ब्लॉग्गिंग का नशा कुछ अलग सा नजर आ रहा है जब तारीफ मिलती है तो दिल खुश और जरा सी बुराई निकली गयी तो दिल टूट जाता है।कुछ दिनों से इसी तरह की कशमकश देखने को मिल रही है! जहा ना केवल असामाजिक तत्व लेखकों के प्रोत्साहन को गिरा रहे है बल्कि अपशब्दों का उपयोग कर रहे है जो हिंदी भाषा और साहित्य के लिए घातक है.अभी कुछ अच्छे ब्लोग्गरों को उनकी अच्छी पोस्ट पर उनके मन के विपरीत राय मिली जो शायद उनको मंजूर नहीं फिर क्या था खून खोल उठा.इसके बाद मुंबई टाइगर पर किसी ने गैर सामाजिक टिप्पडी की जो महावीर जी को भी बिलकुल पसंद नहीं आई,अगर उस जगह मैं होता तो शायद मुझे भी अच्छा नहीं लगता! मैंने कई ब्लॉगों को बहुत अच्छी तरह परखा है इस लिए इस आधार पर मैं यह कह सकता हूँ की यह कोई समस्या वाली बात नहीं है जितना की हम सोच रहे है...एक उदाहरण''हिन्दुस्तान का दर्द'' के सी बॉक्स में किसी शख्स ने लगातार एक हफ्ते तक गालियाँ लिखी और चेतावनी भी दी की में कितनी बुरी-बुरी बातें करूंगा की तुम सी बॉक्स ही हटा दोगे और मेरे नाम से मेरे ही ब्लॉग के कई सदस्यों को गाली दी,यह सिलसिला यूँ ही चला,और वो महाशय थक गए और