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Showing posts from June 28, 2010

तभी एक बेहतर दुनिया देख पायेंगे

संवाद अनवर फ़ज़ल से बिजू नेगी की बातचीत राइट लाईवलीहुड कॉलेज के निदेशक व यूनिवर्सिटी सेंस मलेशिया, पेनांग से संबद्ध अनवर फ़ज़ल दुनिया भर की कई नागरिक अभियानों व संस्थाओं के प्रणेता रहे हैं. कंज्यूमर्स इंटरनेशनल के अध्यक्ष रहे 69 साल के अनवर फ़ज़ल को वैकल्पिक नोबल पुरुस्कार राइट लाईवलीहुड अवार्ड, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का ग्लोबल 500 सम्मान, गांधी-किंग-इकेदा शांति पुरस्कार, मलेशिया के सम्मानित मानोपाधि ‘दातो’समेत कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं. पिछले दिनों कंज्यूमर्स इंटरनेशनल की स्थापना के 50 साल पूरे होने पर कुआलालंपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में अनवर फ़ज़ल को संस्थान का प्रथम लाईफटाईम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया. इस अवार्ड के साथ दिये गये प्रशस्ति पत्र में उन्हें अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता आंदोलन के इतिहास में सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति कहा गया. उसी अवसर पर उनसे की गई बातचीत के अंश यहां प्रस्तुत हैं. • कंज्यूमर्स इंटरनेशनल की स्थापना के 50 वर्ष पूरे होने पर आपने कहा कि “50 वर्ष पूर्व कंज्यूमर्स इंटरनेशनल का जन्म हुआ, जिसका तब समय आ गया था.” आप क्या समझते हैं, क्या वह समय अ

देश के लिए एक साल

अरुण कटियार इससे पहले कहिए, क्या खबर है? लो क सं घ र्ष !: कितने मुनासिब हैं विशेष पुलिसिया दस्ते दूरदर्शन को सोखकर रसूखदार हुए रजत जरूरी नहीं कि केवल कंपनियों, सरकार या स्थानीय प्रशासन को ही संसाधन की बर्बादी की समस्या से दो-चार होना पड़ता हो। दुखद सच्चाई यह है कि संपदा या संसाधन की बर्बादी का नाता आप और मुझ जैसे व्यक्तियों से भी हो सकता है। इससे भी दुखद यह कि मुमकिन है आप और हम भी ऐसे लोगों की श्रेणी में आते हों, जो व्यर्थ गंवा दिए गए संसाधनों की तरह हों। जरा इस बारे में सोचें। गर्मियां बीत चुकी हैं। लेकिन मैं उम्मीद करता हूं कि गर्मियों में अक्सर नजर आने वाला यह दृश्य आपने जरूर देखा होगा: खाली पड़े स्कूली मैदानों को अपनी कदमताल की आवाज से गुंजाते एनसीसी (नेशनल कैडेट कोर) के नौजवान कैडेट्स। यह नजारा बहुत आम है। हर सुबह देशभर के अनेक स्कूलों से विद्यार्थी बसों में सवार होकर एनसीसी के निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने के लिए चल पड़ते हैं। आखिर क्या है वह लक्ष्य, जिसके लिए हमारे युवा मुस्तैदी से जुटे हैं? और उस लक्ष्य को वे किस तरह हासिल करना चाहते हैं? वह लक्ष्य है भारत के युवाओं को

लो क सं घ र्ष !: भोपाल मामले से कुछ सीख - सेवानिवृत्त न्यायधीश उच्चतम न्यायालय

इस सम्बंध में कोर्ट के निर्णय से ऐसा लगता है कि भारत अब भी विक्टोरियन साम्राज्यवादी, सामन्ती दौर में है, और जो सोशलिस्ट सपनों से बहुत दूर है। उन वर्षों में जिन राजनैतिक दलों के हाथों में सत्ता थी, वे इस भारी अपराधिक लापरवाही के लिये दोषी है। इस घटना से सम्बंधित असाधारण बात तो यह है कि यूनियन कारबाइड में संलिप्त सब से बड़ा अधिकारी वारेन एंडरसन तो पिक्चर में लाया ही नहीं गया। 2 दिसम्बर 1984 को भोपाल में जो बड़े पैमाने पर हत्याकाण्ड हुआ वह एक अमरीकी बहुराष्ट्रीय कार्पोरेशन की भारी गलती का परिणाम था। जिसने भारतीयों की जिन्दगियों को अश्वारोही क्रूर योद्धाओं के समान रौंदा। इसमें लगभग 20,000 लोगों की गैस हत्या हुई फिर भी 26 वर्षों की मुकदमें बाजी के बाद अपराधियों को केवल 2 वर्ष की सश्रम कारावास की सजा दी गई। ऐसा तो केवल अफरातफरी वाले देश भारत ही में घटित हो सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति एवं श्वेत संसार तथा श्यामल भारतीय, प्रधानमंत्री, तालिबान एवं माओवादी नक्सलवाद पर कर्कश आवाजे उठाते हैं। मगर यह नहीं देखते कि इस जन संहार पर जो, भारत के एक पिछड़े इलाके में अमेरिकन ने किया, अदालती फैसला आने मे

बादल बाबा बादल बाबा..

बादल बाबा बादल बाबा॥ पानी कब बरसाओगे॥ सूख रहा है तन तरुवर सब॥ कब तुम प्यास बुझाओ गे॥ हाहाकार मचा हुआ है॥ नदी तालाब गए है सूख॥ अपनी दुर्दशा पर रोता॥ द्वारे खडा पुराना कूप॥ आस लगाए सब बैठे है॥ उनको क्या तरसाओगे॥ बादल बाबा बादल बाबा॥ पानी कब बरसाओगे॥ चिड़िया कलरव बंद कर दिया॥ मोर नांचना भूल गए॥ कोयल दीदी छुप कर बैठी॥ सब गर्मी से ऊब गए॥ पीया पपीहा पिव पिव बोले॥ उसको क्या ललचाओगे॥ बादल बाबा बादल बाबा॥ पानी कब बरसाओगे॥

गम की कहानी..

हेरत अपनी प्रिया का॥ बिलकुल बना फकीर॥ का किस्मत तू दागा करू॥ ई कैसी बनी लकीर॥ प्रेम ब्याह मै कर लिया ॥ कौन किया अन्याय॥ माँ बाप क्यों इतने गिर गए॥ सीने पर करते घाव॥ चार दिना से गायब है॥ मेरी प्यारी मुस्कान॥ टूट गयी रस्सी हमारी॥ मै तो गिरा उतान॥ पुलिस न बोले ढंग से॥ ज्यादा कराय बकवास॥ kahay ki ज्यादा bolegaa॥ karwaa doogaa upvaas॥ क्यों खुशिया मुझसे हरे॥ मै तरस गया बिन मीन॥ कौन गली ढूढे उसे॥ कहा बजावू बिन॥ मै यही सोचा था॥ हम होयेगे कामयाब॥ सब का कुशल पूछेगे॥ सब करेगे आदाव॥ वह पारी अब कहा है॥ जो मुझसे मुस्काती थी॥ आँख झुका के प्यार जता के॥ उसकी हंसी निकल जाती थी॥ या तो मुसको वह मिले ॥ या गला कटु शमसीर॥ midiyaa waalo से mil कर॥ करेगे vaartaa laap॥ साथ मीडिया जब देगा॥ भरेगे हम आलाप॥ पर्दा फास्ट करेगे॥ उनसे नहीं डरे॥ जिन्हों ने मेरी जान को मारा॥ सजा की दुआ करेगे॥