गीत छोड़ अहिंसा शस्त्र उठाओ काले बादल ने रोका है फ़िर से मार्ग मयंक का. छोड़ अहिंसा शस्त्र उठायें, सिर काटें आतंक का... राजनीति के गलियारों से आशा तनिक न शेष है. लोकनीति की ताकत सचमुच अपराजेय अशेष है. शासक और विपक्षी दल केवल सत्ता के लोभी हैं. रामराज के हैं कलंक ये, सिया विरोधी धोबी हैं. हम जनगण वानर भालू बन साथ अगर डट जाएँगे- आतंकी असुरों का भू से नाम निशान मिटायेंगे. मिल जवाब दे पाएंगे हम हर विषधर के डंक का. छोड़ अहिंसा शस्त्र उठायें, सिर काटें आतंक का... अब न करें अनुरोध कुचल दें आतंकी बटमारों को. राज खोलते पुलिस बलों का पत्रकार गद्दारों को. शासन और प्रशासन दोनों जनगण सम्मुख दोषी हैं. सीमा पार करें, न संदेसा पहुंचाएं संतोषी हैं. आंसू को शोलों में बदलें बदला लें हर चोट का. नहीं सुरक्षा का मसला हो बंधक लालच नोट का आतंकी शिविरों के रहते दाग न मिटे कलंक का. छोड़ अहिंसा शस्त्र उठायें, सिर काटें आतंक का... अनुमति दे दो सेनाओं को, एक न बैरी छोडेंगे. काश्मीर को मिला देश में कमर पाक की तोडेंगे. दानव है दाऊद न वह या संगी-साथी बच पा