विगत १५ अप्रैल को मेरा लेख था " चुनावी दौर अपने पूरे शबाब पर" आखिर कब तक, और आज पहले चरण के 16vi लोकसभा के चुनाव के लिए वोट डालने के पहले चरण के पहले दिन तक यह कलम खामोश रहा मैंने इस लेख के आखिरी में लिखा था जारी ...अगले दिन अर्थात १५ अप्रैल को इस लेख की अगली किस्त आपके हाथो की सोभा बननी चाहिए थी ...सफ़र और व्यस्थाये कभी कभी मजबूरी होती है है मगर ऐसा भी नहीं तीन दिन तक न लिखा जाए .....मै राजनीति में उतरना चाहता था , नहीं उतरा रोक लिया अपने आपको, मै राजनीती पर लिखना भी नहीं चाहता था , इसलिए की वास्तविकता के दर्पण में कोई अपना चेहरा देखना नहीं चाहता और सच इतना कड़वा है की आप अपनी इमानदारी पर जमे रहे और इन राजनीतिग्यो की परशंषा में दो वाकया भी बोलना चाहे ऐसा कोई चेहरा तलाश करना आसान नहीं है फिर क्या करे ? किसको चुने ? सरकार तो बनेगी ........जाप वोट देंगे तब भी , वोट नहीं देंगे तब भी . अतः पहला फैसला तो यह क्या किया जाए वोट अवश्य दिया जाए, कोई इस योग्य न हो तब भी दिया जाए. यह देखकर की इन सबमे कौन ऐसा है जिसमे अच्छा कौन है अगर नहीं तो बुराईयाँ औरो से कम है या उनमे कौन ऐसा है जिसे ह