डा. वेदप्रताप वैदिक भारत में गरीब होने का अर्थ जैसा है, वैसा शायद दुनिया में कहीं नही है| भारत में जिसकी आय 20 रू. से कम है, सिर्फ वही गरीब है| बाकी सब ? यदि सरकार और हमारे अर्थशास्त्रियों की मानें तो बाकी सब अमीर हैं| 25 रू. रोज़ से 25 लाख रू. रोज तक कमानेवाले सभी एक श्रेणी में हैं| इससे बड़ा मज़ाक क्या हो सकता है ? ये लोग गरीबी की रेखा के उपर हैं| जो नीचे हैं, उनकी संख्या भी तेंदुलकर-कमेटी के अनुसार 37 करोड़ 20 लाख हैं| ये 37 करोड़ लोग, हम ज़रा सोचें, 20 रू. रोज़ में क्या-क्या कर सकते हैं ? अगर कोई इन्सान इन्सान की तरह नहीं, जानवर की तरह भी रहना चाहे तो उसे कम से कम क्या-क्या चाहिए? रोटी, कपड़ा और मकान तो चाहिए ही चाहिए| बीमार पड़ने पर दवा भी चाहिए| और अगर मिल सके तो अपने बच्चों के लिए शिक्षा भी चाहिए| क्या 20 रू. रोज में आज कोई व्यक्ति अपना पेट भी भर सकता है ? आजकल गाय और भैंस 20 रू. से ज्यादा की घास खा जाती हैं| क्या हमें पता है कि देश के करोड़ों वनवासी ऐसे भी हैं, जिन्हें गेहूं और चावल भी नसीब नहीं होते| इस देश के जानवर शायद भरपेट खाते हों लेकिन इन्सान तो भूखे ही सोते हैं| वे इसलि