मेरे अंदर का पत्रकार जन्म ले रहा था और देश में चार धाराएं एक साथ ऐसी चल रही थीं। अयोध्या का आंदोलन उफान पर था। चारों दिशाओं में राम के नाम की गूंज थी। मेरे घर में मेरा छोटा भाई मेरे खिलाफ खड़ा था। यूनिवर्सिटी में दोस्त झगड़ा कर रहा था कि मुझे क्या पता पिछड़ी जाति का होने का दर्द क्या होता है? राजीव गोस्वामी जैसे लड़के अपने बदन में आग लगा रहे थे। मंडल की वजह से करीबी एक-दूसरे पर शक करने लगे थे। और कश्मीरियों को लगने लगा था कि हिंदुस्तान के साथ उनकी किस्मत नहीं जुड़ी रह सकती, आजाद होना ही बेहतर है। और एक दिन अचानक पता चला कि सरकार को सोना गिरवी रखना पड़ेगा। इस बीच चुनाव सिर पर आन पड़े और राजीव गांधी तमिल आतंकवाद का शिकार हो गए। प्रधानमंत्री के बनने के लिए नेताओं की खोज हुई और रिटायर्ड नरसिंम्हा राव में कांग्रेस को अपना और देश का भविष्य नजर आया। राम मंदिर के नारे तेज होते गए और कैलेंडर की एक तारीख 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद को ढहा दिया गया। आज फिर 24 सितंबर पर सबकी नजर है, जब अयोध्या मसले पर अदालत का फैसला आएगा। जिन्होंने 1992 देखा है उनका दिल हलकान है और जो आर्थिक सुधार की पैदावार हैं वो क