सांप्रदायिकता का जहर गांधीवादी विचारक और लेखक कुमार प्रशांत जेपी की छांव में पले-बढ़े. शांति सेना के साथ जुड़कर लंबे समय तक काम किया. वर्तमान संदर्भ में हमारे सामने जो चुनौतियां हैं उनके मुख्यरूप से तीन प्रकार हैं. पहली चुनौती है सांप्रदायिकता, दूसरी चुनौती है पूंजी का जहर और तीसरी चुनौती है हिंसा का फैलता दायरा. गांधी शांति प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित संगोष्ठी में बोलते हुए इन तीनों विषयों पर कुमार प्रशांत ने विस्तार से प्रकाश डाला है. हम क्रमशः यहां प्रकाशित कर रहे हैं- संपादक . गांधी को समझनेवाले कई लोग मुझसे यह सवाल पूछते हैं कि गांधी ने जीवनभर इतनी सारी बातें कहीं फिर तुम लोगों ने यही एक बात क्यों पकड़ ली है? और भी तो बहुत सारी बातें कही है उसने. मित्रों मेरे लिए सांप्रदायिकता हिन्दू-मुसलमान का झगड़ा मात्र नहीं है. सांप्रदायिकता इससे बड़ी चुनौती है. आप लोगों ने संग्रहालयों में देखा होगा कि वहां लिखा रहता है कि यह पेड़ का तना इतने सालों पहले दब गया और उसके कारण इस पत्थर का निर्माण हो गया. कोई पेड़ का तना एक निश्चित तापमान पर लंबे समय तक धरती के नीचे दबा रहा तो वह पत्थर हो गया. ये आज आ