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Showing posts from December 25, 2008

बुलंद होसले

हाल ही मे स्पिन अकेडमी द्वारा आयोजित एक डांस शो देखने का अवसर मिला । मुंबई की ये संस्था जो हमारे शहर में आयी और कई स्कूल के ५००-५५० बच्चो को चुनकर उन्हें मात्र १५ दिनों के अंदर उन्हें डांस शो के लिए तैयार कर दिया । डांस शो तो बहुत से देखे है लेकिन इस शो में कुछ अलग ही बात थी ,जो मैं लिखने के लिए मजबूर हो गयी हूँ। अलग इसलिए क्यूंकि इसमे एक डांस-परफॉर्मेंस नेत्रहीन बच्चो की थी । जब ये बच्चे मंच पर आए तो इन्हे क्या पता था कि उन्हें कितने लोग देख रहे है । तालियों की गडगडाहट से पूरा प्रांगन गूंज उठा ।उन्हें अहसास करवाया गया कि तुम मस्त होकर नाचो , हम इतने सारे लोग तुम्हारे होसलो को बढ़ाने के लिए तुम्हारे साथ है। वे एक अंग से अक्षम बच्चे मस्ती से झूम रहे थे। उन्हें देखकर अक्षम और सक्षम बच्चो में अंतर कर पाना मुश्किल था । उनमे सक्षम बच्चो को मात देने का होसला जो था। उन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ तालियों की गडगडाहट का अहसास था। वे बच्चे कही से भी अक्षम नही थे ,उनके होसले जो बुलंद थे। कई लोग तो बीच में ही खड़े होकर उनका तालियों से होसला बढ़ा रहे थे। जब उनकी डांस-परफॉर्मेंस

रास्ते चलने की लिए बनाये जाते है,इंतज़ार करने के लिए नहीं !!

हम दिनों दिन आदर्श रास्ते की तलाश मे गुजार देते है की शायद अब मिलेगा ,यहाँ मिलेगा हो सकता है वंहा मिलेगा! पर हम ये भूल जाते है की रास्ते चलने के लिए बनाये जाते है इंतज़ार के लिए नहीं !! इसलिए जो करना है सो करने लगो ,किसी भी चीज़ या हमसफ़र का इंतज़ार मत करो! अगर चुनना है तो मंजिल चुनो! पर रास्तों को कभी मत चुनो क्यों की सभी रास्ते मंजिल तक ही जाते है कोई बीच मे ख़त्म नहीं होता,फिर बेकार इंतज़ार करने से क्या फायदा! बस इंतज़ार करना है तो उस जूनून का करो जो तुम्हे मंजिल तक पहुँचाने वाला है ,जैसे हो वो जूनून और जोश आ जाए तो रास्तों की फ़िक्र छोड़कर मंजिल की तरफ़ कदम बड़ा दो !

अटल जी की कविता

टूटे हुये तारों से फूटे वासन्ती स्वर, पत्थर की छाती में उग आया नया अंकुर, झरे सब पीले पात,कोयल की कुहुक रात, प्राची में अरूणिमा की रेख देख पाता हूं, गीत नया गाता हूं,टूटे हुये सपने की कौन सुने सीसकी, अन्तर को चीर व्यथा पलकों पर ठीठकी, हार नहीं मानूंगा,रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता और मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं, ******************************