बेखुदी, और इंतज़ार नहीं, छोड़ आई नज़र क़रार कहीं तेरी रहमत है, बेपनाह मगर अपनी किस्मत पे ऐतबार नहीं निभे अस्सी बरस, कि चार घड़ी रूह का जिस्म से, क़रार नहीं सख्त दो-इक, मुकाम और गुजरें, फ़िर तो मुश्किल, ये रह्गुजार नहीं काश! पहले से ये गुमां होता, यूँ खिजाँ आती है, बहार नहीं अपने टोटे-नफे के राग न गा, उनकी महफिल, तेरा बाज़ार नहीं जांनिसारी, कहो करें कैसे, जां कहीं, और जांनिसार कहीं ********************************