मैं कोई डाक्टर नहीं कि आपको बताऊं कि आप क्या खायें? खाने के नाम पर शाकाहार या मांसाहार पर भी मैं बहस नहीं छेडूंगा, फिर भी मेरा सवाल यही होगा - हम क्या खायें? दाल महंगी, आलू महंगा, प्याज महंगी, लहसुन महंगा, तेल का दाम आसमान पर। गेहूं या चावल, आटा हो या मैदा कुछ भी तो सस्ता नहीं है। फिर वही सवाल - हम क्या खायें? यह सवाल केवल इसलिए कि हमारी आमदनी इतनी नहीं कि उस आमदनी में ठीक से खा भी सकें। अगर हम किसान हैं तो हमारे लिए डीजल महंगा, खाद महंगी, खेती के काम में आने वाले औजार महंगे, हमारी जो लागत खेती की पैदावार में आती है वह भी वापस नहीं मिल पाती, हमारी मेहनत का बदला तो बहुत दूर है। फिर नमक महंगा, साबुन महंगा, कपड़ा महंगा, रूई महंगी क्या पहने, क्या ओढ़ें, क्या बिछायें, सफाई के लिए कैसे धोयें, कैसे नहायें, सवाल हर तरफ महंगाई का। हम मजदूर हैं और खेतिहर मजदूर हैं तो कहना क्या? हमारे लिए खेतों में काम नहीं, काम है तो मजदूरी नहीं के बराबर, सरकार द्वारा काम देने का किया गया वादा, उस काम के बदले दाम की लूट अलग। एक ही सवाल - कैसे जीवित रहें? कुछ खबरें अखबार की सुर्खियां बनती रही हैं, गोबर से अनाज के द