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Showing posts from April 13, 2009

दोहे, पादुका महात्म्य, पन्हैया,

पान पन्हैया की रही, भारत में पहचान. पान बन गया लबों की, युगों-युगों से शान. रही पन्हैया शेष थी, पग तज आयी हाथ. 'सलिल' मिसाइल बन चली, छूने सीधे माथ. जब-जब भारत भूमि में होंगें आम चुनाव. तब-तब बढ़ जायेंगे अब जूतों के भाव. - आचार्य संजीव 'सलिल' सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम

सत्य ही कहा गया क़ानून अँधा होता है

सच ही कहा गया है कानून की आँखें नहीं होती सिर्फ और सिर्फ अंधा है बिलकुल सत्य वचन है जिससे हम सभी अच्छी तरह से वाकिफ है आज कनून नाम मात्र है हर तरफ झूट और भ्रष्टाचार का बोलबाला है सच्चे मुजरिम को रिहा कर दिया जा रहा और मासूम बेगुनाहों जेल की चार दीवारी में कैद किया जा रहा है.....गुंडे आराम की ज़िन्दगी व्यतीत कर रहे है और शरीफ हवालात की हवा खा रहे है , सत्य है की एक देश की हिफाज़त कानून के रखवाले करते है लेकिन यह भी सत्य है कानून की धज्जियाँ उडाने में बस और बस इन्ही अफसरानों का बड़ा हाथ है आज देश के कानून पर किसी भी इंसान को भरोसा नहीं है बस जनता इनके भय से अपने सम्मान को बचा कर ज़िन्दगी के दिन को काट रहे है ऐसा इसलिए की हम मासूम ही इनके शिकार बन जाते है जब कोई बड़ा हादसा या वाक्य पेश आता है सच्चे मुजरिम न कभी पकडे जाते है और न कभी कनून का हाथ उनके गिरेबानो तक पहुंचा वोह इसलिए की वोह कनून को अपने पैरो टेल और जेब में रखते है यह गुंडे और बदमाश जब कनून तोड़ते है तो उन्हें सम्मानित किया जाता है और मासूम बेगुनाह को फांसी और उम्र कैद की सजा झेलनी पड़ती है एक बार वाक्य हम आपको सुनाते है .......

गधा कौन?

एक गधे ने सोचा क्यों ना घोड़ा बन कर सब को बेवकूफ बनाऊ। बस फिर क्या था उसने अपना रूप घोडे जैसा बना लिया और दुनिया के सामने प्रकट हो गया। यहाँ उसे खूब प्रतिसाद मिला। वो भूल गया कि वो एक गधा है। उसका मान-सम्मान होने लगा। एक दिन उसे घुड़दौड़ का आमंत्रण प्राप्त हुआ, इस घुड़दौड़ में उसे वरीयता दी गई।जब घुड़दौड़ प्रारम्भ हुई और उसकी पोल खुली तो सब उसे गालिया देने लगे। उसने सोचा उसकी क्या गलती है? उसने जो चाहा वो किया। गधा तो वो था ही, किन्तु जो उसे घोडा मान बैठे वो क्या है?जी हां , चुनाव फिर आया है, बहुत बकवास कर ली हमने। फलाना नेता बेकार है, फलां ऐसा है, वैसा है। बहुत बोल लिए। आखिर अब तक हम ही तो उन्हें सत्ताभोग दे रहे थे। गलती हमारी, और हम नेताओ को दोष दे? सोचिये गधा कौन है? घुड़दौड़ शुरू होने वाली है, पता भी चल गया है गधे का.... अब सही घोडे कि तलाश करे।

Loksangharsha: घर जला रहे है

Loksangharsha: घर जला रहे है घर जला रहे है बुझानी थी आग जिनको वही घर जला रहे है। निभानी वफ़ा थी जिनको वही घर जला रहे है। हसरत थी आसमां को छु लेंगे झूमकर परवाज खो चुके जो वही घर जला रहे है ॥ एक घर की आग से ही जलती है बस्तियां, मेरे रफीक फ़िर भी मेरा घर जला रहे है॥ अहले हयात ख्वाहिशों में यूँ सिमट गई हमराज हमसफ़र मेरा घर जला रहे है ॥

हावड़ा ब्रिज-अभिज्ञात की लम्बी कविता

बंगाल में आये दिन बंद के दौरान किसी डायनासोर के अस्थिपंजर की तरह हावड़ा और कोलकाता के बीचोबीच हुगली नदी पर पड़ा रहता है हावड़ा ब्रिज जैसे सदियों पहले उसके अस्थिपंजर प्रवाहित किये गये हों हुगली में और वह अटक गया हो दोनों के बीच लेकिन यह क्या अचानक पता चला डायनासोर के पैर गायब थे जो शायद आये दिन बंद से ऊब चले गये हैं कहीं और किसी शहर में तफरीह करने या फिर अंतरिक्ष में होंगे कहीं जैसे बंद के कारण चला जाता है बहुत कुछ बहुत कुछ दबे पांव फिलहाल तो डायनासोर का अस्थिपंजर एक उपमा थी जो मेरे दुख से उपजी थी जिसका व्याकरण बंद के कारण हावड़ा ब्रिज की कराह की भाषा से बना था जिसे मैंने सुना उसी तरह जैसे पूरी आंतरिकता से सुनती हैं हुगली की लहरें क्या आपने गौर किया है बंद के दिन अधिक बेचैन हो जाती हैं हुगली की लहरें वे शामिल हो जाती हैं ब्रिज के दुख में बंद के दौरान हावड़ा ब्रिज से गुज़रना जैसे किसी बियाबान से गुज़रना है महानगर के बीचोबीच बंद के दौरान तेज़-तेज़ चलने लगती हैं हवाएं जैसे चल रही हों किसी की सांसें तेज़ तेज़ और उसके बचे रहने को लेकर उपजे मन में रह-रह कर सशंय बंद के दौरान बढ़ जाती है ब्रिज

सिल्वर जुबली हेरीटेज वॉक..

चंडीगढ़.नगर प्रशासक के सलाहकार प्रदीप मेहरा ने रविवार को झंडी दिखाकर सिल्वर जुबली हेरिटेज वॉक को रवाना किया। यह वॉक सुखना लेक से शुरू होकर ली काबरूजिए सेंटर, सेक्टर-19 पहुंच कर खत्म हुई। इसका आयोजन इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज ने किया था। ट्रस्ट के चंडीगढ़ चैप्टर के संयोजक का कहना है कि शहर की युवा पीढ़ी को कल्चरल हैरीटेज की जानकारी और इसके संरक्षण के लिए ही इस वॉक का आयोजन किया जाएगा। इस अवसर पर प्रशासन के कई वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे। आगे पढ़ें के आगे यहाँ

अब पता चल ही गया बेइंतहा प्यार का राज

सालों से वैज्ञानिक इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्यों हम किसी की परवाह करते हैं और क्यों अनजाने में ही यह परवाह बेपनाह मोहब्बत में बदल जाती है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने बेइंतहा प्यार के राज को ढूंढ निकाला है। मॉन्ट्रियाल यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर रिसर्च इंटू न्यूफिजियोलॉजी एंड कॉगनिशन के प्रोफेसर मारियो ब्यूरगार्ड ने अपने शोध में पाया इनसान के दिमाग के 7 अलग-अलग क्षेत्रों में होने वाली विभिन्न क्रियाओं के कारण ही हमारे मन में किसी दूसरे इनसान के लिए भावनाएं पैदा होती हैं। बिना किसी इच्छा के दूसरों से प्यार करने को आध्यात्मिक प्यार का सबसे ऊंचा भाव माना गया है। मारियो लोगों के बेइंतहा प्यार की भावनाएं जानकार इस नतीजे पर पहुंचे हैं। उन्होंने अध्ययन में शामिल लोगों को एमआरआई स्कैन के दौरान अपने दिमाग में प्यार की भावनाएं उभारने को कहा। इस दौरान उन्होंने पाया कि दिमाग के 7 क्रियाशील क्षेत्रों में से 3 ठीक उसी तरह क्रियाशील थे जैसे रोमांटिक प्यार के दौरान होते हैं। बाकी क्षेत्र अन्य तरीके से क्रियाशील थे, जिससे पता चलता है कि उस वक्त प्यार के भाव अलग थे। अध्ययन में पता चला कि बेप

राजनितिक सरगर्मियां

जैसे जैसे इलेक्शन नज़दीक आता जा रहा वैसे वैसे राजनीती अपने शबाब पर जाती नज़र आरही है हर कोई राजनीती पार्टी अपनी अच्छी image को काउंट कर रहा है वही घिसी पीती मुद्दे को उछाल रहा है अप्प अच्छी तरह से वाकिफ है इनके पुचल्ले मुद्दों से , नहीं मालूम चलिए एक बार फिर आपको याद दिला दे , ग़रीबी , आतंकवादी , सांप्रदायिक, आदि जो वो अब भी कामयाब हो रहे है हमारे जज्बातों से खेलने में और हमेशा इस मुद्दे को हमारे सामने लाये है और लाते रहेंगे क्योकि हम इन चाँद गंदे राजनेताओं के गुलाम जो बन चुके है लेकिन कब तक हम इनकी गुलामी की जंजीरों में बंधे रहेगे कब तक हम अपनी अक्ल का वो नज़रिए का पिटारा खोलने में कामयाब होंगे कब तक इनके गंदे मुद्दों से अपना मन बहलाता रहेंगे आप ही बताईये "कब तक"........आज आम जनता की नींदे उडी हुई है और यह गद्दार नेता चैन से मज़ा ले रहे है हम इनके इशारों पर नाच रहे है , हम और आप अपनी आँखों से देख रहे चुनाओ नज़दीक अरह है और यह कैसे जनता की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे है गलती इन नेताओं की नहीं सरासर हमारी अपनी है अगर हम संयम से अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करे तो एक अच्चे नेता को चुन क