अश्रु नयनो से ढलका किए । छन्द औ गीत निकला किए ॥ मन सदा ही भटकता रहा - भंग अधरों से निकला किए ॥ झूठ दर्पण ने बोला नही - अपने चेहरे ही बदला किए ॥ प्राण संकट में है और वो - बिखरी अलके संवारा किए ॥ यूं न कुचलो मेरी आस्था - हम तो सपनो में बहला किए ॥ वस्त्र शव का न धूमिल हुआ - जीव काया ही बदला किए ॥ पीर में मन ये जब - जब लगा - स्वर्ग धरती पे उतरा किए ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ' राही '