चंचल, चपल, नटखट तो आपने बहुत देखे सुने होंगे, मगर हमारे बाराबंकी शहर वाली में जो बात है, बखान कैसे करें ? गिरा अनयन, नयन बिन्तु बानी इस चंचल का कहीं ठिकाना नहीं, राणा प्रताप के घोड़े के समान यहाँ है तो वहाँ नहीं वहाँ है तो यहाँ नहीं। एक दिन वह आई मन प्रफुल्लित हो गया। ऐसा लगा कि ‘अबू बिन अदहस‘ वाला फ़रिशता आ गये। चारों ओर रोशनी ही रोशनी दिल खुश हुआ, हाथ में क़लम उठाया, फिर क्या हुआ। ज़रा सी आँख जो झपकी तो फिर शबाब न था तुरन्त चम्पत हो गई, नौ दो ग्यारह भी कह सकते है। उसका जाना बहुत नागवार गुज़रा। अभी अभी दिन था, अभी अभी रात है। दिल जल उठा, तन बदन में आग लग गई, आँखों के आगे अंधेरा छा गया, इस विरह के कारण अब ‘बिरहा‘ भी तो नहीं गा सकता था, उस कारण कि मूड ख़राब हो चुका था। कहाँ लिखनें का मन बनाया था, अब विचार भी पलायन कर गये, इस परेशानी में कलम जो टटोला, वह नहीं मिला, लगा कि वह भी कहीं सरक गया। ग़ालिब ने कहा था कि मौत का दिन मुक़र्रर है, लेकिन क्या बतायें जनाब। इस चंचल का तो एक क्षण भी मुक़र्रर नहीं। वैसे तो इसका हर धर से संबंध का़यम है, ‘हरजाई‘ समझाये। रूकती कहीं नहीं। आप