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Showing posts from December 5, 2009

नवगीत: मौन निहारो... --संजीव 'सलिल'

नवगीत: संजीव 'सलिल' रूप राशि को मौन निहारो... * पर्वत-शिखरों पर जब जाओ, स्नेहपूर्वक छू सहलाओ. हर उभार पर, हर चढाव पर- ठिठको, गीत प्रेम के गाओ. स्पर्शों की संवेदन-सिहरन चुप अनुभव कर निज मन वारो. रूप राशि को मौन निहारो... * जब-जब तुम समतल पर चलना, तनिक सम्हलना, अधिक फिसलना. उषा सुनहली, शाम नशीली- शशि-रजनी को देख मचलना. मन से तन का, तन से मन का- दरस करो, आरती उतारो. रूप राशि को मौन निहारो... * घटी-गव्ह्रों में यदि उतरो, कण-कण, तृण-तृण चूमो-बिखरो. चन्द्र-ज्योत्सना, सूर्य-रश्मि को खोजो, पाओ, खुश हो निखरो. नेह-नर्मदा में अवगाहन- करो 'सलिल' पी कहाँ पुकारो. रूप राशि को मौन निहारो... *

लो क सं घ र्ष !: पुलिस पर कब्ज़ा करने की नई रणनीति

टेलिकॉम कंपनियों ने अपने मुनाफे के लिए आबादी क्षेत्र में नियमो - उपनियमों का उल्लंघन मोबाइल टावर लगा कर रखा है । जिससे अधिकांश जनता का जीना दूभर हो गया है । टेलिकॉम कंपनियों ने लोगो की छतों पर मोबाइल टावर लगा रखे हैं । मोबाइल टावर को संचालित करने के लिए बड़े - बड़े जनरेटर छत पर रखे हैं । जनरेटर चलने से उत्पन्न कंपन से पड़ोसियों के मकान चिटक रहे हैं । शोर से आबादी क्षेत्र में रहने वाले लोगो को काफ़ी असुविधा होती है । मोबाइल टावर क्षेत्र में तरंगो से लगातार बन रहे बादल से मानव जीवन के ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा यह आने वाला समय ही बताएगा । मोबाइल टावर के कारण जगह - जगह विवाद उत्पन्न हो रहे हैं जिनसे निपटने के लिए टेलिकॉम कंपनियों ने पुलिस विभाग को अपने कब्जे में करने के लिए उत्तर प्रदेश शासन को प्रस्ताव दिया है कि प्रदेश के 15 सौ थानों में व पुलिस लाइन्स में मोबाइल टावर लगाने के लिए किराए पर दे दिए जाएँ । यह उनकी सोची समझी रणनीति का ह

"सिर्फ अम्मा ही क्यों ? पिताजी क्यों नहीं?"

मित्रों ,   "सिर्फ अम्मा ही क्यों ? पिताजी क्यों नहीं ?" हमारे अनेक पाठकों ने हमारे सम्मुख प्रश्न किया है कि आप www.the-saharanpur.com/amma.html  पर केवल " अम्मा " को ही समर्पित रचनायें छाप कर क्यों रुक गये हैं ?  क्या हमारे जीवन में पिता का स्थान अम्मा से कमतर होता है ?  अब आप ही बताइये , हम अपनी दो आंखों में किसे से ज्यादा महत्वपूर्ण मान सकते हैं भला ?   पर हमारे सुधि पाठकों की यह प्यार भरी शिकायत जायज़ है और इसीलिये आज हम एक अद्‌भुत काव्य रचना से अपने पूर्वजों को प्रणाम करने का यह क्रम पुनः शुरु कर रहे हैं।  उम्मीद है कि आप लोग अपने पूज्य पिता श्री के प्रति अपने भाव - पुष्प समर्पित करने में पीछे नहीं रहेंगे।  तो मित्रों , ये रही इस अभियान की प्रथम रचना !   मेरे बाबूजी !   सौ सुमनों का एक हार हैं मेरे बाबूजी , बाहर भीतर सिर्फ प्यार हैं मेरे बाबूजी !   सारे घर को जिसने अपने स्वर से बांध रखा , उस वीणा का मुख्य तार हैं मेरे बाबूजी !   पूरी रचना पढ़ने के लिये क्लिक करें >>>>   यदि आपने अम्मा को समर्पित कवितायें जो हमें प्राप