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Showing posts from October 14, 2009

लो क सं घ र्ष !: कैसे हो दीपावली ?

( चित्र : चर्चा हिन्दी चिट्ठो की से साभार ) असत्य पर सत्य की विजय का त्यौहार दीपावली एक महत्वपूर्ण सामाजिक पर्व है । बाराबंकी में इस वर्ष सरकार की लापरवाही से दो बार घाघरा नदी में कृतिम बाढ़ आ चुकी है । सितम्बर माह में भारत नेपाल सीमा पर बनकशा बाँध का पानी घाघरा नदी में छोड़ दिया गया जिससे लखीमपुर , सीतापुर व बाराबंकी में नदियों का पानी लाखो घरो के अन्दर दो - दो तीन - तीन फ़ुट भर गया । नदियों के किनारे के गावों में दस - दस फीट पानी आ गया और सब कुछ नष्ट हो गया । अब अक्टूबर माह में जो बची - खुची फसलें थी । फिर बनकशा बाँध ने पानी छोड़ा वो बाराबंकी में घाघरा नदी पर बने एल्गिन ब्रिज पर बने खतरे के निशान से 100 सेंटीमीटर अधिक पानी बहना शुरू कर दिया जहाँ कभी भी नदी का पानी नही पहुँचता था वहां भी धान की तैयार फसल उरद , गन्ना सहित सभी फसलें नष्ट हो गई है हजारो गावों में सांप बिच्छी जैसे खत

रात का रिपोर्टर

टेलीफोन-बूथ के शीशे से बाहर वह दिखाई दी- एक छोटी-सी लड़की साइकिल के पिचके टायर को पेड़ की एक सूखी शाख से हाँकते हुए ले जा रही थी। टायर कभी आगे निकल जाता तो वह भागते हुए उसे पकड़ लेती, कभी वह आगे निकल जाती और टायर का रबड़ कोलतार की चिपचिपाती सड़क पर अटक जाता, लड़खड़ाकर गिर जाता, वह पीछे मुड़कर उसे दुबारा उठाती, सीधा करती, अपनी शाख हवा में घुमाती और वह मरियल मेमने-सा फिर आगे-आगे लुढ़कता जाता।फोन कान से चिपका था, आँखें लड़की पर; धूप के सुनहरी धब्बे बूथ के शीशे पर चमचमा रहे थे। ‘हलो हलो...’ वह कुछ बेताब होकर चिल्लाया। फोन के भीतर की घुर्र-घुर्र में दूसरी तरफ की आवाज कुछ इसी तरह अटक जाती थी, जैसे बच्ची का टायर। उसके हाथ के पसीने में फोन चिपचिपा रहा था-‘हलो राय साहब सुनिए, यह मैं हूँ’ ! उसने जल्दी से फोन दूसरे कान में लगाया और धीरज की साँस ली, ‘जी हैँ, मैंने इसलिए फोन किया था कि आज मैं देर से आऊँगा जी हाँ, पहली किश्त अपने साथ ले आऊँगा...जी नहीं, घर में सब ठीक हैं; माँ, उनके बारे में क्या ? वह हँसने लगा, ‘नहीं जी, उन्हें कुछ नहीं हुआ।’ राय साहब की ह्यूमर माँ के आसपास घूमती थी। वे सोचते थे, मा

जीवन भर बन्दा आह भरे ॥

रूदन करे मन की अभिलाषा॥ सूख गयी हो प्रेम पिपासा॥ मन कुंठा हो रूदन करे॥ बीते पल का प्रश्न करे॥ तब अन्ता मन मुरझा जाता.. झुक जाती तब दोनों डाली.. जीवन भर बन्दा आह भरे ॥

मेरा दिलदार न मिला॥

दिल्ली में हुयी दिल्लगी॥ दिलदार भी मिला॥ ख्वाबो में खोये रहते॥ थोडा प्यार भी मिला॥ कुछ दिनों के बाद ॥ तूफ़ान भी आ गया॥ वह नही था नसीब में॥ उड़ के कही गिरा॥ बीती बातो को याद करके॥ हम आंसुओ को पी रहे है॥ शायद वह वापस आए॥ आंशाओ में जी रहे है॥ न है कोई शिकायत ॥ न है कोई गिला॥ मुझे बड़ा अफशोस है॥ मेरा दिलदार न मिला॥