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Showing posts from June 3, 2009

लोकसंघर्ष !: राजघाट के सपने कौडियों में बिकते है....

तीरगी से डरते है। यू दीये भी जलते है । साँप दोस्त बनकर ही आस्ती में पलते है। शेर जिंदगी के सब आंसुओ से ढलते है। राजघाट के सपने कौडियों में बिकते है। वाह क्या है फनकारी आस्था को चलते है। टूटना ही किस्मत है जो कभी न झुकते है। -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल '' राही ''

आस्ट्रेलिया में भारतीय और भारत में बिहारी

सलीम अख्तर सिद्दीकी उत्तर भारतीय लोगों को महाराष्ट्र में लठिया दिया जाता है। यूपी और दिल्ली वाले भी ÷बिहारी÷ को एक गाली के रुप में प्रयोग करते देखे जा सकते हैं। महाराष्ट्र के लोगों का कहना है कि उत्तर भारत के लोग यहां के स्थानीय लोगों का रोजगार छीन रहे हैं। यूपी और दिल्ली के लोग भी बिहारियों के बारे में ऐसी ही सोच रखते हैं। अब आस्ट्रेलिया की बात करे तो वहां से भी ऐसी ही खबरें आ रही हैं। उन लोगों का मानना है कि भारतीय लोग यहां के लोगों का रोजगार छीन रहे हैं। वहां भी ÷इंडियन÷ ÷बिहारी÷ की तरह एक गाली बन गया है। उनका मानना है कि इंडियन्स को न तो चलना आता है, न बात करना आता है। ये अंग्रेजी सही तरीके से नहीं बोल सकते। यही बातें हम बिहारयिों के लिए करते हैं। इंटरनेट पर इंडियन्स के विरुद्व नफरत फैलायी जा रही है। फिर बिहारियों पर आते हैं। क्या हम भी बिहारियों के खिलाफ ऐसी ही नफरत नहीं फैलाते ? जब महाराष्ट्र में राज ठाकरे की मनसे उत्तर भारतीय पर कहर ढा रही थी तो ये कहा गया था कि बिहार समेत उत्तर भारत की राज्य सरकारें अपने प्रदेशों में ही रोजगार के अवसर क्यों प्रदान नहीं करती, जिससे इन प्रदेशों क

मैं फिर हार गया..आखिर मेरी कविता कब जीतेगी...

संजय सेन सागर ......! शैलेश भारतवासी जी को हिन्दयुग्म के एक और सफल आयोजन पर बधाई और उनके हिंदी प्रेम को मेरा सलाम..!! मैं भी थोडा बहुत लिखता हूँ मैंने आखिरी कविता पिछले माह हिंद युग्म की यूनिकवि प्रतियोगिता के लिए लिखी थी..प्रतियोगिता हो गयी..नतीजे आ गए..मैं हार भी गया अब इस कविता का क्या करूँ? कोई काम की नहीं रही..शायद! सोचा आप लोगों को ही पढ़ा देता हूँ..तो पढिये आप इस कविता को और मैं अभी जून माह के लिए नयी कविता लिखूंगा..वो मुझे हराते-हराते हार जायेंगे,पर मैं हारते हारते नहीं हारूंगा.....और एक दिन जीत कर ही दम लूँगा! लेकिन कब अभी यह तय नहीं है..फिलहाल अभी आपका इसे पढ़ लेना ही बेहतर है अमिट दर्दीली दांस्ता क्यों इस दुनिया मे हर शख्स हार जाता है क्यों आसमान को चीरने वाला ही मंजिल पाता है क्यों दर्द और मुस्कराहट रहते है साथ हमेशा क्यों आखिर में दर्द मुस्कराहट से हार जाता है? जिंदगी आखिर क्यों ख़त्म हो जाती है,इच्छाओं से पहले क्यों हर एक सपना टूट जाता है,हकीकत से पहले? क्यों जेहन में शून्य छा जाता है? आखि

हमें नही चाहियें ऎसा राष्ट्ध्रम और ऎसी देशभक्ती..!!

मैं काफ़ी दिनों से देख रहा हू की इस हिन्दी ब्लोगिंग जगत को कुछ तुच्छ मानसिकता वाले हिन्दी ब्लोग्गर दो हिस्सो मे बाटनें मे लगे हुए हैं। इनके ब्लोग पर आपको हमेशा हिन्दुत्व के सम्बन्ध मे, भाजपा और संघ की तारीफ करती हुई पोस्ट मिलेगीं। मुझे उनके भाजपा या किसी और तारिफ़ करने से कुछ परेशानी नही हैं, परेशानी मुझे इस बात से है कि इनका हर लेख काग्रेंस, इस्लाम और मुस्लिम समुदाय की बुराई से शुरू होता है और सघं, भाजपा, और हिन्दुत्व की तारिफ पे खत्म होता है। इन सब के ब्लोग्स पर Comment Moderation लगा हुआ है, जो टिप्पणी इनको प्रकाशित करनी होती है उसे प्रकाशित करते है वर्ना जो टिप्पणी कुछ ज़्यादा ही इनके खिलाफ होती उसे ये पी जाते है, इनके लेख पढेंगे तो ऐसा लगेगा जैसे की आप भाजपा या सघं के किसी नेता का भाषण सुन रहें है।