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Showing posts from January 19, 2009

मियाँ "गाफिल" के शेर.........!!

मियाँ "गाफिल" के शेर.........!! दिल मुहब्बत से लबरेज़ हो गया था मिरे साथ वाकया क्या हुआ,पता नहीं !! अब और चलने से क्या होगा ऐ "गाफिल" हम तो सफर में ही अपने मुकाम रखते हैं...!! अपनी हसरतों का क्या करूँ मैं "गाफिल" इक साँस भी मिरी मर्ज़ी से नहीं आती.....!! इस तरह कटे दुःख के दिन दर्द आते रहे,हम गिनते रहे....!! बच्चे जब किताब थामते हैं... उदास हो जाया करते हैं खेल....!! वो मेरी रहनुमाई में लगा हुआ था और मेरा कहीं अता-पता ही न था !! कितने नेकबख्त इंसान हो तुम गाफिल हाय हाय किसी को दिया हुआ दिल भी उससे लौटा लाये....?? राह में जिसकी हमने नज़रें बिछायी थी क्या अभी जो हमें छोड़कर गई,मिरी तन्हाई थी क्या....?? बारहां हम गए थे उसे यूँ भूलकर बारहाँ उसको हमारी याद आई थी क्या...?? हिचकियाँ इतनी गहरी आती हैं क्यूँ लगता है जैसे हमें अल्ला याद करता है....!! उससे इतना प्यार हमें है "गाफिल " हमसे आने की फरियाद करता है.....!! इक तमाशा अपने इर्द-गिर्द बना लिया है हमने खुदा को अपना शागिर्द बना लिया है...!!

हाथो की महेंदी...................

हाथो की महेंदी अभी छुटी भी ना थी ... आँखों के सपने सजे भी ना थे यु ही बीच रस्ते में ॥टूट गये , अब तनहा है जीवन ..सुनी है राहे.. और अकेलापन है साथी ..... जो मिली अपनों से ठोकर .......... बुझ गयी इस दीये की बाती.... दिल मे पले अरमान भी जल गये ... अब तो कोई अपना भी ना रहा साथ में ..इस जीवन की पथरीली राहों में .. हम तो साथ मिल कर चार कदम चले भी ना थे ......... कि पड़ गए पेरो में दुःख के छाले .. हाथो को थामा था जिसने कभी , सदा के लिए .. वोह मेरा नसीब .. आन्सुयो मे लिख कर .. इस दुनिया से विदा लेकर चले गए ...... पर...... चलना तो है ........ देनी है अपने नन्हों को मंजिल यहाँ नन्ही आँखों मे सपने सजाने तो है ........ क्या कहू... ..........और किस से कहू ...कि मेरी .............. हाथो की महेंदी अभी छुटी भी ना थी ..................... (.......कृति......अनु.......)

साहित्यकारों के रोने की असलियत

संजय सेन सागर हिन्दुस्तान हमेशा से साहित्य की जननी रहा है,यहाँ पर अनेक साहित्यकारों ने जन्म लिया,कर्म किया! यहाँ पर साहित्य कारों की कलम मे वो शक्ति नजर आई जिससे इस प्रथ्वी लोक को ही नहीं बल्कि स्वर्ग लोक को भी प्रकाशमान बनाया गया है! लेकिन आज की भीड़ मे साहित्य भी खो गया है ! बढे-बढे साहित्यकार मानते है की आज की युवा पीढी साहित्य पड़ना ही नहीं चाहती,उसे महज मस्ती के साधन की जरुरत है! लेकिन सच ये तो बिलकुल नहीं है आज की युवा पीढी साहित्य तो पढना चाहती है लेकिन उसका स्वाद अलग है और हमारे बढे बढे साहित्यकार उस स्वाद को जान ही नहीं पा रहे है,और दोष युवापीढ़ी पर लगा रहे है !अगर सच मे युवा पीढी साहित्य पढ़ना नहीं चाहती है तो ''फाइव पॉइंट समवन'' को बेस्टसेलर किसने बनाया बुजर्गों ने , बिलकुल नहीं युवापीढ़ी ने ! ''one night @ call center '' एक ऐसा साहित्य रहा जिसपर फिल्म बनायीं गयी और जनता ने इसे पसंद भी किया ,यह चेतन भगत का ही एक और साहित्य था..उनके तीसरे साहित्य पर भी फिल्म बनायीं जा रही है !तो हम कैसे मान ले की युवा पीढी साहित्य पढ़ना नहीं चाहती...बच्चों ने