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Showing posts from September 8, 2009

लो क सं घ र्ष !: मैं आज़मगढ़ हूँ

मैं आजमगढ़ हूँ बिलकुल अपने दूसरे भाइयों की तरह चाहे वे उत्तर प्रदेश से सम्बंधित हों या देश के किसी अन्य राज्य से। परन्तु सैकड़ों साल से मेरा अपना इतिहास है और अपनी अलग पहचान भी। विपरीत परिस्थितियों से निपटने की मुझमें अद्भुत क्षमता है। मेरी सन्तानों में गतिशीलता, स्वयं सहायता और जोखिम उठाने का अदम्य साहस है। इसीलिये कहा जाता है कि ‘‘जहाँ-जहाँ आदमी है, वहाँ-वहाँ आज़मी है । भारत का कोई राज्य या महानगर नहीं जो मेरे सपूतों से खाली हो। दुनिया का कोई देश नहीं जहाँ मेरी संताने न पहुँची हो। फिजी में तो मेरी भाषा बोली जाती है। मोरिशस में कासिम उत्तीम और त्रिनिडाड एण्ड टोबैगो में वासुदेव राष्ट्र प्रमुख तक बन चुके हैं। केन्द्र एवं राज्य सरकारों ने मुझे कल कारखानों एवं रोजगार के अन्य स्रोतों से वंचित भले ही रखा हो पर मेरी सन्तानें देश प्रदेश के अन्य भागों से ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जाकर अपनी योग्यता, साहस और परिश्रम के बल पर अपने हिस्से की रोटी निकाल ही लाती हैं। मेरे अन्य भाइयों की सन्तानों की तरह मेरे लाल रोटी, कपड़ा, मकान, बिजली, पानी और रोजगार आदि के लिये आन्दोलन नहीं करते, हिंसा पर नही उतर

अभी कठिन है डगर जीवन की॥

हे यार अभी तकरार करो मत॥ प्यार की घुमची खिल जाने दो॥ ये प्यार तुम्हारे साथ रहेगा॥ अभी ज़रा तो इठलाने दो॥ मैअर्पित कर दूगी तन को॥ वह दिन जैसे आहेगा॥ अभी उमर है बचपन वाली॥ मुझे ज़रा तो मुस्काने दो॥ तुम दर पे हमारे आया करो॥ मै देख के तुमको हस दूगी॥ बात करेगे चंचल मन से॥ दिल की बात बता दूँगी॥ अभी कठिन है डगर जीवन की॥ उसे ज़रा तो सुलझाने दो॥

हिन्दी को बचाओ..

हीरे मोती से प्यारी है॥ मेरी हिन्दी भाषा॥ हिन्दुस्तान की साँस है ये॥ लोगो की आशा॥ हिन्दी का मान बढ़ाओ॥ हिन्दी की पहचान बनाओ॥ हिन्दी से हिन्दुस्ता निकला॥ हिन्दी का ताज हिमालय॥ हिन्दी की ज्योति जलाओ॥ हिन्दी का मान बढ़ाओ॥

बन जा मेरी मात यशोदा

काफी दिन पहले मेरी धर्मपत्‍नी द्वारा लिखित एक भजन आज आपको पढा रहा हूं आशा है आप सभी को पसंद आएगी। यह भजन मेरी पत्‍नी ने जन्‍माष्‍टमी पर लिखा था लेकिन कुछ व्‍यस्‍तता के चलते आज इसे आप सभी को पढवा रहा हूं तू बन जा मेरी मात यशोदा मैं कान्‍हा बन जाऊं जा यमुना के तीरे मां बंशी मधुर बजाऊं इक छोटा सा बाग लगा दे जहां झूमूं नाचू गाऊं घर-घर जाकर माखन मिश्री चुरा चुरा के खाऊं इक छोटी सी राधा लादे जिसके संग रास रचाऊं तू ढूंढे मुझे वन उपवन मैं पत्‍तों में छिप जाऊं तू बन जा मेरी मात यशोदा मैं कान्‍हा बन जाऊं

हिन्दी में एक नई वेबसाइट का आगमन

मित्रों, बहुत समय से ब्लॉग की तरफ ध्यान नहीं दे पा रहा हूं। आपके ब्लॉग पढ़ता हूं पर लिखने का समय नहीं निकाल पा रहा। आप सोच रहे होंगे कि ऐसी भी मुई क्या व्यस्तता हो गई ! सच तो ये है कि मेरे शहर सहारनपुर की एक ऐसी वेबसाइट बनाने का विचार मार्च २००९ में मन में आया जिसमें वह सब कुछ हो जो सहारनपुर के बारे में दुनिया जानना चाह सकती है और जो सहारनपुर वासी अपने बारे में दुनिया को बताना चाहेंगे। साइट हिन्दी व अंग्रेज़ी में द्विभाषी बनाने की इच्छा थी। प्रोजेक्ट की विशालता को देखते हुए और अपने सीमित संसाधनों को देखते हुए ब्लॉग में समय लगाने के बजाय मैने इस वेबसाइट पर ध्यान केन्द्रित किया। मुझे लगा कि सहारनपुर से उच्च-शिक्षा के लिये, जॉब के लिये या विवाह आदि अन्य कारणों से हर साल हज़ारों युवक-युवतियां बाहर चले जाते हैं। सहारनपुर के बारे में जानते रहने की, सहारनपुर से जुड़े रहने की उनकी इच्छा कभी उनको ओर्कुट पर ले जाती है तो कभी फेस बुक पर । सहारनपुर के लिये वे कुछ करना भी चाहते हैं पर दिशा नहीं मिलती। ऐसे सभी युवाओं के लिये भी, जो देश के विभिन्न हिस्सों में (खासकर बंगलुरु, नॉएडा, गुड़गांव,