एक समय था जब रेल यात्रा सुरक्षित हुआ करती थी। धीरे-धीरे एक समय ऐसा आया जब रेलवे की टिकट खिड़कियों से लेकर टेªन के अन्दर गिरहकटी हुआ करती थी। टिकट खिड़कियों पर लिखा रहता था गिरहकटों से सावधान। गिरहकटों से सावधान पर निगाह पड़ते ही लोग अपनी-अपनी जेब देखने लगते थे और इसी में गिरहकट भांप जाते थे कि उन्हें किस जेब पर हाथ साफ करना है। टिकट हाथ में आने के जब बचा हुआ पैसा टिकट खरीदने वाला अपनी जेब में डालता था तब वह अवाक रह जाता था क्योंकि उस वक्त तक उसकी जेब साफ हो चुकी थी। लम्बी दूरी के मुसाफिर के पीछे ट्रेन में भी गिरहकट लगे रहते थे और जेब न साफ कर पाने की स्थिति में एक गिरहकट दूसरे गिरहकट के हाथ मुसाफिर को बेच दिया करता था और पूरे रास्ते में कहीं न कहीं उसकी जेब साफ हो जाती या सामान गायब हो जाता था। ट्रेनों में टपके बाजी भी जोरों पर होती थी। प्लेटफार्म से ट्रेन के चलने के समय खिड़कियों से हाथ की घड़ियां, कान के झुमके वगैरह भी खींचने का चलन एक जमाने में जोरों पर था। चोरी, गिरहकटी और टपकेबाजी के बाद टेªन डकैतियों का युग आया। अक्सर टेªन डकैतियां समाचार-पत्रों की खबरें