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Showing posts from May 17, 2009

Loksangharsha: कार्टून्स

कार्टूनिस्ट:फैजान मुसन्ना

एक त्रिपदा -अगीत ग़ज़ल --

लाख बद्दुआएं दीं दिल से बहुत चाहा न चाहें दिल से ; पर न निकल पाये वो दिल से । सोचा चले जायं महफ़िल से , यह न होगा अब तो दिल से ; बुलाया जो आपने दिल से । अब महफ़िल से जाएँ कैसे , बिना दीदार जाएँ कैसे; सदायें दीं आपने दिल से । लाख दुआ करे दुनिया, मन्नतें माने श्याम, दुनिया; न निकल पायें आपके दिल से। ।

खूबसूरत और ज्ञानवर्धक लघुकथा

एक लड़के को सेल्समेन के इंटरव्यू में इसलिए बाहर कर दिया गया क्योंकि उसे अंग्रेजी नहीं आती थी। लड़के को अपने आप पर पूरा भरोसा था । उसने मैनेजर से कहा कि आपको अंग्रेजी से क्या मतलब ? यदि मैं अंग्रेजी वालों से ज्यादा बिक्री न करके दिखा दूं तो मुझे तनख्वाह मत दीजिएगा। मैनेजर को उस लड़के बात जम गई। उसे नौकरी पर रख लिया गया। फिर क्या था, अगले दिन से ही दुकान की बिक्री पहले से ज्यादा बढ़ गई। एक ही सप्ताह के अंदर लड़के ने तीन गुना ज्यादा माल बेचकर दिखाया। स्टोर के मालिक को जब पता चला कि एक नए सेल्समेन की वजह से बिक्री इतनी ज्यादा बढ़ गई है तो वह खुद को रोक न सका । फौरन उस लड़के से मिलने के लिए स्टोर पर पहुंचा। लड़का उस वक्त एक ग्राहक को मछली पकड़ने का कांटा बेच रहा था। मालिक थोड़ी दूर पर खड़ा होकर देखने लगा। लड़के ने कांटा बेच दिया। ग्राहक ने कीमत पूछी। लड़के ने कहा - 800 रु. । यह कहकर लड़के ने ग्राहक के जूतों की ओर देखा और बोला - सर, इतने मंहगे जूते पहनकर मछली पकड़ने जाएंगे क्या ? खराब हो जाएंगे। एक काम कीजिए, एक जोड़ी सस्ते जूते और ले लीजिए। ग्राहक ने जूते भी खरीद लिए। अब लड़का बोला - तालाब किनारे धूप में बै

सोलह आने सच - क्योंकि ईवीएम कभी झूठ नहीं बोलता

दिल्ली से चंडीगढ़ तक ये कैसी हवा चली, किसी के समझ में नहीं आया। हाथ ने ऐसी सफाई की कि जाटलैंड में कमल की पैदावार ही बंद हो गई। गर्मी का भी असर रहा होगा शायद, इसलिए कमल ठंडे पहाड़ों में ही खिल पाया। हाथी को न तो मैदानी इलाका पसंद और न ही पहाड़ी। सिटी ब्यूटीफुल का मौसम कुछ अलग है। दो-तीन दिन गर्मी रहे तो आसमान पर बादल आ ही जाते हैं। इस बार शुरू में गर्मी थोड़ी ज्यादा रही, बताया गया कि बादल चंडीगढ़ में कम पंजाब में ज्यादा रहे। चंडीगढ़ में तो बरसे तक नहीं। बरसते तो भी क्या फर्क पड़ता। सिटी ब्यूटीफुल ने इस बार दो बातें बड़ी पते की सिखाई हैं। एक जनता के मूड को जानने का दावा मत करो, कब बदल जाए पता नहीं चलता। फिर रिस्क क्यों लेना भाई। वैसे भी ये बड़े जिगर वालों का काम है। हां, कुछ खालिस चीजें बची हैं, जिन पर भरोसा किया जा सकता है। इनमें टॉप पर है सट्टा और दूसरे नंबर पर ईवीएम (अपनी वोटिंग मशीन)। दोनों कभी झूठ नहीं बोलते। दर्पण धोखा दे सकता है, लेकिन दोनों पर आप यकीन कर सकते हैं। इसलिए भी क्योंकि सट्टे पर करोड़ों लगाने वाले लाखों लोग यकीन करते हैं और ईवीएम सरकार बनाती और बदलती है। इन दोनों के स

राज्यों की पूरी लिस्ट : कौन जीता...कौन हारा

हिन्दुस्तान का दर्द पाठकों के लिए लेकर आया राज्यों की सूची। यहां आपको मिलेगा किस राज्य से कौन पहुंच रहा है दिल्ली तो किसे जनता ने नकार दिया। मध्यप्रदेश से लेकर गुजरात तक की हर सीट पर नजर। जिस राज्य की सही आपको जानकारी...बस क्लिक कीजिए संबंधित राज्य पर। राजस्थान राजस्थानः जनता ने मिलाया कांग्रेस से हाथ छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ः भगवा लहराया, जूदेव-महंत जीते मध्यप्रदेश मध्यप्रदेशः कमल खिला, सुषमा-सिंधिया जीते हरियाणा-पंजाब हरियाणा-पंजाबः भाजपा से सिद्धू तो कांग्रेस से जिंदल जीते गुजरात गुजरातः आडवाणी जीते, मगर सीटें गंवाईं दिल्ली-मुंबईः दिल्ली-मुंबईः मेट्रोज में कांग्रेस ने मोर्चा मारा सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

किसकी पसंद है ये सरकार..?

पूरे देश के चुनाव परिणाम घोषित ओ गए है और एक दो दिन में नई सरकार का गठन भी हो जाएगा..!लेकिन यहाँ एक सवाल उठता है की ये सरकार क्या सब जनता का .प्रतिनिधितव करती है..?क्यूंकि एक मामूली सी बैठक के लिए भी कोरम पूरा होना जरूरी होता है!जबकि यहाँ तो आधे लोगों ने तो वोट ही नहीं दिया..!जो भी सांसद जो आधे से भी कम लोगों की .पसंद..हो,वो क्या हमारा नेता हो सकता है?ये बात विचार करने योग्य है की कैसे वो सांसद .सब लोगों की पसंद बन .पायेगा..जब उसे .२० परतिशत...मत मिले हो?निश्चित तौर पर ये हमारी ...व्यवस्था....की खामी है जिस पर ध्यान देना आवयश्क है....आज यह समय की मांग है की या तो मतदान अनिवार्य करें या फ़िर जीतने के लिए कम से कम ३६ प्रतिशत वोट प्राप्ति की अनिवार्यतया लागू करें?जब एक विद्यार्थी ३६ प्रतिशत से कम अंक लाने पर फ़ैल हो जाता है तो फ़िर नेता २० प्रतिशत अंक लाकर भी कैसे पास हो जाता है ?एक सुझाव ये भी है की मतदान करने वालों को प्रोत्साहित किया जाए ताकि अधिक से अधिक लोग मतदान में भाग ले..!करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी यदि सरकार ४० से ५० प्रतिशत .मतदान करवा पाये तो उसमे भी जीतने वाले को कितने प्र