नवगीत:   संजीव 'सलिल'   रूप राशि को  मौन निहारो...  *  पर्वत-शिखरों पर जब जाओ,  स्नेहपूर्वक छू सहलाओ.  हर उभार पर, हर चढाव पर-  ठिठको, गीत प्रेम के गाओ.  स्पर्शों की संवेदन-सिहरन  चुप अनुभव कर निज मन वारो.  रूप राशि को  मौन निहारो...  *  जब-जब तुम समतल पर चलना,  तनिक सम्हलना, अधिक फिसलना.  उषा सुनहली, शाम नशीली-  शशि-रजनी को देख मचलना.  मन से तन का, तन से मन का-   दरस करो, आरती उतारो.  रूप राशि को  मौन निहारो...  *  घटी-गव्ह्रों में यदि उतरो,  कण-कण, तृण-तृण चूमो-बिखरो.  चन्द्र-ज्योत्सना, सूर्य-रश्मि को  खोजो, पाओ, खुश हो निखरो.  नेह-नर्मदा में अवगाहन-  करो 'सलिल' पी कहाँ पुकारो.  रूप राशि को  मौन निहारो...  *