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Showing posts from September 27, 2010

दोहा सलिला : रूपमती तुम... -संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला : रूपमती तुम... संजीव 'सलिल' * रूपमती तुम, रूप के, हम पारखी अनूप. तृप्ति न पाये तृषित गर, व्यर्थ रूप का कूप.. * जुही चमेली चाँदनी, चम्पा कार्सित देह. चंद्रमुखी, चंचल, चपल, चतुरा मुखर विदेह.. * नख-शिख, शिख-नख मक्खनी, महुआ सा पीताभ. तन पाताल रत्नाभ- मुख, पौ फटता अरुणाभ.. * वाक् सारिका सी मधुर, भौंह नयन धनु बाण. वार अचूक कटाक्ष का, रुकें न निकलें प्राण.. * सलिल-बिंदु से सुशोभित, कृष्ण-कुंतली भाल. सरसिज पंखुड़ी से अधर, गुलकन्दी टकसाल.. * देह-गंध मादक-मदिर, कस्तूरी अनमोल. ज्यों गुलाब-जल में 'सलिल', अंगूरी दी घोल.. * दस्तक कर्ण-कपाट पर, देते रसमय बोल. पहुँच माधुरी हृदय तक, कहे नयन-पट खोल.. * दाड़िम रद-पट मौक्तिकी, संगमरमरी श्वेत. रसना मुखर सारिका, पिंजरे में अभिप्रेत.. * वक्ष-अधर रस-गगरिया, सुख पा, कर रसपान. बीत न जाए उमरिया, रीते ना रस-खान.. * रस-निधि पा रस-लीन हो, रस पी हो लव-लीन. सरस सृष्टि, नीरस बरस, तरस न हो रस-हीन.. * दरस-परस बिन कब हुआ, कहो सृष्टि-विस्तार? दृष्टि वृष्टि कर स्नेह की, करे सुधा-संचार.. * कंठ सुराहीदार है,

संस्‍कतम्-भारतस्‍य जीवनम् पर अमित जी का स्‍वागत करें ।।

प्रिय बन्‍धु  आपके अपने संस्‍कृत ब्‍लाग , संस्‍कृतम्-भारतस्‍य जीवनम् पर अमित जी ने अपना पहला लेख भारत माता की वंदना के रूप में प्रस्‍तुत किया है । पुण्यमयी मम भारतमाता टिप्‍पणियों से स्‍वागत करें । शारदा जी ने मेघदूत के श्‍लोकों की प्रस्‍तुति आरम्‍भ की है ा कालिदासस्य मेघदूतं--खंड१ -- भवदीय: - आनन्‍द: