Skip to main content

Posts

Showing posts from May 7, 2009

Loksangharsha: स्वर्ग धरती पे उतरा किए

अश्रु नयनो से ढलका किए । छन्द औ गीत निकला किए ॥ मन सदा ही भटकता रहा - भंग अधरों से निकला किए ॥ झूठ दर्पण ने बोला नही - अपने चेहरे ही बदला किए ॥ प्राण संकट में है और वो - बिखरी अलके संवारा किए ॥ यूं न कुचलो मेरी आस्था - हम तो सपनो में बहला किए ॥ वस्त्र शव का न धूमिल हुआ - जीव काया ही बदला किए ॥ पीर में मन ये जब - जब लगा - स्वर्ग धरती पे उतरा किए ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ' राही '

ऐसे भी तो हो सकती है मदद

विनय बिहारी सिंह हालांकि आजकल जाड़े के दिनों की बातें करना आपको अजीब लग सकता है, लेकिन बात तो की ही जा सकती है। इस विचार से आप भी सहमत हो सकते हैं। क्या है यह ? हर रोज किसी गुल्लक में एक रुपए जमा करें। जब जाड़े का दिन आए तो उससे एक कंबल खरीदें औऱ रात को टहलते हुए सड़क पर निकल जाएं। किसी ठिठुरते अनजाने व्यक्ति या स्त्री या बच्चे को उस कंबल से ढंक कर चुपचाप वापस आ जाएं। फिर अपने कमरे में आ कर आराम से सो जाएं। मैं कोलकाता के एक आदमी को जानता हूं जो हर एक साल बाद यह काम करता है। हालांकि इस साल कोलकाता में बिल्कुल ही जाड़ा नहीं पड़ा। इसलिए ठिठुरने वाली बात इस साल हुई नहीं। इस आदमी को गुल्लक में पैसे जुटाने की जरूरत नहीं पड़ती। उसके पास पर्याप्त धन है। जब कड़ाके की ठंड पड़ती है तो वह एक साथ दस कंबल खरीदता है और अपनी कार में उसे डाल कर रात के बारह बजे निकल पड़ता है। किसी भी जगह किसी को ठिठुरते देख वह चुपचाप उसे नया कंबल उढ़ा कर वापस आ जाता है। वह कहता है- मुझे यह काम करके बड़ा आनंद आता है। सुबह जब वह आदमी खुद को नया कंबल ओढ़े हुए देखता होगा तो कितना खुश होता होगा। मुझे उसकी यह बात सुखद लगी। ऐ

"मुस्लिम मतदाता क्या सोचते हैं?" | स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़

"मुस्लिम मतदाता क्या सोचते हैं?" | स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ

कुन्डली छन्द----छवि कदम्ब के ब्रक्ष की--राधा के घर के सम्मु ख कदम्ब का तरु ख वन्शी-वट--बरसाना ,मथुरा,मथुरा

    पुष्पों    की   वर्षा करें,   राधा पर   घन- श्याम, छवि कदम्ब के ब्रिक्ष की सुलसित ,ललित ललाम । सुलसित  ललित  ललाम,    गोप गोपी हरषायें, ललिता, कुसुमा ्,राधाजी, मन अति सुख पायें। विह्वल भाव वश,देव दनुज किन्नर नर नागर , करें  पुष्प- वर्षा  ्राधा  पर ,  नट्वर- नागर ॥ राधाजी के   अन्ग को,  परसें  पुष्प  लजायं, भाव विह्वल हो नमन कर ,सादर पग गिरि जायं। सादर पग गिरि जायं,लखि चरण शोभा न्यारी , धन्य-धन्य हें पुष्प,  श्याम- लीला बलिहारी  , तरु कदम्ब हरषायं,देखि ुगुन कान्हा जी के, क्रीडा करते श्याम, ’श्याम ’ सन्ग राधाजी के॥                                    -डा श्याम गुप्त

इरादा ....

इरादा ........ ! इरादा तो इतना है की कब्र से भी निकल आऊं । पर केवल उजाले के लिए । यही एक चीज मुझे कब्र से भी बाहर निकाल सकती है । मजाक नही कर रहा ....अभी तुमने मुझे जाना ही नही ।

नकारात्मक मतदान और कम वोटिंग ने उड़ाई नेताओं की नींद

सतीश कुमार सिंह श्री सतीश कुमार सिंह भारतीय स्टेट बैंक में वरिष्ठ प्रबंधक हैं। इन दिनों वे मध्यप्रदेष के विदिषा जिले में कार्यरत हैं। पिछले एक वर्ष से स्वतंत्र लेखन कर रहे सतीष कई वर्षों तक मुख्यधारा की पत्रकारिता में भी सक्रिय रहे हैं। सन् 1995 में भारतीय जनसंचार संस्थान , दिल्ली से हिन्दी पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद 1999 तक प्रिंट मीडिया से जुड़े रहे। इस दौरान दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ्प्रभात खबर, हिन्दुस्तान टाईम्स इत्यादि अखबारों के लिए काम किया। सन् 2000 में परीवीक्षाधीन अधिकारी के रुप में भारतीय स्टेट बैंक समूह से जुड़ गए। सतीश से संपर्क murwasman@gmail.comया फिर 09993035479 के जरिए किया जा सकता है। 15 वें लोकसभा में नकारात्मक मतदान और कम वोटिंग के कारण नेताओं की हालत पतली है। उनके सारे समीकरण बिगड़ते नजर आ रहे हैं। मध्यप्रदेष में प्रथम और द्वितीय चरण का मतदान हो चुका है। पर वोटिंग का प्रतिषत दोनों चरणों को मिला करके बमुष्किल 50 फीसदी तक के आस-पास ही पहुँच सका है। इस लोकसभा चुनाव में लगता है मतदाताओं का गुस्सा एकदम से फूट पड़ा है। लगभग सभी मतदाता मतदान से परहेज कर र

Loksangharsha: सुप्रसिद्ध चिन्तक मुद्राराक्षस से प्रखर आलोचक विनय दास से एक बातचीत

''साम्प्रदायिकता तर्क के बजाये जोर जबरदस्ती और सामाजिक हिंसा पर आधारित होती है। '' -- मुद्राराक्षस विनय दास : वर्तमान परिवेश में आप साम्प्रदायिकता को किस तरह परिभाषित करना चाहेंगे ? मुद्राराक्षस : समाज में जब विचार प्रक्रिया में रोगाणु पैदा होते है तो वे साम्प्रदायिकता का रूप ले लेते है । जैसे मनुष्य बीमार होता है वैसे ही समाज में अस्वास्थ्या का लक्षण साम्प्रदायिकता होती है । विनयदास : समाज के लिए हिंदू साम्प्रदायिकता ज्यादा घटक है या मुस्लिम ? मुद्राराक्षस : किसी प्रकार की कोई भी साम्प्रदायिकता समाज के लिए घटक होती होती है । क्योंकि साम्प्रदायिकता तर्क के बजाय जोर जबरदस्ती और सामाजिक हिंसा पर आधारित होती है । विनयदास : मुझे लगता है इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया दोनों ने मात्र मुस्लिम को ही आतंकवादी के तौर पर पेश किया है । क्या आप को नही लगता की इस सन्दर्भ में मीडिया वालो न

ये युवा .......जो कुछ करना चाहते हैं......!!!!

ये युवा .......जो कुछ करना चाहते हैं......!!!! मैं भूत बोल रहा हूँ ..........!! दोस्तों ..!! चालीस के लपेटे में आया हुआ आदमी क्या वही सब सोचता है , जो आज मैं आज सोच रहा हूँ ...!! आज अहले सुबह जब सैर को निकला ...... तो भोर की प्राकृतिक छठा के साथ और भी कई पहलु देखने को मिले .... यूँ तो रोज ही यह सब देखने को होता है ....., मगर सब कुछ को रोज - ब - रोज देखते हुए रोज नए विचार मन या दिमाग में आते है .... हैं ना ......!! रोज नए युवा होते बच्चों को देखता हूँ .... रोज जिन्दगी के नए - नए रंग इनमें फूटते देखता हूँ .....!!.... रोज इक नई आस मुझमें जग जाती है ....!! बूढे लोग चाहे जितना अतीत की अच्छाईयों को याद करते हुए वर्तमान को कोसें ..... अथवा आगत की भयावह कल्पना करें .... और हमें सावधान करें ..... मगर इतना तो जरूर है कि हर आने वाले युवा ने ही मानव के विकास का रास्ता प्रशस्त किया है .... बेशक यह विकास महज