ठुमरी, गांधार. गजल, गीत, कविता, छंदों से छलक रहा है प्यार अपार. अरावली, सतपुडा, हिमालय, मैकल, विन्ध्य, उत्तुंग शिखर. ठहरे-ठहरे गाँव हमारे

लो क सं घ र्ष !: गणतंत्र दिवस पर विशेष: बोलो देश बंधुओ मेरे .......

अंधे भूखे अधनंगे जो , फुटपथों पर रात बिताएं । बोलो देश बंधुओं मेरे , वे कैसा गणतंत्र मनाएं ॥ पेट की आग बुझाने खातिर , जो नित सुबह अँधेरे उठकर अपना - अपना भाग बटोरते , कूड़े के ढेरों से चुनकर । गंदे नालों के तीरे जो , डेरा डाले दिवस बिताएं ॥ बोलो देश ...... बिकल बिलखते भूखे बच्चे , माओं की छाती से चिपटे , तन पर कुछ चीथड़े लपेटे , सोये झोपड़ियों में सिमटे । दीन - हीन असहाय , अभागे , ठिठुर - ठिठुर कर रात बिताएं ॥ बोलो देश .......... जिनका घर , पशुधन , फसलें , विकराल घाघरा बहा ले गयी । कोई राहत , अनुदान नहीं , चिरनिद्रा में सरकार सो गयी । सड़क किनारे तम्बू ताने , शीत लहर में जान गवाएं ॥ बोलो देश ......... वृद्ध , अपंग , निराश्रय जिनको , सूखी रोटी के लाले हैं , उनके हिस्से के राशन में , कई अरब के घोटाले हैं । वे क्या जन गण मंगलदायक , भारत भाग्य विधाता गायें ॥ बोलो देश ...... बूँद - बूँद पानी को तरसें , झांसी की रानी की धरती । अभी विकास की बाट जोहती बुंदेले वीरों की बस्ती । जहाँ अन्नद

आँखों का इशारा..

आँखों का इशारा करके जब॥ इंसान समाता है उसमे॥ मिल जाते दोने एक लय में॥ हर्षित होता प्यारा मन॥ फिर रूप निखारने लगता है॥ कलियाँ फूल बन जाती है॥ अपने प्यारे उपवन में फिर॥ खिशिया मंगल गाती है॥

अब देर न कर रूठन वाले॥

रूठ कर क्यों बैठे हो टूटे दिल॥ हमसे भी ज़रा तो बात कर ले॥ सूखा है समुन्दर तपिस बढ़ी॥ हे मेघ ज़रा बरसात कर दे। हरियर क्यारी हो जायेगी॥ कलियों का खिलाना जारी होगा॥ भवरे भी मचलते आयेगे॥ हे यार अब उपकार कर दे॥ हम आस लगाए बैठे है कब से॥ तुम मांग सजाओ गे मेरी॥ सोलह सिंगर जब कर निकालू॥ सकुचा जाएगी समय घडी॥ अब देर न कर रूठन वाले॥ थोड़ी से मुस्कान दे दे॥

महफ़िल सजा ली..

जिंदगी जब हंस के बोली॥ राह पर चलता गया मै॥ भूल कर अज्ञान बना न॥ न तो ईर्ष्या द्वेष मन में॥ भाग्य ने धोखा दिया न॥ न तो पथ से भटका मै॥ सब सितारे साथ मिलकर॥ करते है क्या हंसी ठिठोली॥ जीव जंतु मायूस न होते॥ नदिया कलरव कर सुनाती॥ पर्वतो की महिमा निराली॥ प्रिये पवन खूब गीत सुनाती॥ आसमा धरती के मध्य मै॥ एक सही महफ़िल सजा ली॥