मुक्तक : माँ के प्रति प्रणतांजलि: संजीव 'सलिल' माँ के प्रति प्रणतांजलि: तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी. दोहा गीत गजल कुण्डलिनी, मुक्तक छप्पय रूबाई सी.. मन को हुलसित-पुलकित करतीं, यादें 'सलिल' डुबातीं दुख में- होरी गारी बन्ना बन्नी, सोहर चैती शहनाई सी.. * मानस पट पर अंकित नित नव छवियाँ ऊषा अरुणाई सी. तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी.. प्यार हौसला थपकी घुड़की, आशीर्वाद दिलासा देतीं- नश्वर जगती पर अविनश्वर विधि-विधना की परछांई सी.. * उँगली पकड़ सहारा देती, गिरा उठा गोदी में लेती. चोट मुझे तो दर्द उसे हो, सुखी देखकर मुस्का देती. तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी- 'सलिल' अभागा माँ बिन रोता, श्वास -श्वास है रुसवाई सी.. * जन्म-जन्म तुमको माँ पाऊँ, तब हो क्षति की भरपाई सी. दूर हुईं जबसे माँ तबसे घेरे रहती तन्हाई सी. अंतर्मन की पीर छिपाकर, कविता लिख मन बहला लेता- तन पुलकित, मन सुरभित करतीं, माँ की सुधियाँ पुरवाई सी * कौशल्या सी ममता तुममें, पर मैं राम नहीं बन प