प्रकृति ने यूं तो यौन भावना प्रत्येक जीवात्मा को दी है परन्तु उसका सदुपयोग अपने सर्वतोन्मुखी विकास के लिये कैसे किया जाये - यह विद्या सिर्फ मनुष्य के ही पास है। आइये देखें , कैसे ? विकास की बात उस बिन्दु से शुरु होती है जहॉं हम किसी व्यक्ति के आकर्षण में - या यूं कह लें कि सम्मोहन में फंसते हैं। उस व्यक्ति की उपस्थिति में हमारे मस्तिष्क तक जो सिग्नल पहुंचते हैं वह हमें सुखद अहसास ( pleasant sensations ) देते हैं। यह सुखद अहसास बहुत कुछ ऐसा ही है जैसे भोजन को देखकर हमें सुखद अनुभूति होती है। पर जैसे , हम भोजन को देखने भर से संतुष्ट नहीं हो सकते , उसी प्रकार हमें आकर्षित कर रहे व्यक्ति को देखना भर हमारे लिये पर्याप्त नहीं है , उसे पाये बिना हमारी क्षुधा शान्त नहीं होती। हमारे सामने खीर रखी हो और उसे खाने की अनुमति न हो तो हमारी आंखों के आगे हर समय खीर ही रहेगी। जिधर भी जायेंगे , खीर ही दिखाई देगी। सोयेंगे तो भी खीर के ही सपने देखेंगे। हर समय इसी जुगाड़ में लगे रहेंगे कि खीर कैसे हासिल की जाये। कुछ - कुछ ऐसा ही हमारे साथ उस समय होता है जब कोई व्यक्ति हमें आकर्