विनय बिहारी सिंह ईश्वर साकार भी है और निराकार भी। अगर कोई यह कहता है कि वह निराकार भगवान में भी विश्वास करता है, तो उसका तर्क भी ठीक है। लेकिन जो साकार भगवान में विश्वास करता है, उसका तर्क भी सम्माननीय है। दोनों अपनी- अपनी जगह ठीक हैं। बस ईश्वर से प्यार होना चाहिए। क्या हमें ईश्वर से प्यार है? प्रश्न यही है। एक बार दिल से, अपनी संपूर्ण आत्मा से ईश्वर से प्यार करके देखिए आप आनंद के सागर में डूब जाएंगे। संसार में कोई एक धर्म नहीं हो सकता । रामकृष्ण परमहंस ने कहा था- जितने मत हैं, उतने पथ हैं (जतो मत, ततो पथ)। संसार में विभिन्न धर्म रहेंगे ही। लेकिन सारे धर्म मनुष्य के हित के लिए हैं। सभी धर्मों का आदर ही तो भारतीय परंपरा है। (कृपया कल वाली पोस्ट संदर्भ के लिए एक बार फिर पढ़ लें) - हममें से कितने लोग हैं जो ईश्वर से जी भर कर प्यार करते हैं? हमारे जीवन में मां का स्थान सबसे ऊंचा है। मां के प्यार का कोई विकल्प नहीं है (हालांकि मेरी मां मेरे बचपन में ही गुजर गई थीं, तबसे जगन्माता ही मुझे प्यार दे रही हैं) । क्या हम ईश्वर से मां से भी बढ़ कर प्यार कर पाते हैं। ईश्वर से प्यार करने की बात इसलि