रक्षा बंधन के दोहे: चित-पट दो पर एक है, दोनों का अस्तित्व. भाई-बहिन अद्वैत का, लिए द्वैत में तत्व.. *** दो तन पर मन एक हैं, सुख-दुःख भी हैं एक. यह फिसले तो वह 'सलिल', सार्थक हो बन टेक.. *** यह सलिला है वह सलिल, नेह नर्मदा धार. इसकी नौका पार हो, पा उसकी पतवार.. *** यह उसकी रक्षा करे, वह इस पर दे जान. 'सलिल' स्नेह' को स्नेह दे, कर दे जान निसार.. *** शन्नो पूजा निर्मला, अजित दिशा मिल साथ. संगीता मंजू सदा, रहें उठाये माथ. **** दोहा राखी बाँधिए, हिन्दयुग्म के हाथ. सब को दोहा सिद्ध हो, विनय 'सलिल' की नाथ.. *** राखी की साखी यही, संबंधों का मूल. 'सलिल' स्नेह-विश्वास है, शंका कर निर्मूल.. *** सावन मन भावन लगे, लाये बरखा मीत. रक्षा बंधन-कजलियाँ, बाँटें सबको प्रीत.. ******* मन से मन का मेल ही, राखी का त्यौहार. मिले स्नेह को स्नेह का, नित स्नेहिल उपहार.. ******* निधि ऋतु सुषमा अनन्या, करें अर्चना नित्य. बढे भाई के नेह नित, वर दो यही अनित्य.. ******* आकांक्षा हर भाई की, मिले बहिन का प्यार. राखी सजे कलाई पर, खुशियाँ मिलें अपार.. ******* गीता देती ज्ञान यह, कर्म