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Showing posts from January 18, 2009

मुश्किलें...........!!

मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं... जिनके हाथ इतने मजबूत हैं कि तोड़ सकते हैं जो किसी भी गर्दन....!! मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं... जो कर रहे हैं हर वक्त- किसी ना किसी का..... या सबका ही जीना हराम....!! मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं... जिनके लिए जीवन एक खेल है... किसी को मार डालना ...... उनके खेल का इक अटूट हिस्सा !! मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं... जो देश को कुछ भी नहीं समझते... और देश का संविधान.... उनके पैरों की जूतियाँ....!! मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं... जो सब कुछ इस तरह गड़प कर रहे हैं... जैसे सब कुछ उनके बाप का हो..... और भारतमाता !!........ जैसे उनकी इक रखैल.....!! मुश्किलें उनके साथ जीने में हैं... जिनको बना दिया गया है... इतना ज्यादा ताकतवर..... कि वो उड़ा रहे हैं हर वक्त..... आम आदमी की धज्जियाँ..... और क़ानून का सरेआम मखौल.....!! ...........दरअसल ये मुश्किलें...... हम सबके ही साथ हैं..... मगर मुश्किल यह है.... कि.............. हमें जिनके साथ जीने में..... अत्यन्त मुश्किलें हैं..... उनको......... कोई मुश्किल ही नहीं......!!??

उनके मुंह से निकला था- हे राम

विनय बिहारी सिंह महात्मा गांधी को जब गोली लगी थी तो वे गिर पड़े थे और उनके मुंह से निकला था- हे राम। अपने जीवन काल में उन्होंने अपने प्रिय जनों से कहा था- मेरी हार्दिक इच्छा है कि जब मरूं तो मेरे मुंह से राम का नाम ही निकले। वे जीवन भर ईश्वर के भक्त हो कर रहे। हर सुबह और शाम वे पूजा करते थे। हर रोज सार्वजनिक रूप से प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता था। वे मानते थे कि सबका मालिक भगवान ही है। अनेक लोगों को उनका भजन याद है- ईश्वर, अल्ला तेरे नाम। सबको सन्मति दे भगवान। एक बार महात्मा गांधी का एपेंडिक्स का आपरेशन होना था। डाक्टर चाहते थे कि उन्हें बेहोश करने की दवा दी जाए। तब आपरेशन किया जाए. गांधी जी ने कहा- नहीं । मैं बिना बेहोशी की दवा खाए, पबरे होशो हवास में आपरेशन कराना चाहता हूं। कोई सामान्य आदमी होता तो डाक्टर राजी नहीं होते। लेकिन बात महात्मा गांधी की थी। डाक्टरों को राजी होना पड़ा। गांधी जी का पेट चीरा गया और वे आराम से आपरेशन कराते रहे। चिल्लाना तो दूर, वे उल्टे मुस्कराते रहे। कितनी सहन शक्ति थी गांधी जी मे।ोोमो

आंखे ...........

याद करके जब रोने लगी ये आंखे ........... अश्क भी ..अब साथ नहीं देते ... दिल मे उठे दर्द को नहीं मै समझ पा रही ख़ुशी की तलाश मे.. चली थी मै....... पर गमो को साथ लिये... लौटी हु मै ....... ना भूलने वाली यादे .. अब मेरे मानस पर छा सी गयी है .. जो मिला था कुदरत से उसे छोड़ मिथ्या ..के पीछे भागी थी मै मृग्मारिच्का के पीछे घने मरुस्थल मे भटक गयी हु मै ....... याद करके जब रोने लगी ये आंखे ........... .....(कृति...अनु...)

तुम से ..हम मिले............

राह मे अकेले जो तुम चले... फिर तुम से ..हम मिले साथ मिल कर ...थाम के हाथ मेरा .. नयी राहो पे हम साथ चले .... नजरो के रास्ते ..तुम हो दिल मे बसे वफ़ा की मूरत ...जफा की सूरत.. लिए अनजान रहो पे साथ बढे ........ दुनिया की इस भीड़ मे.. मै भी अकली सी थी खुद को तलाशती सी थी .... पर नहीं मिला कोई भी.. पर जब से हम से ,तुम मिले हो हर राह साथ चले हो ..दे कर अपना साथ , लेकर मुझे साथ , कोई धोखा नहीं,कोई नहीं किया फरेब दिया अपना सच्चा साथ , हर राह को किया तुमने आसान , इस जिंदगी को बना दिया जीने के काबिल , तुम से मुझे हर ख़ुशी मिली ,मिला जीने को पूरा ये आसमा ... जहा मे भी उडी ..अपने अरमानो के पंख लगा , इतिह्सा का तो पता नहीं ....... हक्कीकत की ज़मी पे हो मेरे साथ.... तुम से ..हम मिले........तुम से हम मिले ........ (....कृति.....अनु.....)

प्रीति के पन्ने से

मेरी एक दोस्त के पन्ने से

बिना वजह जो ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाते हैं उनकी बात अलग होती है, उनके ख्याल,उनके मर्म ,उनकी तपिश,उनकी कशिश ख्यालों के पर्वत पर बादलों सी उमड़ती है.....बिना वजह !बिना वजह कोई इतनी गहराई रख जाता है....बिना वजह कोई इतना अच्छा लिख लेता है........वजह तो खामोश होते हैं !

देख उस माँ की हालत............

आज का मौसम और सर्द हवा के झोके लिपटी मै गर्म कपड़ो मे क्या जानू ,की सर्दी है क्या .. ऊपर से बारिश का ये नज़ारा जो कमरे से देखी मैंने तो मेरे मन को वोह नज़ारा भा गया पर तभी किसी मासूम के रोने से मेरी नींद मै खलल आ गया .. देखा जो बाहर जाके तो आँखे हुई मेरी नम सामने की झोपडी से एक माँ के रोने की पुकार सुनी देखा तो जाना की क्या है सर्दी का मौसम मासूम ठण्ड से कांप रहा था और मजबूर माँ के अंचल को खिंच रहा था .... नारी तो है इस दुनिया की रौनक पर उसका बदन तो कपडे के हर ..... कौणे से झांक रहा था वोह क्या जाने माँ का आंचल है तार तार.. देख उस माँ की हालत आँखे हुई नम मेरी उतार अपना दुशाला तन ढका उस माँ का जो ठण्ड से कांप रही .... मुह से तो कुछ ना बोली ....... पर उसकी आँखे मुझे बहुत कुछ कहें गयी ............... आज का मौसम .................. और ये सर्द हवा का झोंका .................. (.....कृति.....अनु....).