कुछ पल तो रुक के देख ले राहों के रंग न जी सके , कोई ज़िंदगी नहीं । यूंही चलते जाना दोस्त , कोई ज़िंदगी नहीं । कुछ पल तो रुक के देख ले , क्या - क्या है राह में , यूंही राह चलते जाना कोई ज़िंदगी नहीं । चलने का कुछ तो अर्थ हो , कोई मुकाम हो , चलने के लिए चलना , कोई ज़िंदगी नहीं । कुछ ख़ूबसूरत से पड़ाव , यदि राह में न हों , उस राह चलते जाना , कोई ज़िंदगी नहीं । ज़िंदा दिली से ज़िंदगी को , जीना चाहिए , तय रोते सफर करना , कोई ज़िंदगी नहीं । इस दौरे भागम - भाग में , सिज़दे में प्यार के , कुछ पल झुके तो इससे बढ़कर बंदगी नहीं । कुछ पल ठहर , हर मोड़ पे , खुशियाँ तू ढूंढ ले , उन पल से बढ़के ' श्याम , कोई ज़िंदगी नहीं ॥