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Showing posts from April 15, 2010

लो क सं घ र्ष !: ब्लॉग उत्सव 2010 का शुभारम्भ

सम्मानीय चिट्ठाकार बन्धुओं , सादर प्रणाम, अंतरजाल पर परिकल्पना के श्री रविन्द्र प्रभात द्वारा आयोजित ब्लॉग उत्सव 2010 का शुभारम्भ आज बजे दिन में प्रारंभ हो गया है जिसके लिंक आप लोगों की सेवा में प्रेषित हैं। - सुमन loksangharsha . blogspot .com परिकल्पना ब्लोगोत्सव गीत कला दीर्घा में आज : अक्षिता(पाखी) की अभिव्यक्ति हिन्दी ब्लोगिंग में अपने अनुभवों से रूबरू करा रहे हैं श्री ज्ञान दत्त पाण्डेय हिन्दी चिट्टाकारी की समृद्धि हेतु एक अच्छे चिट्टाचर्चा-मंच की जरूरत है : उन्मुक्त पंकज सुबीर जी का कविता पाठ : दर्द बेचता हूं मैं दुष्यंत के बाद हिंदी के बहुचर्चित गज़लकार श्री अदम गोंडवी का पत्र परिकल्पना ब्लॉग उत्सव के नाम ग़ज़ल प्रस्तुति : फूल जैसे बचपने में खेली पली है जिन्दगी॥ utsav.parikalpnaa.com

अपने घर में दें प्रमाण!

                  "मैं  हिंदी  हूँ " जिस घर में हम रहते हैं, जिस घर में हम पैदा हुए और जिस घर की पहचान हमसे बनी हो - वही घर कहे  कि  मैं इस बात का प्रमाण पेश करूँ कि मैं इस घर की ही सदस्य हूँ.  इससे अधिक लज्जाजनक बात और क्या हो सकती है? ये कहने वालों के लिए डूब मरने वाली बात है. ऐसी घटना हो भी हमारे घर में ही सकती है. हाँ मैं अपने ही देश की बात कर रही हूँ.                 हिंदी ब्लॉग्गिंग के लिए नए नए आयाम खोज रहे हैं और हमारे माननीय हमें लज्जित कर रहे हैं. हिंदी राष्ट्र भाषा है, इसके लिए हमारी हिंदी एक अदालत से हार कर दूसरी अदालत का दरवाजा खटखटा रही है क्योंकि इस अदालत को यह नहीं मालूम है कि हिंदी को संविधान में  किस धारा में राष्ट्र भाषा घोषित किया गया है .                    एक खबर के अनुसार - गुजरात उच्च  न्यायलय  में हराने के बाद हिंदी राष्ट्र भाषा का स्थान पाने के लिए सर्वोच्च न्यायलय की शरण में पहुंची है. देश का संविधान लागू हुए ६० वर्ष हो चुके हैं लेकिन देश कि राष्ट्र भाषा क्या हो? अभी तक निश्चित नहीं हो सका है. संविधान के अनुच्छेद ३४३-४४  में हिंदी को 'देश की

मनोरंजन की जरुरत और अनछुई हकीकत

संजय सेन सागर मनोरंजन का वैश्विक परिवेश मनोरंजन का वैश्विक परिवेश इतना व्यापक हो चुका है कि इसकी व्यापकता को सरहद या संस्कृति की भिन्नता की बजह से दवाया नही जा सकता, मनोरंजन का प्रसार खुले आसमा की विशालता को भी खुद में समेटता जा रहा है, मनोरंजन की महक और आकर्षित करने वाली तीव्र तरंगे आज सीधे हदृय से जुड़ चुकी है, नतीजन मनोरंजन के बढ़ते प्रकार, बढ़ती महत्वता एवं वेगशील प्रगति प्रतिबिम्बित हो रही है। मनोरंजन आज जिन्दगी का प्रमुख भाग बन गया है। रोजमर्रा की व्यस्त एवं गतिशील जिंदगी में भी मनोरंजन का एक स्थान स्थित एवं नियत है। मनोरंजन की महत्वता का ग्राफ वर्तमान स्थितियों में लगातार बढ़ रहा है, लेकिन मनोरंजन को लेकर जिस तरह से प्राचीन सभ्यता में जो ललक एवं नवीनीकरण का आभास होता था उसी की बदोलत आज मनोरंजन को इस हद तक स्वीकार किया जा रहा है। आज मनोरंजन का संपूर्ण परिवेश बदल चुका है लेकिन कही न कही इसका जुड़ाव एवं आधार शिला प्राचीन सभ्यता के निशां का अहसास कराती है, यह कहना गलत ना होगा की प्राचीन सभ्यता ने ही आधुनिक मनोरंजन को जन्म दिया है और प्राचीन मनोरंजक साधनों ने ही आधुनिक साधनों का

राजस्थानी को सोवियत रूस ने समझा, हमने नहीं

Bhaskar News First Published 02:15[IST](15/04/2010) Last Updated 02:15[IST](15/04/2010) जयपुर. राजस्थानी भाषा के गौरव और समृद्धि की अहमियत को सोवियत रूस जैसे बड़े देश तक ने समझा लेकिन हम नहीं समझ पाए। तत्कालीन सोवियत रूस के लेखक बोरिस आई क्लूयेव सहित कई विद्वानों ने 70 के दशक में राजस्थानी भाषा पर शोध कर इसके समग्र स्वरूप को मान्यता देने की वकालत की थी। बोरिस ने राजस्थानी की विभिन्न बोलियों पर अपने शोध में कहा था कि राजस्थान में भाषा स्थिति इतनी जटिल नहीं है जितनी पहली बार में दिखाई देती है। इसके अलावा राजस्थानी भाषा की आंचलिक बोलियों के आधार पर राजस्थानी के स्वरूप को बिगाड़ने और इसमें विभेद पैदा करने की कोशिशों को भी गलत बताया है। क्लूयेव ने स्वतंत्र भारत जातीय तथा भाषाई समस्या विषय पर शोध शुरू किया तो राजस्थानी ने उन्हें बेहद प्रभावित किया। उन्होंने राजस्थान में संजाति—भाषायी प्रक्रियाएं शोध में साफ लिख