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Showing posts from March 23, 2009
सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ आज इस देश का नौजवान सिमटता जा रहा है अपने और पराये के बीच अपने का दायरा उसने बहुत संकीर्ण कर लिया है शेष सब पराये हो गये है यह देश भी और इस देश के लोग भी ,कोन देगा शहीदे आजम को श्रद्धान्‍जली कोरे भाषणो से क्‍या इन कर्म योगियो की आत्‍मा को शान्ति मिलेगी, >

महिलाओं को अपने लिए दिवस क्यों चाहिए?

इला बेन भट्ट पुरुष दिवस तो नहीं मनाया जाता, फिर महिलाओं को अपने लिए दिवस क्यों चाहिए? वह जननी है, जीवन उसी के बूते तो कायम है, फिर सृजनकर्ता को क्या आवश्यकता हुई कि अपने होने का अहसास किसी दिन के जरिए कराए। जानी-मानी शख्सियतें दे रहीं हैं इस सवाल का जवाब। वाय वीमंस डे? महिला दिवस आखिर क्यों? इसलिए कि देश-दुनिया की आधी आबादी ‘अदृश्य और मूक’ जीवन जी रही है, इस सच्चई को लम्बे समय तक याद कराने के लिए महिला दिवस मनाया जाता है। विश्व में नारियों ने अपने पांव पर खड़े होकर प्रगति के सोपान तय कर गौरवपूर्ण जीवन जीने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इसके बाद भी वह अस्वस्थ और असुरक्षित है। भावी नारी जाति का जीवन इस तरह से असुरक्षित नहीं रखा जा सकता, इसीलिए इस दिन की आवश्यकता है। हम अपने घर-आंगन में ही देख लें, सुबह रास्ते में कूड़े के ढेर से कुछ बीनती हुई किशोरियां हमें अक्सर दिख जाती हैं। इस किशोरी को तो शाला या कॉलेज में होना चाहिए। जब तक ऐसी किशोरियां शिक्षित नहीं होंगी, तब तक महिला दिवस मनाना व्यर्थ है। दिन निकलते ही सरेआम हम सब हाथ-ठेला खींचती महिलाओं को देखते हैं। इनके साथ होता है भारत का भविष्य,

‘धृतराष्ट्रों’ से भरी है हमारी राजनीति

हिदी के वरिष्ठ साहित्यकार और ‘हंस’ के संपादक राजेंद्र यादव का कहना है कि भारतीय राजनीति में सत्तांध धृतराष्ट्र आ गए हैं, जो अपढ़, बेरोजगार और गुंडों की फौजें तैयार करके सत्तासीन होना चाहते हैं। जिन्हें वे आज अपनी तोपों में बारूद की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, क्या कल वे भी सत्ता में हिस्सा नहीं मांगेंगे? यादव ने चुनाव मैदान में उतरने वाले राजनेताओं और राजनीतिक दल को खरी-खरी सुनाते हुए कहा है कि लोकसभा चुनावों के दौरान बुद्धिजीवियों, महिलाओं, दलितों और युवाओं की आवाज को सही नजरिए से सुने बिना लोकतंत्र की गतिशील संस्कृति को नहीं बचाया जा सकता। उनका कहना है कि टिकट वितरण से लेकर मतदान की प्रक्रिया तक इन सबकी भागीदारी पूरी तरह सुनिश्चित हो। चुनाव से जुड़े मसलों पर त्रिभुवन ने उनसे लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके प्रमुख अंश: - इस चुनाव में आप किन मुद्दों की प्रमुखता देखते हैं? मुद्दे तो कुछ दिखाई दे नहीं रहे। ये सब तो एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हैं। जातिवाद है, रुपए-पैसे का खेल है। कहने को विकास भी मुद्दा है। राष्ट्रवाद भी है। मुझे तो सब घपला लगता है। कन्फ्यूज्ड भी कह सकते हैं। - गठब
मुक्तक जो दूर रहते हैं वही तो पास होते हैं. जो हँस रहे, सचमुच वही उदास होते हैं. सब कुछ मिला 'सलिल' जिन्हें अतृप्त हैं वहीं- जो प्यास को लें जीत वे मधुमास होते हैं. पग चल रहे जो वे सफल प्रयास होते हैं न थके रुक-झुककर वही हुलास होते हैं। चीरते जो सघन तिमिर को सतत 'सलिल'- वे दीप ही आशाओं की उजास होते है। जो डिगें न तिल भर वही विश्वास होते हैं. जो साथ न छोडें वही तो खास होते हैं. जो जानते सीमा, 'सलिल' कह रहा है सच देव! वे साधना-साफल्य का इतिहास होते हैं *********************************

~*~I am an Indian~*~

AN AMERICAN VISITED INDIA AND WENT BACK TO AMERICA  WHERE HE MET HIS INDIAN FRIEND WHO ASKED HIM  HOW DID U FIND MY COUNTRY   THE AMERICAN SAID IT IS A GREAT COUNTRY  WITH SOLID ANCIENT HISTORY  AND IMMENSELY RICH WITH NATURAL RESOURCES.  THE INDIAN FRIEND THEN ASKED ….  HOW DID U FIND INDIANS ……...?? सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ http://ilesh-mythoughts.blogspot.com/2009/03/i-am-indian.html

नेता जी आपकी योग्यता क्या है....

सारांश यहाँ आगे पढ़ें के आगे यहाँ .चुनाव आते ही चरों और नेता ही .नेता.. दिखने लगे है...वे हमेशा की तरह ही नए-नए नारे देंगे,वाडे करेंगे और हमारा वोट हथियाने का हर सम्भव प्रयत्न करेंगे...!चुनावी सीजन में ये स्वाभाविक भी है.....!लेकिन जैसा की एक विज्ञापन में देखा ....एक युवा नेता से उसकी योग्यता पूछता है...उसी तरह जनता को भी चाहिए की वो नेता से उसके कार्यों का हिसाब पूछे....उनकी सुनने की बजाय उन्हें सुनाये....!क्यूंकि यही वो मौका है जब उन्हें आपको सुनना ही पड़ेगा...!बाकी पाँच साल तो आप उन्हें .dhoondhte....रह जाओगे..!आज एक छोटी सी नौकरी के लिए भी हमे कम्पीटीशन देना पड़ता है ...जब की इनके लिए कोई योग्यता निर्धारित नहीं है...!ये काम जनता ही कर सकती है...!नेताओं से उनके भावी वादों आदि के बारे में सवाल करें क्यूंकि ये बेहद..जरूरी है...आप .पूछिए...ये आपका हक है...

ग़ज़ल

मौसम की तरह रंग बदलते हुए देखा इंसान को कई रूप में ढलते हुए देखा टा उम्र जिसे ज़हर उगलते हुए देखा उस के लिए ही दिल को मचलते हुए देखा उल्फत भरी बातों से मोहब्बत की कशिश से पत्थर को कई बार पिघलते हुए देखा बेटे की तबस्सुम को जवान रखने की खातिर एक मान को कड़ी धुप में जलते हुए देखा नफरत की हवाओं ने बुझा डाला उसको जिस शमा मोहब्बत को था जलते हुए देखा पैरों tale जालिम के चमन जार में हम ने हर गाम पे कलियों को मसलते हुए देखा दौलत पे जिसे नाज़ था उस शख्श को अलीम हम ने कफे अफ़सोस है मिलते हुए देखा।