साधारण महिला का असाधारण बलिदान ‘‘अत्याचार जितना भीषण होगा, उसकी प्रतिक्रिया उतनी ही भीषण होना अटल है।’’ लार्ड मैकाले के इन शब्दों को याद करते हुए, उग्र राष्ट्रवाद के व्याख्याकार और प्रचारक, स्वाधीनता संग्राम के प्रारम्भिक सेनानी विनायक दामोदर सावरकर ने प्रथम स्वाधीनता संग्राम पर अपनी प्रसिद्ध पुस्तक में एक स्थान पर लिखा है, ‘स्वदेश की यंत्रणाओं को देख, एक आध व्यक्ति या किसी एक विशेष वर्ग को तीव्र विषाद महसूस हो रहा था, ऐसी बात नहीं है। हिन्दु-मुसलमान, ब्राह्मण, शूद्र, क्षत्रिय, वैश्य, राजा-रंक, स्त्री-पुरूष, पंडित-मौलवी, सैनिक- पुलिस इन भिन्न-भिन्न धर्म, भिन्न पंथ और कई भिन्न व्यवसायों के लोगों ने मिलकर, स्वदेश का बुरा हाल देखते रहना असंभव हो जाने से, अकल्पनीय थोड़े अवसर में भयानक प्रतिशोध का बवंडर खड़ा करदिया। कितना राष्ट्रव्यापी था वह आन्दोलन, इस एक ही बात से मालूम होगा कि जिस पराकाष्ठा को जुल्म पहुँच गया था, उसी पराकाष्ठा तक अपने प्रतिकार को पहुँचाने का जतन भी किया गया था।’ वीर सावरकर की यह स्थापना 1857 के महासंग्राम का बहुत हद तक वास्तविक बिम्ब है। इससे भी पहले सर्वहारा की सत्ता का