Skip to main content

Posts

Showing posts from May 15, 2014

मर कर जीना सीख लिया

अब दुःख दर्द में भी मैने मुस्कुराना सीख लिया जब से अज़ाब को छिपाने के सलीका सीख लिया। बेवफाओं से इतना पड़ा पाला कि अब इल्तिफ़ात से भी किनारा लेना सीख़ लिया। झूठे कसमें वादों से अब मैं कभी ना टूटूंगा ग़ार को पहचानने का हुनर जो सीख लिया। वो कत्लेआम के शौक़ीन हैं तो क्या हुआ मैंने भी तो अब मर के जीने का तरीका सीख़ लिया। सुनसान रास्तों पर चलने से अब डर नहीं लगता मैंने अब इन पर आना-जाना सीख लिया।  शब्दार्थ ::: इल्तिफ़ात- मित्रता ग़ार- विश्वासघात अज़ाब - पीड़ा