Skip to main content

Posts

Showing posts from July 23, 2010

संस्‍कृतप्रशिक्षणकक्ष्‍या

प्रिय बन्‍धु संस्‍कृत प्रशिक्षणकक्ष्‍या का पंचम संस्‍करण प्रस्‍तुत कर रहा हूँ । आशा है आप अवश्‍य लाभान्वित होंगे । संस्‍कृतप्रशिक्षणकक्ष्‍या - पंचम: अभ्‍यास: सहयोग के लिये धन्‍यवाद भवदीय: - आनन्‍द:

मै दुल्हन तुझे बनाऊगा..

मै तेरा चाहने वाला हूँ..दुल्हा बनके आऊगा॥ सज धज के तू लगे गी सुन्दर दुल्हन तुझे बनाऊगा॥ गाजे होगे बाजे होगे॥ लोग दिखायेगे नाच॥ हमको तुमपर तुमको हमपर हगा दोनों को नाज़॥ खुशियों के मंडप में बैठे बैठे मै भी तुम्हे हसऊगा॥ सज धज के तू लगे गी सुन्दर दुल्हन तुझे बनाऊगा॥ बँगला होगा गाडी होगी सुन्दर सुन्दर क्यारी होगी॥ मै कभी कभी तुमको सपनों की बात बताऊगा॥ सज धज के तू लगे गी सुन्दर दुल्हन तुझे बनाऊगा॥ बच्चे होगे अच्छे होगे मम्मी मम्मी चिल्लायेगे॥ प्यारे पापा बैठ खात पर बच्चो से बतियायेगे॥ मै भी तेरे साथ रहूगा आँगन में फूल खिलाऊगा॥

एक बार तो पुचकार लो..

आँख से आंसू निकलते आके इसको थाम लो॥ य तो अपने पास बुला लो य तो मुझको मार दो॥ सहन होती नहीं बिरह के आग में जल रही हूँ॥ सब्र अब टूट चुका है बिन तेरे तड़पती हूँ॥ अब आके मेरा हाथ थामो बंधन में मुझको बाँध दो॥ शाम होते ही मातम जवानी पे छा जाता है॥ सावन का सौभाग्य पास अपने बुलाता है॥ मै डूबती हूँ अधर में हे यार मुझे उबार लो॥ मैंने सजाया था जो सपना उसे टूटने मत देना॥ अपने दिल के कोने में हमें ही बसा लेना॥ दिल से जब दिल मिले बस एक बार पुचकार दो॥

पोथी वाला पंडित...

मै पोथी वाला पंडित हूँ॥ जो ज्ञान की बात बताता हूँ॥ जाति पाति का भेद न करता॥ निर्धन के घर खाता हूँ॥ मन में कोई मेल नहीं है॥ कटुक बचन से मेल नहीं॥ अत्याचारी का दुश्मन मै हूँ॥ करता उनसे खेल नहीं॥ समय आने पर डट जाता हूँ॥ विकत रूप दिखलाता हूँ॥ मै पोथी वाला पंडित हूँ॥ जो ज्ञान की बात बताता हूँ॥ जाति पाति का भेद न करता॥ निर्धन के घर खाता हूँ॥ हमें पता है वह काल पुरुष है॥ समयानुसार बताऊगा॥ जब भ्रष्ट करूगा भ्रष्टाचार को॥ तभी सामने आऊगा। सच्चाई की अलख जगाता॥ सच की तिलक लगाता हूँ॥ मै पोथी वाला पंडित हूँ॥ जो ज्ञान की बात बताता हूँ॥ जाति पाति का भेद न करता॥ निर्धन के घर खाता हूँ॥ देश तवाह ये रक्षक करते॥ जो मादक पदार्थ बिकवाते है॥ ये तो कलयुग के ठेकेदार है॥ फ़ोकट में मौज उड़ाते है॥ इनका सर गंजा करवा के॥ कालिख इन्हें लगाऊगा॥ मै पोथी वाला पंडित हूँ॥ जो ज्ञान की बात बताता हूँ॥ जाति पाति का भेद न करता॥ निर्धन के घर खाता हूँ॥