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Showing posts from March 31, 2010

काव्य रचना: मुस्कान --संजीव 'सलिल'

काव्य रचना: मुस्कान संजीव 'सलिल' जिस चेहरे पर हो मुस्कान, वह लगता हमको रस-खान.. अधर हँसें तो लगता है- हैं रस-लीन किशन भगवान.. आँखें हँसती तो दिखते - उनमें छिपे राम गुणवान.. उमा, रमा, शारदा लगें रस-निधि कोई नहीं अनजान.. 'सलिल' रस कलश है जीवन सुख देकर बन जा इंसान.. ***********************

लो क सं घ र्ष !: सत्ता की डोली का कहार, बुखारी साहब आप जैसे लोग हैं

दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अहमद उल्ला बुखारी ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का ढोंग रचने वाली सियासी पार्टियों ने आजादी के बाद से मुसलमानों को अपनी सत्ता की डोली का कहार बना दिया है। बुखारी जी आपका बयान बिल्कुल ठीक है परन्तु क्या आप इस बात से इत्तेफाक़ करेंगे कि सियासी पार्टियों को यह मौका फराहम कौन करता है? आप और आपके बुज़रगवार वालिद मोहतरम जो हर चुनाव के पूर्व अपने फतवे जारी करके इन्हीं राजनीतिक पार्टियों, जिनका आप जिक्र कर रहे हैं, को लाभ पहुँचाते थे। लगभग हर चुनाव से पूर्व जामा मस्जिद में आपकी डयोढ़ी पर राजनेता माथा टेक कर आप लोगों से फतवा जारी करने की भीख मांगा करते थें। वह तो कहिए मुस्लिम जनता ने आपके फतवों को नजरअंदाज करके इस सिलसिले का अन्त कर दिया। सही मायनों में राजनीतिक पार्टियों की डोली के कहार की भूमिका तो मुस्लिम लीडरों व धर्मगुरूओं ने ही सदैव निभाई जो कभी भाजपा के नेतृत्व वाली जनता पार्टी या एन0डी0ए0 के लिए जुटते दिखायी दिये तो कभी गुजरात में नरेन्द्र मोदी का प्रचार करने वाली मायावती की डोली के कहार। मुसलमानो की बदहाल जिन्दगी पर अफसोस करने के बजाए उसकी