मधु के ग्राहक बहुत मिले , क्रय कर ली अभिलाषाएं। अब मोल चुका कर रोती कुचली अतृप्त आशाएं ॥ अव्यक्त कथा कुछ ऐसी, आँचल में सोई रहती। हसने की अभिलाषा में, आंसू में भीगी रहती ॥ मेरे दृगमबू सुमनों पर, तुहिन कणों से बिखरे है स्नेहिल सपनो के रंग में, पोषित होकर संवरे है ॥ -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''