सलीम अख्तर सिद्दीक़ी जसवंत सिंह की किताब के बहाने पाकिस्तान के तथाकथित कायद-ए-आजम मौहम्मद अली जिनाह (सही शब्द जिनाह ही है, जिन्ना नहीं) एक बार फिर चर्चा के विषय बने हुए हैं। जिनाह की चर्चा हो और भारत विभाजन का का जिक्र न हो यह सम्भव नहीं है। क्या विभाजन जिनाह की जिद ने कराया ? क्या नेहरु और पटेल विभाजन के जिम्मेदार थे ? क्या अंग्रेजों ने भारत को कमजोर करने के लिए भारत को विभाजित करने की साजिश की थी ? इन सब सवालों पर बहस होती रही है और होती रहेगी। इन सवालों का कभी ठीक-ठीक जवाब मिल पाएगा, यह कहना मुश्किल है। असली सवाल यह है कि विभाजन की त्रासदी किसने सबसे ज्यादा झेली और आज भी झेल रहे हैं। सच यह है कि विभाजन की सबसे ज्यादा मार भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों के ही हिस्से में आयी है। वे तीन हिस्सों में बंट गए। बंटने के बाद भी जिल्लत से निजात नहीं मिली। जिन उर्दू भाषी मुसलमानों ने पाकिस्तान को अपना देश मानकर हिन्दुस्तान से हिजरत की थी, वे आज भी पाकिस्तानी होने का सर्टिफिकेट नहीं पा सके हैं। उन्हें आज भी महाजिर (शरणार्थी) कहा जाता है। पाकिस्तान के सिन्धी, पंजाबी और पठान महाजिरों को निशाना बनात