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Showing posts from December 20, 2009

एक और हजार का फर्क

डा. वेदप्रताप वैदिक भारत में गरीब होने का अर्थ जैसा है, वैसा शायद दुनिया में कहीं नही है| भारत में जिसकी आय 20 रू. से कम है, सिर्फ वही गरीब है| बाकी सब ? यदि सरकार और हमारे अर्थशास्त्रियों की मानें तो बाकी सब अमीर हैं| 25 रू. रोज़ से 25 लाख रू. रोज तक कमानेवाले सभी एक श्रेणी में हैं| इससे बड़ा मज़ाक क्या हो सकता है ? ये लोग गरीबी की रेखा के उपर हैं| जो नीचे हैं, उनकी संख्या भी तेंदुलकर-कमेटी के अनुसार 37 करोड़ 20 लाख हैं| ये 37 करोड़ लोग, हम ज़रा सोचें, 20 रू. रोज़ में क्या-क्या कर सकते हैं ? अगर कोई इन्सान इन्सान की तरह नहीं, जानवर की तरह भी रहना चाहे तो उसे कम से कम क्या-क्या चाहिए? रोटी, कपड़ा और मकान तो चाहिए ही चाहिए| बीमार पड़ने पर दवा भी चाहिए| और अगर मिल सके तो अपने बच्चों के लिए शिक्षा भी चाहिए| क्या 20 रू. रोज में आज कोई व्यक्ति अपना पेट भी भर सकता है ? आजकल गाय और भैंस 20 रू. से ज्यादा की घास खा जाती हैं| क्या हमें पता है कि देश के करोड़ों वनवासी ऐसे भी हैं, जिन्हें गेहूं और चावल भी नसीब नहीं होते| इस देश के जानवर शायद भरपेट खाते हों लेकिन इन्सान तो भूखे ही सोते हैं| वे इसलि

लो क सं घ र्ष !: संसद में महंगाई पर चर्चा का रहस्य

संसद के अन्दर सांसदों ने महंगाई पर जोर - शोर से चर्चा की उनकी चिंता जनता के प्रति नहीं थी अपितु अपनी सुविधाओं को महंगाई की चर्चा के बहाने बढ़ाना चाहते थे । महंगाई पर चर्चा की और अपनी सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की । मंत्री ' वेतन एवं सुविधाएं ( संशोधन ) विधेयक 2009 ' पास कर लिया । इस विधेयक के अनुसार मंत्री व उनके निकट सम्बन्धी वर्ष भर में 48 मुफ्त हवाई यात्राएं करने का प्राविधान है । एक यात्रा में कितने लोग शामिल हो सकते हैं उसका कोई उल्लेख नहीं किया गया है । यह विधेयक बिना किसी चर्चा के कुछ ही मिनटों में पारित हो गया है । डॉक्टर मनमोहन सिंह के गरीबी हटाओ कार्यक्रम के तहत मंत्रियों को महंगाई से थोड़ी सी राहत प्रदान की गयी है । इससे लगता है कि संसद के सत्रावसान तक सभी सदस्यों को महंगाई से राहत दे दी जाएगी । देश का मजदूर किसान मेहनतकश तबका महंगाई से भूखो मर जाये , हमारे राजनेता सुखी रहे उनसे यह उम्मीद करना कि वह जनमुखी कोई कार्य क

इन विचारणीय बिन्दुओं पर आप क्या सोचते हैं?

प्रिय मित्रों ,   शिक्षा के क्षेत्र में हमारे देश में अनेकानेक विरोधाभास दृष्टिगोचर होते हैं। कुछ संस्थान ऐसे हैं जो शिक्षा के उच्च स्तर के लिये प्रसिद्ध हैं ,  वहां प्रवेश पाना किसी भी विद्यार्थी का स्वप्न हो सकता है।  वहीं दूसरी ओर ,  देश के हज़ारों नगरों , कस्बों में ऐसे विद्यालय , महाविद्यालय हैं जहां पढ़ाई आम तौर पर होती ही नहीं।  छात्र - छात्रायें अगर इन विद्यालयों में जाते भी हैं तो सोशल नेटवर्किंग के लिये , नेतागिरी सीखने के लिये या येन-केन-प्रकारेण एक अदद डिग्री हासिल करने के लिये।  अध्यापक - अध्यापिकायें इन कॉलेजों में आते हैं तो उपस्थिति पंजिका में हस्ताक्षर करने और वेतन लेने के लिये , धूप सेंकने के लिये ,  ट्यूशन के लिये आसामी ढूंढने के लिये या फिर साथियों के साथ गप-शप करने के लिये।    प्राइमरी या माध्यमिक स्तर की शिक्षा का जहां तक संबंध है ,  दिखाई ये दे रहा है कि प्राइवेट स्कूलों में (जिनको अंग्रेजी माध्यम या पब्लिक स्कूल भी कहा जाता है)  शिक्षा का माहौल सरकारी स्कूलों या हिन्दी मीडियम के स्कूलों की तुलना में बहुत बेहतर है। अंग्रेज़ी माध्यम के सारे स्कूलों का स्त