सागर  को  संयम  दे  दो , या  पूरी  कर  दो  आशा । भाषा  को  आँखें  दे  दो , या  आंखों  को  दे  दो  भाषा ॥ तम  तोम  बहुत  गहरा  है , उसमें  कोमलता  भर  दो । या  फिर  प्रकाश  कर  में , थोडी  श्यामलता  भर  दो  ॥ अति  दीन  हीन  सी  काया , संबंधो  की  होती  जाए  । काया  को  कंचन  कर  दो , परिरम्भ  लुटाती  जाए ॥ डॉक्टर  यशवीर  सिंह  चंदेल  " राही "