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Showing posts from June 16, 2009

नवगीत: आचार्य संजीव 'सलिल'

सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ नवगीत आचार्य संजीव 'सलिल' हवा में ठंडक बहुत है... काँपता है गात सारा ठिठुरता सूरज बिचारा. ओस-पाला नाचते हैं- हौसलों को आँकते हैं. युवा में खुंदक बहुत है... गर्मजोशी चुक न पाए, पग उठा जो रुक न पाए. शेष चिंगारी अभी भी- ज्वलित अग्यारी अभी भी. दुआ दुःख-भंजक बहुत है... हवा बर्फीली-विषैली, नफरतों के साथ फैली. भेद मत के सह सकें हँस- एक मन हो रह सकें हँस. स्नेह सुख-वर्धक बहुत है... चिमनियों का धुँआ गंदा सियासत है स्वार्थ-फंदा. उठो! जन-गण को जगाएँ- सृजन की डफली बजाएँ. चुनौती घातक बहुत है... नियामक हम आत्म के हों, उपासक परमात्म के हों. तिमिर में भास्कर प्रखर हों- मौन में वाणी मुखर हों. साधना ऊष्मक बहुत है... divyanarmada.blogspot.com divynarmada@gm

बॉलीवुडः कास्टिंग काउच से रेप तक, कई चेहरे

शाइना आहुजा का उनकी नौकरानी के साथ रेप केस हर और चर्चा का विषय बन चुका है। यह पहली बार नहीं है जब किसी बॉलीवुड हस्ती पर बलात्कार का आरोप लगा है। पहले भी कई बार कास्टिंग काउच, पैसे और काम का लालच दे या फिर मजबूरी का फायदा उठाते हुए बॉलीवुड के नवाबों ने लड़कियों का फायदा उठाया है। हालांकि ये बात अलग है कि जितने मामले सामने आए उससे कहीं ज्यादा मामले कई कारणों के चलते सामने नहीं आ पाए। कई बार हस्तियों के दबाव के चलते बाहर ही नहीं आए, कितने ऐसे मामले हैं जिनमें लड़कियों ने डरकर अपनी इज्जत बचाने के सवाल पर मुंह ही नहीं खोला और अपमान का दर्द पी लिया। शाइनी आहुजा का केस थोड़ा अलग है, आमतौर पर जब कोई स्टार बलात्कार या ऐसे किसी आरोप में फंसता है तो वह सरासर आरोपों से इंकार कर देता है। शाइनी ने ऐसा नहीं किया, पहले बलात्कार करने की बात स्वीकारी और बाद में होश आने पर यह कहने लगे कि उन्होंने रजामंदी से सेक्स किया.. मधुर भंडारकर का केस भी कुछ ऐसा ही था। हां इस बार शिकार हुई थी फिल्मी दुनिया में करियर बनाने आई एक लड़की। प्रीति नाम की इस लड़की ने आरोप लगाया कि मधुर ने फिल्मों में काम देने की बात पर उस

पीर ज़माने की -- ग़ज़ल

उसमें घुसने का ही हक़ नहीं मुझको, दरो-दीवार जो मैंने ही बनाई है। मैं ही सिज़दे के काबिल नहीं उसमें , ईंट दर ईंट मस्जिद ,मैंने चिनाई है । कितावों के पन्नों में उसी का ज़िक्र नहीं, पन्नों -पन्नों ढली वो बेनाम स्याही है। लिख दिए हैं ग्रंथों पे लोगों के नाम , अक्षर-अक्षर तो कलम की लिखाई है। गगन चुम्बी अटारियों पे है सबकी नज़र , नींव के पत्थर की सदा किसने सुनाई है। वो दिल कोई दिल ही नहीं जिसमें , भावों की नहीं बज़ती शहनाई है। इस सूरतो-रंगत का क्या फायदा 'श्याम, यदि मन में नही पीर ज़माने की समाई है॥

Mohalle men Musalmanon ke liye koi jagah nahin !

चाहे बदले सारा ज़माना.....

जी हाँ,चाहे सारा जमाना बदल जाए..पर हम नहीं बदलेंगे...!आपने ठीक समझा मैं बी जे पी की ही बात कर रहा हूँ..!चुनाव में लुटिया डूब गई...पर अकड़ नहीं गई...!कोई हार की जिम्मेवारी लेने को तैयार नहीं है...!सब अपने अपने खेमे को मजबूत .करने..में लगे है..!हर कोई पार्टी में अपनी हसियत साबित करने पे तुला है..!होना तो ये चाहिए था की पार्टी अपनी हार स्वीकार करके आत्म मंथन करती...पर इसके उलट सब अपनी अपनी डफली बजाने .में..लगे है...!आडवानी जी शुरूआती ना नुकर के बाद फ़िर से पार्टी नेता बन गए है,जबकि उन्हें अब तक समझ जन चाहिए था की अब युवाओं की बारी है...!वे क्यूँ कुर्सी से चिपके रहना चाहते है...?बाकि नेता भी त्यागपत्र त्यागपत्र खेल रहे है....!अरे आप क्यूँ नहीं सामूहिक रूप से इस्तीफे दे देते ताकि .पार्टी नई टीम बना सके..!अब एक आधे त्यागपत्र से कुछ.. नहीं होने वाला,अब तो नई शुरुआत करनी होगी,नया चेहरा प्रस्तुत .करना होगा ..!आप क्यूँ नहीं कुछ करना..चाहते ,जबकि जनता ने आपको नकार दिया है...!अब भी समय है...पार्टी को एक बार फ़िर नए जोश और नए रूप के साथ आगे आना होगा...!आडवानी जी को जिद छोड़ कर युवा पीढ़ी को कमान सौपनी

संपादकीयः दोमुंहे देशों की जोड़ी लड़ेगी तालिबान से?

तालिबान के साथ घमासान में पाक फौज को मिल रही सफलता पर अमेरिका इतरा रहा है। तालिबान अमेरिका के दुश्मन हैं जिसके खात्मे में उसके जवान शहीद नहीं हो रहे। यह लड़ाई पाकिस्तान अमेरिकी पैसों से लड़ रहा है। तालिबान पाक के भी दुश्मन हैं और धमाकों से परेशान पाक जनता भी अब यह समझ रही है। भारत भी खुश है कि पाकिस्तान आखिरकार तालिबान पर कार्रवाई कर रहा है। अफसोस ख़ुशी के ये दिन लंबे नहीं चलेंगे। कारण कि इस लड़ाई में सैद्धांतिक कमजोरी है। भूलना नहीं चाहिए कि जब तालिबान की कोपलें फूटीं, तब इसी खून से उसे सींचा गया था। वह मूर्त संगठन नहीं, एक सोच है जो विस्थापित अफगान पश्तूनों के बीच पनपी। उन पाक मदरसों में जो वहाबी संप्रदाय के पैसों से चलते थे। तब जमीन से बेदखल ये पश्तून शरणार्थी शिविरों में रह रहे थे। यहां मजहबी विचारधारा और पाक व अमेरिका द्वारा दी गई कलाश्निकोवों से लैस हुए और खून का बदला खून से लेकर काबुल में बैठ गए। पर बुरा हो खून के लज्जत की लत का। कब्जे में आने के बाद अफगानिस्तान मैदान नहीं रहा। लादेन ने फतह के लिए नई धरती दिखलाई। अमेरिकी सरजमीं पर अलकायदा के हमले के बाद से अमेरिका तालिबान का दुश