गीत
आचार्य संजीव 'सलिल'
आपा-धापी,
दौड़ा-भागी,
हाय! यही
अब रही जिंदगी...
राहु-केतु से
रवि-शशि हैराँ।
असत सत्य को
करे परेशां।
दाना पर
हावी हैं नादां-
है बनावटी,
देव-बंदगी...
सदियाँ भोगें
पलों की खता।
नातों से है
नेह लापता।
मन को तन ही
रहा है सता।
घर-घर व्यापी
है दरिंदगी...
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